छात्रवृत्ति की बंदरबांट रोको

By: Aug 4th, 2018 12:05 am

डा.विनोद गुलियानी, बैजनाथ

पहले हिमाचल में सैनिक स्कूल न होने के कारण प्रायः चयनित छात्रों को कपूरथला या कुंजपुरा (करनाल) में दाखिला लेना पड़ता था। 1965 में मुझे भी वार्षिक 2400 रुपए पूर्ण छात्रवृत्ति प्राप्त कर कपूरथला में पढ़ने का अवसर मिला व सात वर्ष से अधिक प्रशिक्षण काल में एनसीसी के विभिन्न शिविर धर्मशाला, अलमोड़ा (उत्तराखंड), गणतंत्र दिवस की परेड में राजपथ पर भाग लेने के अतिरिक्त ‘ए’ सर्टिफिकेट प्राप्त करने के साथ-साथ राष्ट्रीय रक्षा अकादमी पुणे में चयन हेतु पूर्ण प्रशिक्षण का सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इस सारे प्रशिक्षण का एकमात्र उद्देश्य छात्रों को सेना में जाना अनिवार्य था, जो अब भी होगा, बशर्ते वे ‘एनडीए’ की लिखित परीक्षा व बाद में साक्षात्कार में उत्तीर्ण हों। परंतु यह बड़ा ही चिंता का व देश के लिए दर्दनाक पहलू है कि पूर्ण छात्रवृत्ति हजम करने के बाद अधिकांश मेधावी छात्र इस लिखित परीक्षा में जान बूझकर अनुत्तीर्ण हो जाते हैं, ताकि वे बाहर सिविल के आकर्षित व्यवसायों को पा सकें। चाहे कुछ भी हो, छात्रवृत्ति के नाम पर बंदर बांट रोकना अब सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। इसके लिए सरकार को ऐसा नियम बनाना चाहिए कि एक बार जो सैनिक स्कूल के लिए चयनित हो गया व छात्रवृत्ति प्राप्त करता हो, उसे अनिवार्य रूप से सेना में जाना ही होगा। अधिकारी की जगह उसे कम मैरिट आधार पर निम्न रैंक, यहां तक कि चाहे सिपाही तक भी बनना पड़े। इस नियम से जान-बूझकर अनुत्तीर्ण होने वाले मेधावी छात्र भी सेना में आएंगे। इसी क्रम में हिमाचल सरकार से विशेष अनुरोध रहेगा कि सेना में हिमाचल वासियों का प्रशंसनीय योगदान देखते हुए ‘बेटी सैनिक स्कूल’ को आरंभ कर नया इतिहास रचे।

 


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