नोटबंदी एक घोटाला नहीं

By: Sep 1st, 2018 12:05 am

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने नोटबंदी को गलती नहीं, एक घोटाला करार दिया है। नोटबंदी देश के छोटे, मझोले कारोबारियों और नागरिकों पर एक आक्रमण था। उनके पैरों पर कुल्हाड़ी मारी गई थी, ताकि उन्हें खत्म किया जा सके। आम आदमी की जेब से पैसा निकाला गया और उसे प्रधानमंत्री मोदी के 15-20 उद्योगपति मित्रों में बांटा गया। राहुल गांधी के मुताबिक, यही नोटबंदी का सारांश है। लिहाजा प्रधानमंत्री से जवाब मांगा गया है। दरअसल प्रधानमंत्री को नोटबंदी पर सफाई  देने की जरूरत नहीं है, क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक की रपट सब खुलासा करती है। नोटबंदी कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी अर्थव्यवस्था को खंगालना चाहते थे और भारत की मुद्रा में बदलाव लाना चाहते थे। वह कोई गलत, असंवैधानिक निर्णय नहीं था। रिजर्व बैंक की रपट के मुताबिक, नोटबंदी के जरिए 99.3 फीसदी रुपया बैंकों में जमा हो पाया। सिर्फ 10,720 करोड़ रुपए लापता बताए जा रहे हैं, जो रुपए बैंकों तक  नहीं आए। बेशक नोटबंदी का असर देश के आम आदमी पर पड़ा है। उसने कष्ट सहे हैं। किसी की शादी रद्द हो गई, तो किसी बीमार का इलाज वक्त पर नहीं हो पाया। नतीजतन कुछ आकस्मिक मौतें भी हुईं। ये प्रभाव तब भी मौजूद थे, जब उप्र, उत्तराखंड, हिमाचल, गुजरात आदि राज्यों में चुनाव हुए थे। यदि नोटबंदी कोई जन-विरोधी निर्णय होता या देश के मतदाता ऐसा सोचते अथवा उसमें कोई घोटाला निहित होता, तो निश्चित तौर पर इन सभी राज्यों में भाजपा को जनादेश हासिल नहीं होते। देश के सबसे बड़े राज्य उप्र में तो भाजपा-एनडीए को तीन-चौथाई बहुमत हासिल हुआ। चुनाव ही नागरिकों के मूड का मानदंड होते हैं, लिहाजा राहुल गांधी का एक मुख्य आरोप तो यहीं ध्वस्त  हो जाता है कि नोटबंदी आम आदमी को खत्म करने का एक आक्रमण था। दरअसल राहुल गांधी को इस सवाल का जवाब भी देना चाहिए और उन उद्योगपतियों के नाम सार्वजनिक करने चाहिए, जिन्हें बैंकों ने अवैध तरीके से पैसा मुहैया कराया है। सवाल यह भी है कि नोटबंदी के दौरान क्या प्रधानमंत्री कार्यालय ने ऐसा कोई सिफारिशी पत्र किसी बैंक को लिखा था कि अमुक उद्योगपति को कर्ज दे दिया जाए या पुराने कर्ज की वसूली न होने के बावजूद नया कर्ज भी दे दिया जाए? यह कार्य-संस्कृति कांग्रेस सरकारों के दौरान रही है। 2009 और ‘14 के बीच उद्योगपतियों को अनाप-शनाप कर्ज मुहैया कराए गए, नतीजतन एनपीए की हकीकत आज सामने है। बैंकों पर 11 लाख करोड़ रुपए से अधिक का एनपीए सिर्फ मोदी सरकार के दौरान का नहीं है। इस पर सरकार को एक ‘श्वेत-पत्र’ जारी करना चाहिए, ताकि कांग्रेसियों की जुबान हकला सके। बहरहाल राहुल गांधी को यह एहसास होना चाहिए कि यह ‘गरीब समाजवाद’ का नहीं, पूंजीवाद का दौर है। कांग्रेस को चुनावी चंदा पूंजीपतियों से ही मिलता है। उद्योगपतियों को कर्ज मुहैया कराना न तो पाप है और न ही कोई अनैतिक अपराध है। घोटाले तो कोयला खदान आवंटन, 2जी स्पेक्ट्रम, कॉमनवेल्थ गेम्स, टेट्रा ट्रक और पनडुब्बी आदि की सौदेबाजी में हुए थे, जिन्हें किसी राजनीतिक दल या नेता ने नहीं, बल्कि ‘कैग’ (नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक ) ने अपनी रपटों के जरिए सार्वजनिक किया था। ये 15-18 लाख करोड़ रुपए के घोटाले कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकारों के दौरान किए गए थे। लिहाजा राहुल गांधी यह भी खुलासा करें कि नोटबंदी घोटाले का लाभ किन्हें मिला? प्रधानमंत्री मोदी की जेब में कितना पैसा गया? बहरहाल एक अनुमान के मुताबिक, नोटबंदी के दौरान करीब 15 लाख लोग, कर्मचारी बेरोजगार हुए। हकीकत यह है कि वे उन छोटी कंपनियों में काम करते थे, जो ज्यादातर नकदी में ही कारोबार करती थीं। नोटबंदी के जरिए अनौपचारिक और समानांतर अर्थव्यवस्था को भी समाप्त कर ‘औपचारिक’ बनाने का लक्ष्य था, लिहाजा ऐसी कंपनियों को बंद करना पड़ा। ‘क्रिसिल’ एजेंसी का भी लगभग यही विश्लेषण है कि भारत की अर्थव्यवस्था नोटबंदी के बाद ‘औपचारिक’ हुई है। मोदी सरकार ने बेरोजगारों के नुकसान की भरपाई करने के मद्देनजर ‘मुद्रा लोन’ की योजना घोषित की थी। दावे किए जा रहे हैं कि इसके तहत 13-18 करोड़ लोगों को रोजगार मुहैया कराया गया है। इस मुद्दे पर खोखली राजनीति को कुंद करने के लिए मोदी सरकार को एक ‘श्वेत-पत्र’ जारी करना चाहिए, ताकि स्पष्ट हो सके कि किन्हें रोजगार मिला और किस तरह का रोजगार मिला! नोटबंदी के पीछे प्रधानमंत्री मोदी के चार मकसद थे-आतंकवाद, काला धन, भ्रष्टाचार और डिजिटल लेन-देन। बेशक काला धन पर ‘सिट’ का गठन कर सरकार ने अपनी नीयत का खुलासा किया है, लेकिन अभी बड़ा खुलासा तभी संभव है, जब स्विस बैंकों में भारतीयों की जमा पूंजी का सच सार्वजनिक होगा। आतंकवाद अब भी जारी है, लेकिन उसके घुटने जरूर टूटे हैं। भ्रष्टाचार का सच यह है कि 175 देशों की सूची में हम 81वें स्थान पर हैं, लेकिन नोटबंदी के बाद नकदी लेन-देन घटा है। जनता डिजिटल हो रही है। पेटीएम जैसे तरीकों का चलन बढ़ा है। 2017 में डिजिटल पेमेंट की राशि 40 फीसदी बढ़ी है। इस साल में इसके पांच गुना बढ़ने के आसार हैं। बहरहाल नोटबंदी का विश्लेषण पूर्वाग्रह से नहीं करना चाहिए। अभी इसके पूरे नतीजे आने में वक्त लगेगा। नोटबंदी और जीएसटी दोनों ही निर्णय जन-विरोधी नहीं हैं।


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