पिं‌जरे में बंद हिमाचल

By: Sep 17th, 2018 12:05 am

प्रदेश की 2301 पंचायतें बंदरों और आवारा पशुओ से त्रस्त

चंबा से किन्नौर, ऊना से लाहुल तक आवारा पशुओं और बंदरों के आतंक से पूरा प्रदेश त्रस्त है। हालात ऐसे बन चुके हैं कि दिन में बंदर तो रात को आवारा पशु फसलों को चट कर रहे हैं । स्थिति कितनी गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश की 71 फीसदी पंचायतों में लोग खेती से मुंह मोड़ने लगे हैं और दस लाख बीघा भूमि बंजर हो चुकी है।  इस गंभीर समस्या पर लोगों की राय-दर्द और सरकार के विजन पर पढ़ें, इस बार का दखल…..

प्रदेश में बंदरों की कुनबा दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है। हालांकि नसबंदी के बाद प्रदेश में बंदरों की संख्या कम होने का दावा किया जा रहा है,लेकिन हकीकत यह है कि अभी भी इनकी संख्या में इजाफा हो रहा है। प्रदेश में साल 2003-04 में सरकारी सर्वे में बंदरों की तादाद 3.17 लाख पाई गई थी और इसके बाद प्रदेश में नसबंदी शुरू होने के बाद इनकी संख्या में करीब 90 हजार की कमी होने का दावा किया है, लेकिन किसान संगठनों इस सरकारी आंकड़ें से इत्तेफाक नहीं रख गए। किसान संगठनों की मानें तो राज्य में अभी भी करीब पांच लाख के आसपास बंदर है। राज्य में लाहुल जिला को छोड़कर बाकी 11 जिला बंदरों का आतंक किसी न किसी तरह से जूझ रहे हैं। जानकारी के अनुसार प्रदेश में कुल  पंचायतों में से करीब 71 फीसदी यानी 2301 पंचायतें बंदरों और अन्य जंगली जानवरों की समस्या से ग्रस्त हैं। इनमें 936 पंचायतो में कम, 770 पंचायतों में मध्यम और 595 पंचायतें इस समस्या से सबसे ज्यादा ग्रस्त है। यही हालात लावारिस पशुओं और आवारा कुत्तों की है। शहर की सड़कों पर आवारा कुत्ते झुंडों में घूम रहे हैं। ये आए दिनों लोगों को काट रहे हैं। वही लावारिस पशु गांवों से लेकर शहरों तक फैले हैं।  सरकारों द्वारा बंदरों, आवारा कुत्तों और लावारिस पशुओं की समस्या का कोई ठोस हल नहीं किया जा रहा। ऐसे में लोग परेशान हैं और हताश है। जंगली जानवरों और लावारिस पशुओं  के चलते हजारों किसान खेती छोड़ कर अब दो जून की रोटी के लिए मजदूरी करने को मजबूर हो गए हैं। पूरे प्रदेश में जंगली जानवर और आवारा कुत्ते बड़ी समस्या बने हुए हैं। ऐसे में हिमाचल अब पिंजरे में बंद लगता है।

न कोर्ट के आदेशों पर अमल और न ही बनीं गोशाला

प्रदेश में लावारिस पशुओं के संबंध में हाई कोर्ट के आदेशों पर भी कोई अमल नहीं हो पाया है। हाई कोर्ट ने लावारिस पशुओं की बढ़ती संख्या और इन पर हो रहे अत्याचार को देखते हुए राज्य की प्रत्येक पंचायत में गो सदन बनाने के आदेश दिए थे, लेकिन इस दिशा में कोई निर्णायक कदम नहीं उठाए गए हैं। हालांकि प्रदेश में कई पंचायतों की ओर से गोसदनों को बनाने के लिए प्रस्ताव भी सरकार को भेजे गए थे। कई पंचायतों ने इसके लिए भूमि का भी बाकायदा चयन किया था,लेकिन ये प्रस्ताव फाइलों में ही दफन होकर रह गए हैं।

राजगढ़ में हिमाचल प्रदेश की पहली काऊ सेंक्चुरी

प्रदेश में लावारिस पशुओं का दर्द समझते हुए सरकार ने राजगढ़ के गोटला बड़ोग में पहली कउ सेंक्चुरी बनाने की दिशा में कदम उठाया है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने बीते जुलाई माह में इसका शिलान्यास किया था। राजगढ़ क्षेत्र के कोटला बड़ोग में करीब 1.52 करोड़ की लागत से बनने जा रही यह पहली बड़ी कऊ सेंक्चुरी  आधुनिक सुविधाओं से लैस होगी। करीब 109 बीघा में बनने वाली इस सेंक्चुरी में 500 गायों को रखने की व्यवस्था होगी, लेकिन इस तरह की सेंक्चुरी को प्रदेश की विभिन्न जगहों पर खोले जाने की जरुरत है।

