71 साल से चले आ रहे नीरस रिश्ते

By: Aug 13th, 2018 12:07 am

कुलदीप नैयर

लेखक, वरिष्ठ पत्रकार हैं

मैं आशा करता हूं कि सीमा पर नरमी होगी तथा स्थिति शांत हो जाएगी ताकि दोनों देशों के बीच शत्रुता को खत्म किया जा सके। मैं उस बस में था, जिसे अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में लाहौर के लिए चलाया गया था। उस समय दोनों ओर के लोगों में मिलनसारी देखी गई थी तथा मुझे आशा जगी थी कि इस यात्रा का प्रतिफल यह होगा कि दोनों के बीच नियमित रूप से व्यापार होगा, दोनों संयुक्त उपक्रम चलाएंगे तथा जनता के बीच सीधा संबंध स्थापित होगा। लेकिन मैं तब निराश महसूस करता हूं जब यह देखता हूं कि दोनों देशों की सीमा पर कड़े वीजा प्रतिबंध लगाकर एक-दूसरे के यहां लोगों के आवागमन को बाधित कर दिया गया है…

12 अगस्त, 1947 की बात है। यह वह दिन था जो भारत के आजाद होने से तीन दिन पहले आया। मेरे पिता, जो एक डाक्टर के रूप में पे्रक्टिस कर रहे थे, ने हम तीन भाइयों से पूछा कि हमारा क्या कार्यक्रम था। मैंने उन्हें बताया कि मैं उसी तरह पाकिस्तान में रहूंगा, जिस तरह मुसलमान भारत में रहेंगे। मेरे बड़े भाई, जो अमृतसर में मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे, ने यह कहने के लिए हस्तक्षेप किया कि पश्चिमी पंजाब में मुसलमान, हिंदुओं को घर खाली करने के लिए कहेंगे, ठीक उसी तरह जिस तरह पूर्वी पंजाब में रह रहे मुसलमानों को घर छोड़ने के लिए कहा जाएगा। मैंने पूछा कि अगर हिंदू छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते हैं, तो यह कैसे संभव होगा। उन्होंने जवाब दिया कि हमें ताकत के जरिए निकाल दिया जाएगा। जो कुछ हुआ, वह हूबहू ऐसा ही था। 17 अगस्त को, आजादी के दो दिन बाद, कुछ मुसलमान भद्र पुरुष हमारे पास आए और हमसे घर छोड़ने के लिए आग्रह किया। उनमें से एक से मैंने पूछा कि हमें कहां जाना चाहिए। उसने मुझे जालंधर में स्थित अपने घर की चाबियां दी और कहा कि हमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि उसका घर पूरी तरह सुसज्जित है तथा व्यवसाय के लिए तैयार है। हमने इस पेशकश को ठुकरा दिया। किंतु उनके चले जाने के बाद हम सब भविष्य का फैसला करने के लिए डाइनिंग टेबल के चारों ओर बैठ गए। मैंने उन्हें बताया कि मैं पाकिस्तान में ही रहूंगा तथा उन्होंने कहा कि वे अमृतसर चले जाएंगे व जैसे ही स्थितियां ठीक होंगी, वह वापस पाकिस्तान आ जाएंगे। हम इस बात पर सहमत हुए कि हालांकि इस समय परिदृश्य निराशाजनक है, फिर भी हम ज्यादा से ज्यादा एक माह के अंदर वापस आ जाएंगे। घर को ताला लगाते हुए मेरी माता ने टिप्पणी की कि वापस लौट आने को लेकर उन्हें अद्भुत सा एहसास हो रहा है। मेरे बड़े भाई ने उनसे सहमति प्रकट की।

