अलवर में मॉब लिंचिंग के सबक

By: Aug 6th, 2018 12:07 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

इस तरह की घटनाएं जब भी होती हैं, लिंचिंग और लोगों पर हमले सहित, निर्विवाद रूप से मुसलमान व दलित तथाकथित गौ रक्षा के नाम पर हिंसा के शिकार हुए हैं। अपने समाज को बहुलतावादी बनाने की दिशा में हमारे प्रयासों पर यह दुखदायी टीका-टिप्पणी है। महात्मा गांधी अपनी प्रार्थनाओं के दौरान हमेशा हिंदू-मुसलमान एकता पर जोर देते थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी इसी बिंदु पर जोर देते थे तथा उन्होंने विभिन्न कदमों के जरिए एकता के लिए दलील को मजबूती के साथ पेश किया…

अलवर लिंचिंग मामले में और अधिक जघन्य विवरण सामने आ रहा है। इस घटना के पीडि़त रकबर खान को बचाया जा सकता था अगर पुलिस ने समय पर कार्रवाई की होती। वास्तव में पुलिस टीम चाय पीने के लिए रुकी तथा पीडि़त को अस्पताल पहुंचाने में उसने साढ़े तीन घंटे देरी कर दी। इसके कारण उसकी मौत हो गई। अगर इस घटनाक्रम की एक-एक कड़ी को जोड़ा जाए, तो कोई भी इस निष्कर्ष पर पहुंच जाएगा कि पुलिस की ओर से की गई देरी पर मंथन होना चाहिए। पीडि़त का धर्म, वह एक मुसलमान था, ही उसके अंत का कारण बन गया। जांच से विवरण सामने आएंगे, किंतु यह जाहिर सी बात है कि पुलिस उसकी जान बचाने की अपेक्षा उससे दो गउओं की बरामदगी के प्रति ज्यादा उत्सुक थी। गउओं को 10 किलोमीटर दूर गऊशाला में पहुंचा दिया गया। यह काम जब पीडि़त को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में लाया गया, उससे एक घंटे पहले ही किया गया, जबकि स्वास्थ्य केंद्र घटनास्थल से छह किलोमीटर दूर है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार खून की प्यासी भीड़ अल्पसंख्यकों के दिलो-दिमाग में खौफ पैदा कर रही है। गायों से संबंधित हिंसा में वर्ष 2010 से अब तक मरने वालों में 86 फीसदी मुसलमान हैं तथा इन सभी मामलों में से 97 फीसदी वर्ष 2014 के बाद हुए हैं। इस तरह की घटनाएं जब भी होती हैं, लिंचिंग और लोगों पर हमले सहित, निर्विवाद रूप से मुसलमान व दलित तथाकथित गौ रक्षा के नाम पर हिंसा के शिकार हुए हैं। अपने समाज को बहुलतावादी बनाने की दिशा में हमारे प्रयासों पर यह दुखदायी टीका-टिप्पणी है। महात्मा गांधी अपनी प्रार्थनाओं के दौरान हमेशा हिंदू-मुसलमान एकता पर जोर देते थे। भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी इसी बिंदु पर जोर देते थे तथा उन्होंने विभिन्न कदमों के जरिए एकता के लिए दलील को मजबूती के साथ पेश किया। उनका विचार था कि संस्थानों में दाखिले तथा रोजगार के लिए आवेदन पत्रों में धर्म का कॉलम खत्म कर दिया जाना चाहिए। धर्म के आधार पर खींची गई रेखा हमें हमेशा परेशान करती रही है। भारत में मुसलमान, हालांकि वे 17 करोड़ हैं, सरकारी प्रशासन के मामलों में अहमियत नहीं रखते हैं। वास्तव में उनके निवास स्थान अलग हैं तथा स्लम एरिया में रहने के बावजूद वे इकट्ठे रहने में सुरक्षित महसूस करते हैं। बहुत पहले की बात नहीं है जब दिल्ली में दंगे हुए थे। मैं एक एक्टिविस्ट के रूप में समुदाय की मदद कर रहा था। एक वर्तमान न्यायाधीश स्लम एरिया में रहने को प्राथमिकता देते थे तथा उन्होंने मुझे बताया कि वह वहां रहने में सुरक्षित महसूस करते हैं। उन्होंने पुलिस को पक्षपाती पाया। स्पष्ट है कि पुलिस वालों के प्रशिक्षण में कहीं कमी है। एक लंबे समय तक सरकार ने मस्जिद, मंदिर या गुरुद्वारा को पुलिस लाइन से बाहर रखा। किंतु विविध राजनीतिक दलों के नेताओं ने लोगों को धर्म के आधार पर देखा तथा उनकी संकीर्ण प्रवृत्तियों को ही पुष्ट किया। हमें अपने से जो प्रश्न पूछना चाहिए, वह यह है कि कानून के रक्षक ही स्वयं क्यों भक्षक बनते जा रहे हैं। अब मंदिर, मस्जिद व गुरुद्वारा वहां बनाने की इजाजत है जहां इन पंथों के लोग निवास करते हैं। वे हर समय अपना प्रचार जोर-शोर से करते रहते हैं। हर समुदाय के लिए स्कूल भी अलग हैं। मुस्लिम समुदाय में मदरसे की परंपरा गहन रूप से समाई हुई है क्योंकि मुसलमान अपनी पहचान को कायम रखना चाहते हैं। मैंने इन सभी मसलों को राज्यसभा में उस समय उठाया था जब 90 के दशक में मैं इस सदन के लिए मनोनीत हुआ था। मेरी समालोचना कांग्रेस पर निर्देशित थी जो आजादी के बाद से देश पर शासन कर रही थी। मैंने जो कुछ कहा, उसका जवाब देने के बजाय कांग्रेस के उस समय के बड़े नेता प्रणब मुखर्जी मसले में रुचि का अभाव दर्शाने के लिए सदन से बाहर चले गए थे। संभवतः राष्ट्र को प्रेरित करने में कांग्रेस की विफलता की मेरी समालोचना का उनकी ओर से यही जवाब था। पंथनिरपेक्षता वह आदर्श है जिसे हमने पाकिस्तान की इस्लामी व्यवस्था के प्रतिरोध में चुना है। दुर्भाग्य से भारत में मुस्लिम समुदाय अलग-थलग पड़ा हुआ है।