छोड़ी खेती, दस लाख बीघा जमीन बंजर

प्रदेश में किसानों को प्राकृतिक आपदाओं जैसे, सूखा, ओलावृष्टि, तूफान, बारिश का समय पर न आने की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है। वहीं अब प्रदेश में बंदरों और जंगली जानवरों की समस्या किसानों और बागबानों पर भारी पड़ रही है। सब्जियां, सेब व अन्य फल, मक्की व अन्य फसलों को बंदर चट कर रहे हैं। इसके चलते राज्य के कई हिस्सो में लोगों ने खेतीबाड़ी करना छोड़ दिया है। राज्य में कुल खेती योग्य जमीन 80 लाख बीघा के करीब है। बंदरों व जंगली जानवरों के आतंक के चलते करीब 10 लाख बीघा पर खेती करना किसान छोड़ चुके हैं, जिससे ये जमीन बंजर हो चुकी है।  राज्य में करीब आठ लाख किसान परिवार इस समस्या से जूझ रहे हैं। वहीं सालाना हर साल करीब 250 से 300 करोड़ रुपए का नुकसान फसलों को हो रहा है।

बेसहारा पशुधन को दिलाएंगे आश्रय

वीरेंद्र कंवर , पशुपालन मंत्री

दिहि. कब तक बनेंगी काऊ सेंक्चुरीज?

कंवरः सरकार असहाय पशुओं को आश्रय देने के लिए कृतसंकल्प है। बजट में इसका  प्रावधान  है।  ग्रामीण स्तर पर भी ऐसे आश्रय स्थल तैयार किए जाएंगे।  कुछ दिनों में सेंक्चुरीज को लेकर सरकार बड़े ऐलान करेगी। जगहों का चयन में परेशानी वन क्षेत्र की आ रही है। जहां पर भी सरकारी जमीन मिलेगी, वहां पर कऊ सेंक्चुरी स्थापित करने का प्रस्ताव है। कई स्थान चिन्हित किए गए हैं। ऊना में एक बड़ी कऊ सेंक्चुरी प्रस्तावित है।

दिहिः  कब तक आफत बने रहेंगे लावारिस पशु, अब तो कुत्ते भी जान लेने लगे हैं?

कंवरः  राज्य में 30 हजार बेसहारा पशु हैं,जिसमें से 10 हजार को आश्रय दिया जा चुका है। अभी भी 20 हजार के करीब पशु सड़कों पर है। सरकार इनके आश्रय के लिए लगातार प्रयासरत है और अब ज्यादा समय नहीं लगेगा जब सड़कों पर ये पशु नहीं दिखेंगे।  आवारा कुत्तों पर स्थानीय निकायों व पंचायतों के माध्यम से नकेल डाली जा रही है। आने वाले दिनों में बड़ा अभियान छेड़कर लोगों की आफत को खत्म किया जाएगा।

दिहिः  पशुओं के हमले से इनसान भी मर रहे हैं, फिर भी गंभीरता नहीं?

ेकंवरः ऐसा बिलकुल नहीं है कि सरकार गंभीर नहीं। यह मसला अभी का नहीं बल्कि सालों से चल रहा है। सरकार  लोगों को इनसे राहत दिलाने और बेसहारा पशुओं को आश्रय देने में जुटी है।

बंदरों के लिए बनेंगी सेंक्चुरी

गोबिंद ठाकुर, वन मंत्री

दिहिः बंदरों से कब तक  मुक्त होगा यह प्रदेश?

गोबिंदः  बंदरों को पकड़ने और इनकी संख्या पर रोक लगाने के लिए तेजी से काम किया जा रहा है। अलग-अलग टीमें बंदर पकड़ने में लगी हैं, जिनको इंसेंटिव भी दिए जा रहे हैं। इनके बंध्यीयकरण का काम चल रहा है। सरकार गंभीरता से बंदरों की समस्या से निजात दिलाने को प्रयासरत है। बंध्यीयकरण के नतीजे आने वाले समय में देखने को मिलेंगे। बंदरों को आबादी से दूर करने को भी योजना पर काम किया जा रहा है

दिहिः  सरकार क्यों असमर्थ है बंदरोें को नियंत्रित करने में, कहां आ रही दिक्कतें?

