पर्यावरण संरक्षण पर निर्भर मानव जीवन

By: Sep 18th, 2018 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

जैविक खाद अपनाकर सब्जियां उगानी होंगी और भोजन को व्यर्थ फेंकने से बचाना होगा। अधिक से अधिक सोलर कुकर का इस्तेमाल करना होगा और वाहन प्रदूषण को नियंत्रित रखना होगा। पानी की बूंद-बूंद बचाने तथा कपड़े के थैले इस्तेमाल करने जैसे कारगर पग उठाने होंगे…

भारतीय संस्कृति में आज से हजारों वर्ष पूर्व पर्यावरण की सुरक्षा और वृक्षों को लेकर अनेक प्रार्थनाएं पढ़ने को मिलती हैं। द्यौः शांतिरंतरिक्षं शांतिः।। पृथ्वी शांतिरापः शांतिरोषधयः शांतिः।। वनस्पतयः शांतिर्विश्वे देवाः शांतिर्ब्रह्म शांतिः।। सवं शांतिः शांतिरेव शांतिः सा मा शांतिरेधि॥ शांतिः शांतिः शांतिः॥  यजुर्वेद के इस मंत्र के द्वारा साधक जगत के समस्त जीवों, वनस्पतियों और प्रकृति में शांति बनी रहे, इसकी प्रार्थना कर रहा है। इस मंत्र का शाब्दिक अर्थ लें, तो कहा गया है कि हे परमात्मा शांति कीजिए, वायु में शांति हो, अंतरिक्ष में शांति, पृथ्वी पर शांति हो, जल में और औषधियों में शांति हो, वनस्पतियों में शांति हो, प्रकृति में शांति हो, सब तरफ शांति हो। हे परमपिता परमात्मा शांति हो, शांति हो, शांति हो।

आज पर्यावरण संरक्षण को लेकर देशव्यापी और विश्वव्यापी सेमिनार हो रहे हैं। कार्यशालाओं में व्याख्यान दिए जा रहे हैं और स्कूली विद्यार्थियों द्वारा रैलियां  निकाली जा रही हैं, लेकिन धरातल पर प्रदूषण की मार और बदहाल तस्वीर यत्र-तत्र और सर्वत्र देखी जा सकती है। भारतीय संस्कृति एवं शास्त्रों में आज से हजारों वर्ष पूर्व की पर्यावरण सुरक्षा और वृक्षों को लेकर अनेक प्रार्थनाएं पढ़ने को मिलती हैं। मत्स्य पुराण में कहा गया है कि 10 कुओं के बराबर एक बावड़ी होती है, 10 बावडि़यों के बराबर एक तालाब होता है, 10 तालाबों के बराबर एक पुत्र होता है और 10 पुत्रों के बराबर एक वृक्ष होता है। लेकिन हम लोग क्या कर रहे हैं, बेरहमी से वृक्षों का कटान कर रहे हैं। इस वर्ष हमने 45वां विश्व पर्यावरण दिवस मनाया। इस बार की विषय वस्तु थी ‘प्लास्टिक प्रदूषण की समाप्ति’। हम सभी जानते हैं कि यह जानलेवा पदार्थ प्राणियों की जिंदगी के लिए घातक है। विश्व की कुल पेट्रोलियम खपत का 4 फीसदी प्लास्टिक के उत्पादों के निर्माण हेतु इस्तेमाल किया जाता है। हिमाचल प्रदेश को प्रकृति का भरपूर प्यार, स्नेह, सानिध्य और आशीर्वाद प्राप्त है और शायद प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के दृष्टिगत ही हिमाचल प्रदेश सरकार ने एक कानून के अंतर्गत 15 अगस्त, 2009 से प्लास्टिक थैलियों के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी थी। अभी हाल ही में जयराम ठाकुर सरकार ने थर्मोकोल से बनी प्लेटों, डूनों और गिलासों के प्रयोग पर रोक लगा दी है, जो पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक सराहनीय प्रयास है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के अनुसार आज पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 500 अरब प्लास्टिक थैलियों का प्रयोग किया जाता है और हर साल 80 लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्र में गिराया जाता है, जो समुद्री पर्यावरण एवं महासागरीय जीव-जंतुओं, मछलियों तथा वनस्पतियों के लिए बेहद घातक है। ग्लोबल एलायंस ऑफ हेल्थ एंड पोल्यूशन तथा डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में जितने लोग कुपोषण, टीबी, मलेरिया से नहीं मरते, उससे कहीं ज्यादा पर्यावरण प्रदूषण से मरते हैं। भारत की 130 करोड़ की आबादी में से 40 करोड़ से ज्यादा लोग वायु प्रदूषण के कारण हृदय रोग, फेफड़े के कैंसर, सांस की बीमारी से पीडि़त हैं और इससे 5 लाख मौतें प्रतिवर्ष अकेले भारत में ही होती हैं। भारत के 11 बड़े शहर दुनिया के सर्वाधिक प्रदूषित शहरों में से एक हैं।   यह वक्त का तकाजा है कि हम समय रहते चेत जाएं और अपनी भावी पीढि़यों के लिए स्वस्थ एवं संपन्न विरासत छोड़कर जाएं। इसके लिए हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने होंगे, पानी को प्रदूषित होने से बचाने के साथ-साथ उसकी कम खपत सुनिश्चित बनानी होगी। बिजली के अनावश्यक उपयोग से बचते हुए, कपड़े ठंडे पानी से धोने होंगे। जैविक खाद अपनाकर सब्जियां उगानी होंगी और भोजन को व्यर्थ फेंकने से बचाना होगा। हमें भविष्य में अधिक से अधिक सोलर कुकर का इस्तेमाल करना होगा और वाहन प्रदूषण को नियंत्रित रखना होगा। पानी की बूंद-बूंद बचाने तथा कपड़े के थैले इस्तेमाल करने जैसे कारगर पग उठाने होंगे। कूड़े-कचरे को जलाने और स्वयं गंदगी फैलाने से बचना होगा। जन्मदिन या शादी की सालगिरह पर हरा पौधा गिफ्ट करने जैसी परंपराओं को शुरू करना होगा। यदि हमने अभी से पर्यावरण संरक्षण के प्रति अथक प्रयास शुरू नहीं किए, तो आने वाली पीढि़यां हमें कभी भी माफ नहीं करेंगी। पर्यावरण संरक्षण को ही अपना धर्म मानना होगा, केवल तभी पर्यावरण संबंधित समस्याओं से बचा जा सकता है।

हिमाचली लेखकों के लिए

लेखकों से आग्रह है कि इस स्तंभ के लिए सीमित आकार के लेख अपने परिचय तथा चित्र सहित भेजें। हिमाचल से संबंधित उन्हीं विषयों पर गौर होगा, जो तथ्यपुष्ट, अनुसंधान व अनुभव के आधार पर लिखे गए होंगे।

 -संपादक


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