मैंने एक नीले कैनवास बैग में एक कमीज व कुछ अन्य कपड़े पैक किए तथा यह कहते हुए विदाई ली कि हम दिल्ली के दरियागंज में मामा के घर पर मिलेंगे। मेरी माता ने दिल्ली में मिलने तक अपना खर्चा चलाने के लिए मुझे 120 रुपए दिए। मेरे पिता ने मेरी यात्रा को आसान बना दिया था। उन्होंने अपने एक मरीज ब्रिगेडियर को बताया कि वह उनके तीनों बेटों को सीमा के उस पार तक ले जाए। उन्होंने बताया कि उनके जोंगा में ज्यादा जगह नहीं है तथा वह हम में से केवल एक को ही एडजस्ट कर सकते हैं। अगली सुबह मुझे उनके वाहन में डाल दिया गया। मैं अपने आंसू नहीं छिपा सका और इस बात से डरने लगा कि हम दोबारा मिल भी सकेंगे अथवा नहीं। सियालकोट से संबरवाल की यात्रा बिना किसी ऊंच-नीच घटना के पूरी हो गई। परंतु उससे आगे लोगों का आवागमन एक-दूसरी दिशा में हो रहा था। हिंदू भारत की ओर आ रहे थे तथा मुसलमान पाकिस्तान की ओर जा रहे थे। अचानक हमारा जोंगा रुक गया। सड़क पर एक बूढ़ा सिख खड़ा था तथा उसने हमसे उसके पोते को भारत तक ले जाने की गुहार की। मैंने उसे विनम्रता के साथ बताया कि मैं अभी भी पढ़ाई कर रहा हूं तथा उसके पोते को ले जाने में असमर्थ हूं, चाहे उसका आग्रह उचित ही था। उस बुजुर्ग ने बताया कि वह अपने परिवार के सभी सदस्यों को खो चुका है तथा बचे हुए लोगों में केवल उसका पोता था। वह उसे जीवित रखना चाहता था। मैं उसका रुआंसा चेहरा अभी भी याद करता हूं, किंतु मैंने उसे सच्चाई बता दी थी। जबकि मैं स्वयं ही अपने भविष्य को लेकर आश्वस्त नहीं था, तो मैं उसके पोते का पालन-पोषण कैसे करता। फिर हम आगे बढ़े। आगे हमने इधर-उधर बिखरा पड़ा सामान देखा, जबकि लाशों को उस समय तक हटा दिया गया था। हालांकि हवा में लाशों की बदबू बहुत आ रही थी। उस समय मैंने अपने से वादा किया कि मैं हमेशा दोनों देशों के बीच अच्छे संबंधों को प्रोत्साहित करने की कोशिश करूंगा। यही कारण है कि मैंने वाघा सीमा पर मोमबत्तियां जलानी शुरू की। यह प्रक्रिया करीब 20 वर्ष पहले शुरू हुई थी। यह एक ऐसा छोटा अभियान था जिसे 15-20 लोगों को लेकर शुरू किया गया था। अब इस अभियान से भारत की ओर से करीब एक लाख लोग जुड़ चुके हैं, जबकि पाकिस्तान की ओर से भी इससे कम संख्या में लोग जुड़े हैं। लोगों की उमंग किसी पाबंदी को नहीं मानती है, लेकिन सरकारें इस रास्ते में बाधा हैं। पूरे क्षेत्र में कर्फ्यू लगा है तथा सीमा पर पहुंचने के लिए हर किसी को परमिट लेना पड़ता है। मैंने केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर आग्रह किया था कि वह सीमा सुरक्षा बल व केंद्रीय रिजर्व पुलिस के अधिकारियों को निर्देश दें कि वे जीरो प्वाइंट पर पहुंचने की इजाजत दें। यहां पर स्टील के गेट मोमबत्तियां जलाने के लिए होने वाली दोनों तरफ की मूवमेंट को चेक करते हैं। यह अभियान अभी कुछ लोगों तक ही सीमित है। मैं आशा करता हूं कि सीमा पर नरमी होगी तथा स्थिति शांत हो जाएगी ताकि दोनों देशों के बीच शत्रुता को खत्म किया जा सके। मैं उस बस में था, जिसे अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में लाहौर के लिए चलाया गया था। उस समय दोनों ओर के लोगों में मिलनसारी देखी गई थी तथा मुझे आशा जगी थी कि इस यात्रा का प्रतिफल यह होगा कि दोनों के बीच नियमित रूप से व्यापार होगा, दोनों संयुक्त उपक्रम चलाएंगे तथा जनता के बीच सीधा संबंध स्थापित होगा। लेकिन मैं तब निराश महसूस करता हूं जब यह देखता हूं कि दोनों देशों की सीमा पर कड़े वीजा प्रतिबंध लगाकर एक-दूसरे के यहां लोगों के आवागमन को बाधित कर दिया गया है। पूर्व में बुद्धिजीवी, संगीतज्ञ तथा कलाकार एक-दूसरे से मिल सकते थे तथा संयुक्त कार्यक्रम कर सकते थे। किंतु आज इस तरह की गतिविधियां बंद हो गई हैं तथा सरकार वीजा जारी करने में सख्ती दिखा रही है। सरकारी व गैर सरकारी पक्षों की ओर से व्यवहार में कोई भी संपर्क नहीं हो रहा है। नामित किए गए नए प्रधानमंत्री इमरान खान ने एक इंटरव्यू में कहा है कि वह दोनों देशों के बीच कारोबार व व्यापार की बहाली सुनिश्चित करवाएंगे। मेरी चिंता यह है कि सेना से उनकी नजदीकी के कारण वह उन्हें अपने वादे पूरे करने से रोक सकती है। हो सकता है कि सेना वाला यह ऐंगल अतिशयोक्ति हो। सेना शांति भी चाहती है, क्योंकि ये उसके ही आदमी होंगे जिन्हें लड़ाई लड़नी होगी तथा यह सब वह समझती है। विचारणीय बिंदु यह है कि भारत में सभी फैसले संसद के निर्वाचित सदस्यों को करने होते हैं, जबकि पाकिस्तान में ऐसा नहीं है, वहां सेना के शब्द अंतिम होते हैं। यह वह स्थिति है जहां समस्या पैदा होती है। इमरान खान सेना के उच्च नेतृत्व को समझाने में सफल होंगे या नहीं, यह कल्पना करना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में नई दिल्ली को एक प्रयास करना चाहिए, लेकिन इसके उल्ट भारत ने यह कठोर रुख अपना लिया है कि जब तक पाकिस्तान आतंकवादियों को शरण देना बंद नहीं करता तथा जब तक वह मुंबई विस्फोट मामले में वांछित लोगों को दंड नहीं देता, तब तक वह पाकिस्तान से बात नहीं करेगा। दोनों देशों के बीच सद्भाव वाले संबंधों के लिए भारत की अपील को ध्यान में रखते हुए इमरान खान को इस दिशा में पहल करनी चाहिए।

ई-मेल : kuldipnayar09@gmail.com


Keep watching our YouTube Channel ‘Divya Himachal TV’. Also,  Download our Android App