नशे के चंगुल से बचाने को प्रतिबद्धता की दरकार

By: Sep 20th, 2018 12:06 am

अजय पाराशर

लेखक, सूचना एवं जन संपर्क विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय, धर्मशाला में उप निदेशक हैं

इसके अलावा कोई विकास योजना भी तब तक सफलता अर्जित नहीं कर सकती, जब तक स्थानीय लोग उसमें आवश्यक सहयोग प्रदान न करें। ऐसे में नशे को राज्य से जड़ से उखाड़ने के लिए न केवल क्रियान्वयन एजेसियों को संवेदनशील बनाने की जरूरत है, बल्कि लोगों का सहयोग भी जरूरी है…

मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर ने हाल ही में प्रदेश के उपायुक्तों और पुलिस अधीक्षकों के शिमला में आयोजित सम्मेलन में राज्य में नशे के बढ़ते चलन को रोकने के लिए सख्त कानून बनाने पर गहन विचार-मंथन किया। मुख्यमंत्री ने सभी अधिकारियों से आम जनमानस से नियमित रूप से बैठकें आयोजित करने के निर्देश देते हुए कहा कि लोगों से सीधा संवाद स्थापित करने से राज्य में न केवल नशे की बढ़ती प्रवृत्ति को रोकने में प्रत्यक्ष मदद मिलेगी, बल्कि इसे समाप्त भी किया जा सकेगा। लोगों से सीधा राबिता कायम करने से उन्हें नशे का कारोबार करने वालों तथा नशेडि़यों के बारे में अहम जानकारी प्राप्त करने में सहायता मिलेगी। लेकिन यक्ष प्रश्न है कि क्या केवल सरकार के स्तर पर ही कार्रवाई किए जाने से प्रदेश में नशे का खात्मा किया जा सकता है।

शायद नहीं। इतिहास गवाह कि दुनिया के किसी भी कोने में किसी भी बुराई को तब तक खत्म नहीं किया जा सकता है, जब तक उसके खिलाफ चलाए गए अभियान को लोगों का सक्रिय सहयोग प्राप्त न हो। इसके अलावा कोई विकास योजना भी तब तक शत-प्रतिशत सफलता अर्जित नहीं कर सकती, जब तक स्थानीय लोग उसमें आवश्यक सहयोग प्रदान न करें और उसके निर्माण और क्रियान्वयन में लोगों की आकांक्षाएं, अपेक्षाएं और जरूरतों को शामिल न किया गया हो। ऐसे में नशे को राज्य से जड़ से उखाड़ने के लिए न केवल नीति निर्माताओं और क्रियान्वयन एजेसियों को संवेदनशील बनाए जाने की जरूरत है, बल्कि राज्य के सभी लोगों को हर्षित किए जाने की आवश्यकता है। ताकि सभी एक इकाई के रूप में कार्य करते हुए वर्तमान युवाओं और आने वाली पीढि़यों को इस भयावह राक्षस के चंगुल से बचाने के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। सर्वविदित है कि पड़ोसी राज्यों में बढ़ते ड्रग्स सेवन और इससे जुड़े व्यवसाय से अब हिमाचल का अछूता रहना मुश्किल होता जा रहा है। जबसे सिंथेटिक ड्रग्स पर प्रतिबंध लगाया गया है, इस धंधे में संलिप्त लोगों ने नशेडि़यों को अपने जाल में फंसाए रखने के लिए कोकीन और हेरोइन की तस्करी आरंभ कर दी है। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली के डा. आलोक गुप्ता के अनुसार निकोटीन से जुड़े उत्पादों, मसलन बीड़ी-सिगरेट, हुक्का, खैनी आदि और हेरोइन को सेवन करने वाले 95 फीसदी लोग ताउम्र के लिए इसके गुलाम बन जाते हैं। इन उत्पादों की सहज उपलब्धता और दोस्तों का दबाव किसी भी कम उम्र के व्यक्ति को अपनी ओर आकर्षित करता है।

