जानिए किसने किया कर्ण का अंतिम संस्कार

By: Sep 1st, 2018 12:05 am

तीसरे वरदान में उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए, जहां कोई पाप न हो। कर्ण की इस इच्छा को सुनकर कृष्ण दुविधा में पड़ गए थे, क्योंकि पूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं था, जहां एक भी पाप नहीं हुआ हो। ऐसी  कोई जगह न होने के कारण कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर  किया था…

कहते हैं कि जब भी धर्म पर अधर्म ने हावी होने की कोशिश की है, तब-तब इस धरती पर भगवान ने अवतार लिए। बात चाहे, द्वापर की हो या त्रेता युग की हो, सतयुग की हो या फिर कलियुग की। हर युग में भगवान ने अपने भक्तों  की हमेशा रक्षा की है। रामायण में प्रभु श्री राम के रूप में और महाभारत में श्रीकृष्ण के रूप में। समय-समय पर भगवान ने अपने भक्तों की रक्षा करके उनकी आस्था को कभी टूटने नहीं दिया।

इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी हैं, जिनका नाम सदियों तक याद किया जाएगा उन्हीं में से एक थे महाभारत के वीर कर्ण। महाभारत की बात करें, तो ऐसे कई पात्र हैं जिनका नाम आज भी याद किया जाता है। श्रीकृष्ण के अलावा पांडवों को महाभारत के नायक के रूप में जाना जाता है, लेकिन कौरवों को इतने मान-सम्मान से नहीं देखा जाता। कौरवों में से कर्ण को उनका साथ देने के बावजूद भी बड़े आदर सम्मान के साथ देखा जाता है। उनके साथ अन्याय के कारण आज भी लोग उनके प्रति अपार प्रेम भाव रखते हैं।

क्या आप जानते हैं कि साधारण इनसान के साथ-साथ श्री कृष्ण तक उनके सिद्धांतों के कारण उन्हें एक महान योद्धा मानते थे और उनका बहुत सम्मान करते थे। महाभारत की इस कहानी के बारे में तो सब जानते होंगे कि युद्ध से पहले श्रीकृष्ण ने छल करके इंद्र की मदद लेकर कर्ण के कवच-कुंडल दान में ले लिए थे, लेकिन आज हम आपको इसके बाद की एक बात बताने जा रहे हैं, जिसके अनुसार श्रीकृष्ण स्वयं भी कर्ण की परीक्षा लेने के लिए आए थे, जिस परीक्षा में कर्ण सफल हुए थे। तब श्रीकृष्ण ने कर्ण से खुश होकर वरदान मांगने को कहा था।

 श्रीकृष्ण और कर्ण से जुड़ी कथा

जब कर्ण मृत्युशैय्या पर थे, तब कृष्ण उनके पास उनके दानवीर होने की परीक्षा लेने के लिए आए। कर्ण ने कृष्ण को कहा कि उसके पास देने के लिए कुछ भी नहीं है। ऐसे में कृष्ण ने उनसे उनका सोने का दांत मांग लिया। कर्ण ने अपने पास पड़ा पत्थर उठाया  और अपना दांत तोड़कर कृष्ण को दे दिया। इससे दानवीर कर्ण ने एक बार फिर अपने दानवीर होने का प्रमाण दिया। यह सब देखकर भगवान कृष्ण काफी प्रभावित हुए और उन्होंने कर्ण से कहा कि वह उनसे कोई भी वरदान मांग सकते हैं।

कर्ण का पहला वरदान

कर्ण ने भगवान से जो वरदान मांगे उनमें से पहला वरदान यह था। कर्ण ने श्रीकृष्ण से कहा कि एक निर्धन सूत पुत्र होने की वजह से उनके साथ बहुत छल हुए हैं। अगली बार जब श्रीकृष्ण धरती पर आएं, तो वह पिछड़े वर्ग के लोगों के जीवन को सुधारने की कोशिश करें। इसके साथ कर्ण ने दो और वरदान मांगे।

कर्ण द्वारा मांगा गया दूसरा वरदान

दूसरे वरदान के रूप में कर्ण ने यह मांगा कि अगले जन्म में श्रीकृष्ण उन्हीं के राज्य में जन्म लें।

कर्ण का तीसरा वरदान

तीसरे वरदान में उन्होंने कृष्ण से कहा कि उनका अंतिम संस्कार ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहां कोई पाप न हो। उनकी इस इच्छा को सुनकर कृष्ण दुविधा में पड़ गए थे क्योंकि पूरी पृथ्वी पर ऐसा कोई स्थान नहीं था, जहां एक भी पाप नहीं हुआ हो। ऐसी  कोई जगह न होने के कारण कृष्ण ने कर्ण का अंतिम संस्कार अपने ही हाथों पर  किया। इस तरह दानवीर कर्ण मृत्यु के पश्चात साक्षात वैकुंठ धाम को प्राप्त हुए।

इनसान अपने कर्मों के कारण ही स्वर्ग और नरक का भोग करता है। भगवान तो किसी न किसी रूप में उसे संकेत देते रहते हैं, लेकिन अगर फिर भी मनुष्य न समझे तो ये उसकी मूर्खता की निशानी है। भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध के दौरान ही अर्जुन को  गीता का उपदेश दिया था। जिस पर अमल करके ही अर्जुन अपने भाई-बंधुओं के खिलाफ युद्ध करने को तैयार हुआ था। कृष्ण जानते थे कि कर्ण एक महान दानवीर योद्धा है। इसीलिए कर्ण ने अपने अंतिम समय में भगवान से ऐसा वर मांगा कि गलत लोगों का साथ देने के बावजूद भी उसे मोक्ष की प्राप्ति हुई।


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