गोबिंदः  बंदरों पर नियंत्रण के लिए कई बाधाएं हैं। धार्मिक कारणों के साथ साथ कानूनी बाधाएं भी हैं। कई पंचायतों में बंदरों को वर्मिन घोषित किया जा चुका है मगर लोग धार्मिक आस्थाओें के चलते नहीं मारते। कई समाजसेवी संस्थाएं भी कार्रवाई नहीं करने देतीं, परंतु कारगर तरीके से कदम भी उठाए जा रहे हैं।

दिहिः  क्या बंदरों के लिए भी सेंक्चुरीज बनाने की कोई योजना है?

गोबिंदः शिमला के टूटीकंडी में बंदरोें पकड़कर रखा जा रहा है। यहां पर 200 की कैपेस्टी को भी बढ़ाया जा रहा है साथ ही जंगलों को चिन्हित कर रहे हैं, जहां पर जालियां लगाकर बंदरों को रखा जाएगा। यहां उनकी खाने की आदत को बदला जाएगा, ताकि वे जंगलों से बाहर न आएं। इस तरह के फलदार पौधे लगाने का काम जंगलों में शुरू भी किया जा चुका है जहां आने वाले समय में बंदरोें को छोड़ा जाएगा। लोगों को इनकी समस्या से निजात मिल सके इसके लिए सरकार गंभीर है और वन विभाग लगातार कोशिशें कर रहा है।

कोर्ट के आदेश पर जागा प्रशासन

शिमला शहर में बंदरों के बढ़ते आतंक को देखते हुए हाई कोर्ट ने शिमला में कुछ कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट ने कहा है कि कालीबाड़ी मंदिर से लेकर चर्च और हाई कोर्ट तक बंदरों से निपटने के लिए प्लान तैयार किया जाए। ये वे जगह हैं, जहां पर बंदरों की समस्या काफी जगह है। इसके बाद इसके लिए निगम प्रशासन भी जुट गया है। इससे पहले  बंदर भगाने के लिए वन विभाग ने एक निजी कंपनी के साथ मिलकर अल्ट्रा साउंड उपकरण का भी प्रयोग किया था,  लेकिन यह प्रयोग नाकामयाब रहा।

जान के दुश्मन बने आवारा पशु-बंदर

जंगलों की दहलीज लांघ घर-आंगन तक पहुंच चुके बंदर, सड़कों और गलियों में नजर आ रहे कुत्तों के झुंड, सड़कों पर गति अवरोधक बन खड़े हो रहे लावारिस पशु अब लोगों की जान भी लेने लगे हैं। कभी मनुष्यों से डरने वाले बंदर अब लोगों को डरा भी रहे हैं तो उनको काट भी रहे हैं। पालमपुर उपमंडल में ही अनेक लोग इन आवारा पशुओं के कारण चोटिल हो चुके हैं तो ठंडोल में बैल की टक्कर से एक व्यक्ति की मौत ने सबको हिला कर रख दिया है। पालमपुर व मारंडा के बाजारों में बैलों की लड़ाई से वाहनों के क्षतिग्रस्त होने के मामले तो अब सोशल नेटवर्क साइट्स पर लगातार दिखाई देने लगे हैं। दरंग से लेकर बैजनाथ तक सड़कों पर आवारा पशुओं की संख्या चिंताजनक तौर पर बढ़ रही है और यातायात में बाधा उत्पन्न करने के साथ दुर्घटनाओं का सबब भी बनने लगी है। घुग्गर, चौकी, बिंद्रावन व आईमा पंचायतों में टोलियों में घूमते बंदर दिखाई देना आम बात हो गई है तो रात के समय घुग्गर पंचायत में स्थित काली बाड़ी मंदिर के पास वाले मैदान में शाम ढलते ही आवारा गाय व बैलों का हुजूम नजर आने लगा है। राजपुर टांडा पंचायतों के साथ पठानकोट मंडी नेशनल हाई- वे पर एचआरटीसी वर्कशॅप से लेकर बनूरी तक पशु सड़क पर ही डेरा जमाए बैठे रहते हैं। उधर पालमपुर बाजार में भी ठाठ से घूमते आवारा पशु परेशानी का सबब बन चुके हैं।

बंदरों की नसबंदी पर बहाए जा रहे करोड़ों

वर्मिन घोषित करने के बाद बंदरों को  मारा जाना चाहिए था, लेकिन प्रदेश सरकार का वन महकमा बंदरों को पकड़ कर इनकी नसबंदी कर इसपर करोड़ों बहा रहा है। किसान संगठन सरकार और विभाग के इस कदम से हैरान हैं। प्रदेश में अब तक करीब 1.43 लाख बंदरों की नसबंदी की गई है। इस तरह इन बंदरों पर ही करीब 28 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं। किसान सभा के प्रदेशाध्यक्ष डा. कुलदीप तंवर का कहना है कि अगर इनकी संख्या से आधे बंदरों को भी पकड़कर इनकी कलिंग की गई होती तो आज प्रदेश में स्थिति कुछ और ही होती, लेकिन विडंबना  यह है कि बंदरों को पकड़कर नसबंदी करके खुले छोड़ा जा रहा है और जो कि आतंक फैला रहे हैं।

