आनंद की स्थिति भीतर ही होती है

By: Sep 1st, 2018 12:05 am

गुरुओं, अवतारों, पैगंबरों, ऐतिहासिक पात्रों तथा कांगड़ा ब्राइड जैसे कलात्मक चित्रों के रचयिता सोभा सिंह पर लेखक डा. कुलवंत सिंह खोखर द्वारा लिखी किताब ‘सोल एंड प्रिंसिपल्स’ कई सामाजिक पहलुओं को उद्घाटित करती है। अंग्रेजी में लिखी इस किताब के अनुवाद क्रम में आज पेश हैं ‘रहस्यवाद’ पर उनके विचार …

-गतांक से आगे…

स्मृति और अवधारणाएं वास्तविक हत्यारे हैं। जानवर परिणाम का विचार किए बिना दिमाग विहीन होकर काम करते हैं। किसी पर हमला करने के लिए मित्र अथवा दुश्मन का विचार नहीं करना पड़ता है, उनमें फर्क नहीं करना होता है, तथा खो जाने या किसी प्राप्ति का भी कोई एहसास नहीं होता है। इसके विपरीत एक मनुष्य कुछ करने से पहले उसका औचित्य ढूंढता है तथा यही अपने से धोखे का कारण बनता है। रहस्यवादी परिपाटी का मतलब है नफा-नुकसान, अच्छा-बुरा को खत्म करने में मध्यस्थता करना। ऐसा सहजता की स्थिति में आने के लिए तथा ‘सचनेस’ अर्थात सहज होने के लिए अपने आप से बात करके किया जाता है। कई बार, सत्य के ऐसे झरोखों के दौरान दिमाग जागता है और प्रश्न करता है, ‘आप प्रसन्न क्यों हैं?’ और तब आकर्षण खत्म हो जाता है। दिमाग अन्वेषणात्मक, जिज्ञासु है तथा खेल को नष्ट कर देता है। यह आनंद को नष्ट कर देता है। इस स्थिति में हर कोई अपने आनंद को लेकर अनभिज्ञ होता है। यह एक बच्चे की तरह है जो प्रसन्न है, किंतु इसके बारे में जानता नहीं है। यह स्थिति आपके भीतर है और इसे कहीं बाहर से नहीं आना होता है। अपने रंगीन चश्मे तथा परदे हटा लो, साथ ही आत्मा पर पड़ी धूल को भी साफ कर लो। इच्छाओं, वर्तमान, भूतकाल तथा भविष्य (समय) से स्वतंत्र हो जाओ। अपने ऊपर पर निर्भर करें तथा हर चीज के लिए दूसरों की ओर देखना शुरू करने के बजाय अपने विवेक का इस्तेमाल करें। जेन बुद्धिज्म इस बात की पैरवी करता है कि आपको खुद सोचना सीखना चाहिए। विचार करना शुरू करें।

आदर्श : हमारा आदर्श यह होना चाहिए कि किसी बिंदु पर हम संतुष्ट हो जाएं। इसके बाद बेचैनी खत्म हो जाती है। गुरु हरराय नमक की चुटकी के साथ रोटी खाते थे तथा उन्होंने कभी वैभव वाले खाने की इच्छा नहीं की। यदि आप अपना दिमाग फर्नीचर, क्रॉकरी, इस चीज या उस चीज के पीछे लगा देते हैं तो आप इन सांसारिक इच्छाओं के कैदी हैं। हम अपने सपने बुनते हैं तथा उनके गुलाम हो जाते हैं। जब आप अपने दोस्त से कोई पत्र प्राप्त करते हैं तो आप इसे पढ़ते हैं और किनारे में रख देते हैं। वह ठीक है। यदि आप इसका जवाब देने के लिए चिंतित होना शुरू हो जाते हैं, कदाचित इसके उसके पास पहुंचने से पहले वह मुंबई के लिए चला जाता है तो आपने इसके साथ अपने को बांध लिया है। यह ठीक नहीं है। संतोष इस ढंग से होना चाहिए कि आदर्श खो न जाएं। एक विधवा कोई काम करती है, दूसरी शादी कर लेती है, किंतु तीसरी अपने महिलोचित सद्गुणों को खो जाती है। पहली दो ने अपने आदर्श को जीवित रखा। तीसरी ने इसे खो दिया। विकसित देशों में लोग अपने सद्गुण खो जाने पर स्वार्थी, मशीनी व धनोन्मुख हो जाते हैं। वहां केवल एक हेलो डार्लिंग बचती है। पति काम से लौट रहा है और पत्नी अपने काम पर चले जाने के लिए अपनी सीट बैल्ट बांध रही है ताकि उसे देरी न हो जाए। उनके पास अपने लिए ही समय नहीं है। ऐसे लोगों के जीवन में असंतोष होता है। उन्होंने अपने आदर्शों को कभी नहीं जाना, इनकी दृष्टि उन्होंने खो दी या फिर अनभिज्ञ हो गए। ऐसी स्थिति में कुछ कमी महसूस होने लगती है। वे इसे डॉलरों में परावर्तित करते हैं, जो कि एक विकृत आदर्श है। गुरु हरराय के अपनी जीवन-शैली के आदर्श थे। एक बार जब वह घूम रहे थे एक फूल उनकी पोशाक में आकर फंस गया तथा यह शाखा से टूट गया। उन्होंने इस पर पछतावा किया। इस घटना को जब उनके पिता गुरु हरगोबिंद सिंह को बताया गया तो उन्होंने सलाह दी, ‘पछतावा क्यों करो। उन्हें अपनी ड्रेस ऊंची रख करके चलना चाहिए।’

                                     -क्रमशः


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