ऐसा लगता है कि यह समुदाय विभाजन के लिए कुछ हद तक जिम्मेवार है। यह पूर्ण सत्य नहीं है। वास्तव में हिंदू, मुसलमानों का विश्वास जगाने में विफल रहे हैं। कुछ कट्टरवादी ताकतें उनके विश्वास निर्माण में खुले रूप से रोड़ा बनी हुई हैं। सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का आजादी के संघर्ष व आदर्शों से कोई संबंध नहीं रहा है, इसलिए उसने एक समय के बड़े नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी की उस विचारधारा को अपना आदर्श मान लिया है जिसकी संकल्पना उन्होंने की थी। उनका दर्शन हिंदू राष्ट्र की स्थापना करना है। जयप्रकाश नारायण कट्टरपंथी हिंदुओं को भी जनता पार्टी में लाने सफल रहे तथा वे उनके आदेश पर काम करते थे। उन्होंने अपनी वह टोपी भी छोड़ दी जो प्रतीकात्मक थी। मुख्य बिंदु हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से संबंधों का है। जब जेपी ने तत्कालीन जनसंघ नेताओं से संघ से अपने संबंध तोड़ लेने को कहा तो उन्होंने अपनी पार्टी के निर्माण को प्राथमिकता दी। लाल कृष्ण आडवाणी ने भाजपा की स्थापना की। कुछ वचनबद्ध सदस्य संघ के साथ रहे, किंतु उनमें से अधिक जेपी के साथ रहे। आखिरकार मामला केंद्रीय नेतृत्व के सामने आ गया। जनसंघ वहां खो गया। यह वह समय था जब अटल बिहारी वाजपेयी नेता के रूप में उभरे क्योंकि वह सभी को स्वीकार्य थे। उन्होंने उनके विश्वास को कायम रखा क्योंकि लाहौर को जो बस वह ले गए, उसमें सभी राजनीतिक दलों के सदस्य थे। नागरिक अभिनंदन में उन्होंने जो भाषण दिया, वह पाकिस्तानियों को इतना आकर्षित कर गया कि उनमें से कुछ लोग मेरे पास आए ताकि मैं नवाज शरीफ से यह आग्रह करूं कि वह न बोलें क्योंकि उस समय का मूड वाजपेयी समर्थक था। नवाज शरीफ ने कहा कि वह इतने मूर्ख नहीं हैं कि वाजपेयी के बाद बोलें। इसके बजाय उन्होंने कहा कि अगर पाकिस्तान में आज वाजपेयी चुनाव लड़ते हैं, तो उनकी आंधी चल निकलेगी। तब से लेकर भाजपा ने एक लंबा रास्ता तय किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दूसरा वाजपेयी बनने की कोशिश कर रहे हैं, किंतु वह इसमें सफल नहीं हो पाए हैं।

वाजपेयी अब भी आदर्श बने हुए हैं क्योंकि वह कांग्रेस के अनुयायियों तक को प्रभावित करने के योग्य थे। मुझे वह समय याद है जब वाजपेयी ने लंदन की यात्रा की थी। उस समय मैं वहां भारत का उच्चायुक्त था। यह वह समय था जब विचार-विनिमय में बाबरी मस्जिद का मसला छाया हुआ था। वाजपेयी ने कहा था, ‘वे जो राम भक्त हैं, वे अयोध्या गए हैं तथा वे जो राष्ट्र भक्त हैं, वे यहां आए हैं।’ हालांकि नरेंद्र मोदी सबका साथ, सबका विकास पर जोर दे रहे हैं, परंतु मोहन भागवत चुनाव में ज्यादा से ज्यादा संघ समर्थक उतारने की सोच रहे हैं, ताकि जब प्रधानमंत्री को चुनने का वक्त आए, तो संघ का उसमें आधिपत्य रहे। अलवर लिंचिंग जैसे मामले भाजपा तथा संघ, दोनों की किरकिरी कर रहे हैं, क्योंकि देश का मूड संघ के इरादों से कोई सरोकार नहीं रखता है। राष्ट्र बहुलतावादी बना रहना चाहता है।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


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