अगर हिमाचल के संदर्भ में देखें, तो निकोटिन से जुड़े तमाम उत्पाद आसानी से उपलब्ध हैं और युवा, यहां तक कि स्कूल में पढ़ने वाले बच्चे भी इनके आसान शिकार बन रहे हैं। सिंथेटिक ड्रग्स की गिरफ्त में आए लोग उपचार और पुनर्वास के बाद मुख्यधारा में शामिल हो सकते हैं। बशर्ते इनके प्रति हमारा दृष्टिकोण सहानुभूतिपूर्ण हो और समय-समय पर उन्हें आवश्यक परामर्श और मार्गदर्शन उपलब्ध करवाया जाए। बैठक में अफीम और भांग को जड़ से उखाड़ने और नष्ट करने का निर्णय भी लिया गया। इसके लिए जल्द ही एक प्रभावी और व्यापक अभियान चलाने पर विस्तृत चर्चा हुई। ध्यातव्य है कि प्रदेश की भौगोलिक स्थिति और जलवायु को देखते हुए इस अभियान को वर्ष भर तब तक चलाने की जरूरत है, जब तक यह समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं हो जाती। गौरतलब है कि प्रदेश की जलवायु भांग के पौधे को ऐसा प्राकृतिक वातावरण उपलब्ध करवाती है, जो उसे स्वाभाविक रूप से फलने-फूलने में मदद करता है। लैंटना और कांग्रेस घास की तरह यह अपने नजदीक की भूमि को इस तरह लीलता है कि हर तरफ इसी का जलवा नजर आता है। ऐसे में नशेड़ी तो अपने आसपास उपलब्ध भांग के पौधों से अपना काम चला लेते हैं, लेकिन नशे के कारोबारी प्रदेश के उन भागों में सरकारी या वन भूमि को निशाना बनाकर नियोजित ढंग से खेती करते हैं। जहां आम लोगों, जिनमें पुलिस तथा अन्य प्रवर्तन एजेसियों का पहुंचना बेहद मुश्किल होता है।

अवैध रूप से की जा रही भांग तथा अफीम की खेती का करीब 95 फीसदी ऐसी ही जमीनों पर काश्त किया जा रहा है। कुल्लू में मलाना भले ही मलाना क्रीम के लिए बदनाम हो, लेकिन सैंज घाटी, चुहार घाटी और अन्य स्थानों में भी इसका उत्पादन खतरे की हद को पार कर चुका है। सीएसआईआर पालमपुर के एक शोध के अनुसार जंगली गैंदा, भांग, लैंटना और कांग्रेस घास के मुकाबले हिमाचली परिवेश में अधिक फलता-फूलता है और इसका प्रयोग दवाइयां बनाने में किया जा सकता है। ऐसे में अगर भांग, लैंटना और कांग्रेस घास के स्थान पर इसके बीज लगाए या बिखेरे जाएं, तो नशे और कतवार के भयानक पौधों की समस्या से पार पाने के अलावा लोगों को सकारात्मक रोजगार उपलब्ध करवाने में मदद मिलेगी। काबिले-गौर है कि पंजाब में नशे के विरुद्ध छेड़े गए अभियान के बाद इस धंधे में संलिप्त लोग अब हिमाचल के सीमावर्ती जिलों, जैसे ऊना, कांगड़ा, चंबा, सोलन, सिरमौर तथा बिलासपुर को निशाना बना रहे हैं। चिट्टे का कारोबार तेजी से अपने पांव पसार रहा है। हैरानगी की बात है कि चंबा जिला के एक क्षेत्र विशेष में अब महिलाएं, अपने स्कूल जाने वाले बच्चों के साथ धंधे में उतर आई हैं।  लेकिन जहां तक सिंथेटिक ड्रग्स और हेरोइन, कोकीन तथा चिट्टा जैसे नशों की बात है, तो इनसे पार पाने के लिए हमें समस्या की गहराई में जाकर इसे जड़ से उखाड़ना होगा।


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