बंदर मारने कोई नहीं आ रहा आगे

प्रदेश में बंदरों को वर्मिन घोषित के बावजूद इनको मारने के लिए कोई भी आगे नहीं आ रहा।  बीते दिसंबर माह में 38 तहसीलों व उप तहसीलों के साथ-साथ शिमला में बंदरों को वर्मिन घोषित कर दिया गया था, लेकिन करीब नौ माह बीतने के बाद भी अभी तक करीब आधा दर्जन बंदरों को किसानों द्वारा मारा गया है। लोग बंदरों को मारने में खुद को असमर्थ पा रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह हथियारों की कमी है। राज्य में करीब 65 हजार लाइसेंसी हथियारों जारी किए गए हैं और इनमें भी अधिकांश लोगों ने शौक के तौर पर हथियार ले रखे हैं। बताया जा रहा है कि खेतीबाड़ी से जुड़े लोगों के पास हथियार बहुत कम है, वहीं जिनके पास हथियार भी हैं, वे इसके लिए गोला बारुद नहीं खरीद पाते क्योंकि यह भी महंगा पड़ता है। किसान संगठन सरकार से इनको मारने के लिए विशेष दस्ते गठित करने की मांग रहे हैं,इसके अलावा धार्मिक आस्था के चलते बंदर को नहीं मारा जा रहा है।

सड़क से लेकर घर-आंगन तक गोबर

लावारिस पशु आज किसान-बागबान और मुसाफिरों के लिए आफत बन गए हैं। लावारिस पशुओं ने सड़क से लेकर घर-आंगन तक सब कुछ गोबर कर दिया है। प्रदेश में आवारा (लावारिस) पशुओं ने कृषि को उजाड़कर रख दिया है। इतना ही नहीं कुछ किसानों ने तो इनके भय से खेतीबाड़ी तक छोड़ दी है।  लावारिस पशु पूरी तरह से आजाद हैं। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों की बात की जाए तो आवारा पशु आजाद होकर खेतों में फसलों को चपट कर रहे हैं। अब तो शहरों की मुख्य सड़कों सहित पार्कों में भी आवारा पशुओं का डेरा है। जनता इनके आतंक से त्रस्त हैं। मगर सरकार जनता को उक्त समस्या से निजात दिलाने के लिए गंभीर नहीं है। हालांकि हाई कोर्ट ने हर पंचायत में गोे सदन खोलने के आदेश दिए थे। मगर राज्य में नाम मात्र जिलों की पंचायतों में ही गोसदन खुल पाए। अधिकतर गोसदन फोरेस्ट एक्ट के फेर में फंसे हुए हैं।

जिलावार लावारिस पशुओं का आंकड़ा

बिलासपुर 1609

चंबा       244

हमीरपुर   370

कांगड़ा    10,791

किन्नौर    915

कुल्लू      3401

लाहुल-स्पीति1201

मंडी       2352

शिमला    5091

सिरमौर    404

सोलन     2690

ऊना       2092

बंदरों के हमले

साल      हमले 

2006-07 18

2007-08 71

2008-09 112

2009-10 163

2010-11 402

2011-12  399

2012-13  358

2013-14  513

2014-15  59

2015-16 154

2016-17 50

2017-18  86

जानवरों की इस समस्या के लिए इनसान भी काफी हद तक जिम्मेदार है। सरकार और समाज को मिलकर इस समस्या का समाधान निकालना चाहिए। यह काम केवल सरकार का ही नहीं है। हमें पर्यावरण और जंगलों को बचाना चाहिए

— रविंद्र डोगरा,कारोबारी  (शिमला)

घर से निकलते वक्त हमेशा डर बना रहता है कि रास्ते में कहीं कोई आवारा कुत्ता व बंदर हमला न कर दे। बच्चों को स्कूल के लिए अकेले नहीं भेज सकते। सरकार को बंदरों और पशुओं की इस समस्या पर कोई ठोस हल निकालना चाहिए

— रीता सेकटू, गृहिणी ,(शिमला)

