जब तक हैं बंदर, नहीं होगी दोगुनी आमदन

By: Sep 1st, 2018 12:05 am

अरविंद शर्मा

लेखक, धर्मशाला से  हैं

खेतीबाड़ी को तिलांजलि देने का प्रमुख कारण है बंदर और आवारा पशु, जो किसानों की महीनों की मेहनत को चंद पलों में मटियामेट कर डालते हैं। इन दोनों को भी अगर ध्यान से देखा जाए, तो कम से कम हिमाचल में तो बंदर ही  किसानों, बागबानों को खेत एवं बाग से विमुख करने का बड़ा कारण हैं…

मोदी नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने कहा था किसानों की आमदन दोगुनी हो जाएगी, यह बात बेहद प्रशंसनीय है और आय दोगुनी होनी भी चाहिए। किंतु ऐसा सपना कभी पूरा भी होगा, इसमें शक होना लाजिमी है। कृषि में हो रहे नुकसान के चलते किसानों, बागबानों द्वारा लगातार खेतों के काम से हटने की प्रक्रिया जारी है। एक सर्वे तो बताता है कि विभिन्न प्रांतों में 40 से 60 फीसदी किसान कृषि छोड़ चुके हैं। मैं हिमाचल से हूं और मुझे यह लगता है कि यहां के तो 60 फीसदी किसान, बागबान कृषि छोड़ चुके हैं। गरीब लोगों को एक-दो रुपए में राशन उपलब्ध हो जाता है। यह सही योजना है, क्योंकि कम से कम अब गरीब लोगों को भूखे पेट नहीं सोना पड़ता है। परंतु कहीं न कहीं इस कारण से भी कुछ किसानों, बागबानों ने खेतीबाड़ी करना छोड़ दी है।

जबकि खेतीबाड़ी को तिलांजलि देने का प्रमुख कारण है बंदर और आवारा पशु, जो किसानों की महीनों की मेहनत को चंद पलों में मटियामेट कर डालते हैं। इन दोनों को भी अगर ध्यान से देखा जाए, तो कम से कम हिमाचल में तो बंदर ही  किसानों, बागबानों को खेत एवं बाग से विमुख करने का बड़ा कारण रहे हैं। इस पहाड़ी प्रांत में आज से 20-25 वर्ष पूर्व केवल प्रदेश के मंदिरों में ही बंदर दिखाई देते थे, किंतु आज तो हिमाचल का कोई भी ऐसा स्थान नहीं है जहां बंदर दिखाई न देते हों। इस चंचल जानवर ने प्रदेश में किसानों को ही नहीं, अपितु घरेलू बुआई को भी बंद करवा दिया है। पिछले एक दशक से प्रदेश की विभिन्न सरकारें बंदरों की संख्या को नियंत्रित करने में जुटी तो हैं, परंतु परिणाम देखे जाएं, तो इनकी संख्या घटना तो दूर की बात है, परंतु यह लगभग दोगुनी हो गई है। सरकार ने 2007 से बंदरों के नसबंदी आपरेशन शुरू किए थे। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2017 तक कुल 1.98 लाख नसबंदी हुई थीं। इस पर कुल 20 करोड़ का खर्च हुआ। हिमाचल वन विभाग कहता है कि 2004 में प्रदेश में कुल 317512 बंदर थे, जो 2015 में 207614 रह गए। इन सरकारी आंकड़ों को कोई भी नहीं मानेगा क्योंकि इस समय हर जगह उत्पात मचाते बंदरों को आप देख सकते हैं। लोगों का कृषि को त्यागने का एक कारण सरकार द्वारा किसानों और बागबानों को उनकी फसल का सही मूल्य न देना है। किसानों की खून-पसीने की कमाई का बिचौलियों के हाथों में चले जाना अब रीति बन चुकी है। वहीं आजकल बागबानों को फलों की पैदावार का भुगतान नकद में न करके बिल की रसीद उनके हाथ में थमा दी जाती है, कि इसके बदले वह सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जा रही चीजें तो खरीद ही सकते हैं। उनकी फसल का मूल्य अदा न करके  उन्हें सरकार द्वारा महंगे दामों पर फसल से जुड़े उपकरणों, बीजों को खरीदने के लिए मजबूर किया जा रहा है। रुपए न मिलने पर बागबानों को मजबूरी में यह महंगा सामान खरीदना पड़ रहा है। इस सब के बाद सवाल यह है कि ऐसे होगी किसानों की आय दोगुनी?  किसानों, बागबानों को उनकी फसल का मूल्य अदा न करके होगी दोगुनी आय?

एक सर्वे के मुताबिक हिमाचल के 2300 से भी अधिक गांवों में किसान व बागबान खेतीबाड़ी को तिलांजलि दे चुके हैं। इससे लगभग 335 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना नुकसान हो रहा है। यही नहीं, बंदरों ने 2015 से 2017 तक 674 लोगों पर हमले भी किए और कुछ लोगों ने तो इन हमलों में जान भी गंवाई है। इससे एक बात तो स्पष्ट है कि जब तक किसान, बागबान अपनी फसल ही न बोएगा, तो उसकी आमदनी दोगुनी कैसे हो सकती है? ऐसे में केंद्र सरकार की योजना कम से कम हिमाचल में तो कामयाब नहीं हो सकती। मैं उन राजनेताओं का नाम तो नहीं लेना चाहूंगा जिनकी बदौलत आज बंदरों की परेशानी बढ़ी है, परंतु इनमें वे भी शामिल हैं, जो बंदरों के निर्यात के विरोधी थे और वह भी जो अपने जानवर प्रेम से इतराते नहीं थकते। परंतु यह जरूर कहना चाहूंगा कि हर जीव-जंतु की संख्या नियंत्रित होना आवश्यक है। जंगल के जानवर यह कानून खुद इस्तेमाल कर लेते हैं, परंतु इनसान अपनी मशहूरी को लेकर ज्यादातर गलत फैसले ले लेते हैं। अगर इन फैसलों को समय रहते सुधारा न जाए, तो इनसान को ही भारी पड़ते हैं। केंद्र की मोदी सरकार व तमाम उन राज्य सरकारों को जहां भी बंदरों की वजह से किसान, बागबान अपना रोजगार एवं कार्य छोड़ चुके हैं, ऐसे कदम उठाने होंगे, जिससे बंदरों की संख्या तुरंत घटाई जा सके और किसान, बागबान फिर से अपनी फसलें उगाएं और दोगुनी आमदन हासिल कर सकें।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

 -संपादक


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