दस साल की मेहनत का नतीजा, जैव ईंधन से उड़ा विमान

By: Aug 27th, 2018 4:38 pm

देहरादून के जॉलीग्रांट हवाई अड्डे से सोमवार सुबह स्पाइसजेट के विशेष विमान ने जैव विमान ईंधन के साथ उड़ान भरकर देश के विमानन क्षेत्र में इतिहास रच दिया। यह पहला मौका है जब देश में किसी उड़ान के लिए विमान ईंधन के रूप में जैव ईंधन का इस्तेमाल किया गया है। देहरादून में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने विमान को झंडी दिखाकर रवाना किया। इस अवसर पर वहाँ महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास राज्य मंत्री रेखा आर्या और स्पाइसजेट के मुख्य रणनीति अधिकारी जी.पी. गुप्ता भी उपस्थित थे। देश का पहला जैव विमान ईंधन तैयार करने वाले भारतीय पेट्रोलियम इंस्टीट्यूट देहरादून के निदेशक डॉ. अंजन रे इसी विमान से दिल्ली तक आये। दिल्ली के इंदिरा गाँधी अंतरराष्ट्रीय अड्डे पर 45 मिनट की उड़ान पूरी कर जब विमान उतरा तो नागरिक उड्डयन मंत्री सुरेश प्रभु, सड़क एवं परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी तथा पर्यावरण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन तथा नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री जयंत सिन्हा ने उसका स्वागत किया। किफायती विमान सेवा स्पाइसजेट ने इस परीक्षण उड़ान का आयोजन किया था। यह व्यायवासिक हालांकि उड़ान नहीं थी। इसमें 23 यात्री तथा चालक दल के सदस्य शामिल थे। यात्रियों में एयरलाइन के विशेषज्ञ, नागर विमानन महानिदेशालय के अधिकारी तथा विशेषज्ञ और डॉ. रे शामिल थे।इस परीक्षण उड़ान के लिए बोम्बार्डियर के क्यू400 विमान का इस्तेमाल किया गया था। इसके बायें इंजन में पारंपरिक विमान ईंधन और दायें इंजन में 25 प्रतिशत जैव ईंधन मिश्रित विमान ईंधन था। कुल 430 लीटर जैविक ईंधन मिलाया गया था जिसे आईआईपी की प्रयोगशाला में तैयार किया गया था। इससे पहले रविवार को देहरादून के आकाश में ही विमान ने 25 मिनट तक जैव विमान ईंधन के साथ उड़ान भरी थी। डॉ. रे ने बताया कि जैव विमान ईंधन तैयार करने पर आईआईपी ने करीब 10 साल पहले वर्ष 2009 में अनुसंधान शुरू कर दिया था। वर्ष 2010 तक लगा कि हमने कुछ तैयार कर लिया है। वर्ष 2010 से 2013 तक प्रयोगशाला में इतना जैव विमान ईंधन तैयार हो गया था कि उसे प्रैट एंड ह्विटनी इंजनों पर प्रयोग के लिए कनाडा भेजा गया। यह प्रयोग सफल रहा। सोमवार को परीक्षण के दौरान क्यू400 विमान में प्रैट एंड ह्विटनी के वही इंजन लगे थे जिन पर पाँच साल पहले कनाडा में परीक्षण किया गया था। अंतर यह है कि आज का परीक्षण वास्तविक उड़ान के दौरान किया गया था।


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