लावारिस पशुओं से हर वक्त हमले का डर लगा रहता है। बंदर कई बार हाथ से सामान छीनते हैं और रोकने पर वे हमलावर हो जाते हैं। सरकार ने इस समस्या को सुलझाने के लिए कुछ प्रयास तो जरूर किए, लेकिन कोई भी प्रयास सफल नहीं हो पाया

— अनीता, गृहिणी , (शिमला)

घर से बाहर कपड़े सुखाने के लिए डालने हो तो बंदरों इनको भी ले जाते हैं। जंगलों में फलदार  पौधे लगाने चाहिए। सरकार को इनकी समस्या का कोई ठोस कदम उठाना चाहिए। वहीं, पंचायतों को भी पशुओं की समस्या के हल के लिए आगे आना चाहिए

— रितु, गृहिणी, (शिमला)

लावारिस पशुओं के कारण जगह-जगह पर गंदगी फैल रही है। वहीं कई बार ये हादसों की वजह भी बन रहे हैं। कई लोग बंदरों को खाना दे देते हैं और इनके साथ सेल्फी लेना गौरव की बात मानते हैं। बंदरों को न खिलाने के बारे में स्थानीय लोगों के साथ-साथ टूरिस्टों को जागरूक करना होगा

—  विक्रम, छात्र, (शिमला)

ऊना के पंडोगा में बंदरों से फसलें बचाना मुश्किल हो चुका है। दिन में बंदर तो  रात को  आवारा पशु फसलें चट कर रहे हैं। सरकार को इस समस्या की ओर उचित कदम उठाने चाहिए

— लेख राज, समाजसेवी

बंदरों और आवारा पशुओं की समस्या के चलते किसान-बागबान खेती करना छोड़ रहे हैं। सरकार को बंदरों की  समस्या के समाधान के लिए हर क्षेत्र में नसबंदी केंद्र और आवारा पशुओं की समस्या के समाधान के लिए गोशालाएं खोलनी चाहिए

— शिव शशि, किसान

बिलासपुर के किसानों को जंगली जानवरों ने खासा परेशान कर रखा है जिससे  कई क्षेत्रों के किसानों ने खेतीबाड़ी से पलायन कर लिया है। सरकार को चाहिए कि जंगली जानवरों की समस्या से निजात दिलाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएं

— डा. केडी लखनपाल, अध्यक्ष, सेवानिवृत्त कर्मचारी कल्याण एवं विकास मंच बिलासपुर

बिलासपुर में बंदर, सूअर व अन्य जंगली जानवर फसलों को चट कर रहे हैं । बंदरों को पकड़ने को लेकर भी योजना है, लेकिन इसे क्रियान्वित करने की जरूरत है। वहीं,  हर पंचायत में गोसदन बनाए जाने के निर्णय को सरकार को प्रभावी ढंग से क्रियाविंत करना चाहिए

— रूपलाल ठाकुर , किसान

पालमपुर में  आवारा पशुओं तथा बंदरों की समस्या दिन प्रतिदिन गंभीर बनती जा रही है । हालात यह है कि किसानों ने खेती करना नहीं छोड़ दिया है। ऐसे में सरकार को कोई ठोस नीति बनाकर लोगों को राहत देनी चाहिए

— संजय चौहान, समाजसेवी

अधिकारी एक-दूसरे पर डालते हैं जिम्मेदारी

परवाणू नप में एनिमल एंड बर्ड सोसायटी परवाणू के अध्यक्ष और स्थानीय निवासी सतीश बेरी का कहना है कि लोग दुधारू पशुओं को दूध देना बंद करने पर इनको यहां-वहां छोड़ देते हैं, लिहाजा वे चारे की तलाश में भटकते रहते हैं। इस समस्या को सरकार ने खुद ही बड़ा बना दिया है। सरकारी अधिकारी इससे निपटने के लिए समन्वित प्रयास कम करते हैं। अपनी जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालते रहने से समस्या बनी रहती है। परवाणू नप ने गोशाला खोल दी, लेकिन एक भी पशु को इसमें नहीं रखा जा रहा है। न ही पशुओं के इलाज के लिए पशु चिकित्सक या स्टाफ  की नियुक्ति तक नहीं की गई है न ही इसमें चारे की व्यवस्था की गई है, जबकि वह खुद उक्त समस्याओं के बारे में सरकारी अधिकारियों को पत्र लिखकर आग्रह तक कर चुके हैं, लेकिन अधिकतर सरकारी पत्र व्यवहार कागजों में ही पड़ा रहता है।

सूत्रधार — शकील कुरैशी, खुशहाल सिंह, टेकचंद वर्मा, अश्वनी पंडित, अनिल पटियाल, जयदीप रिहान,कुलदीप कृष्ण


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