वासुकि नाग की तीर्थ यात्रा

By: Sep 8th, 2018 12:10 am

डा. कुलदीप चंद अग्निहोत्री

लेखक, वरिष्ठ स्तंभकार हैं

एक बार महाराजा हरि सिंह ने भद्रवाह-चंबा सड़क बनाने की योजना भी बनाई थी, लेकिन तभी सत्ता शेख अब्दुल्ला के हाथ आ गई और उसके बाद यह प्रकल्प ठप हो गया। हिमाचल प्रदेश सरकार के पर्यटक विभाग को यह प्रयास करना चाहिए कि पठानकोट से भद्रवाह के वासुकि नाग मंदिर तक तीर्थ यात्रा के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं, ताकि वासुकि नाग की यह ऐतिहासिक तीर्थ यात्रा फिर शुरू हो सके। इसमें जम्मू-कश्मीर सरकार से भी सहयोग लिया जा सकता है, क्योंकि कश्मीर के वाशिंदे मूलतः नागवंश के ही लोग हैं …

देश भर में नागों से संबंधित अनेक स्मारक स्थल और तीर्थ स्थान हैं। भारत की प्राचीन जातियों में से एक प्रसिद्ध जाति नाग भी है। इतिहास में आर्यों और नागों के संघर्ष के अनेक किस्से पुराणों में भरे पड़े हैं। इस संघर्ष के किस्सों को पढ़कर बहुत से पश्चिमी विद्वानों ने आर्यों के देश से बाहर से आने के किस्से प्रचलित कर दिए। देश में विभिन्न जातियों के संघर्ष की कथा-कहानियां तो विद्यमान हैं और ऐसा हर देश के इतिहास में मिल जाएगा, लेकिन उनको लड़ते-झगड़ते देख यह कल्पना कर लेना कि उनमें से कोई बाहरी है, पश्चिम के शरारती दिमाग की उपज ही हो सकती है। पुराने इतिहास में सागर मंथन के प्रयासों का उल्लेख आता है। वह सभी जातियों का आपस में मिल-बैठकर संवाद रचना का ही प्रयास है। इस सागर मंथन में नाग, आर्य व अन्य जातियों के लोग एक व्यास आसन पर एकत्रित हुए और सभी विषयों पर चर्चा हुई। इस संवाद रचना को आयोजित करने में वासुकि नाग की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी, इसका जिक्र भी पुराणों में आता है। उसकी भाषा चाहे साहित्यिक है कि मंथन के लिए रज्जु का कार्य वासुकि नाग ने किया। यद्यपि नागों के इतिहास में अन्य अनेक महत्त्वपूर्ण और बलशाली नागों का जिक्र मिलता है। तक्षक नाग तो सर्वविदित है ही। पंजाब का प्रसिद्ध नगर तक्षशिला, जहां दुनिया की सबसे पहली यूनिवर्सिटी स्थापित हुई थी, उसी तक्षक नाग के नाम पर बसा था, लेकिन भारत की सभी जातियों और वंशों को एक स्थान पर लाकर संवाद रचना का पहला सफल प्रयास वासुकि नाग ने ही किया था। इतना ही नहीं, इस मंथन के बाद ही यह तय हुआ था कि भारत की चारों दिशाओं में नियत समय के अंतराल पर महाकुंभों का आयोजन होगा। यह परंपरा आज तक चली हुई है। दुनिया भर में राष्ट्रीय एकता की इससे बड़ी मिसाल नहीं मिलेगी, लेकिन आर्य और नाग वंश दोनों ही हिंसा में विश्वास रखते थे।

यही कारण था कि लड़ते-भिड़ते रहते थे। आर्यों की हिंसा की स्थिति तो यहां तक आ पहुंची कि यज्ञ में भी पशु बलि देने लगे। नागों की फुंकारें इतनी फैलीं कि लोगों ने उनकी तुलना सांपों से ही करनी शुरू कर दी। दोनों समुदायों में हिंसा को दूर करने के लिए महात्मा बुद्ध ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई। उन्होंने यज्ञ में पशु बलि का निषेध किया और नागों से भी हिंसा का रास्ता छोड़ देने का आग्रह किया। यही कारण था कि अधिकांश नाग महात्मा बुद्ध के शिष्य हुए, यद्यपि बुद्ध स्वयं आर्य वंश के थे। 1956 में जब भीमराव रामजी अंबेडकर ने नागपुर में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बुद्ध की शरण में चले जाने का निर्णय किया, तो बहुत सी अखबारों ने मोटी-मोटी खबरें लगाईं कि नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मुख्य कार्यालय है, इसलिए उसको उत्तर देने के लिए अंबेडकर ने नागपुर को दीक्षा के लिए चुना है। इसका स्पष्टीकरण करते हुए अंबेडकर ने कहा था कि मेरा संघ से कोई विरोध नहीं है, जिसके कारण मैंने नागपुर का चयन किया हो।

नागपुर नाग भूमि है और नाग ही बड़ी संख्या में बुद्ध के शिष्य बने थे, इसलिए मैंने नागपुर का चयन किया है। उन्हीं नागों में से, जिन्होंने भारतीय इतिहास में सर्वाधिक गौरवशाली भूमिका निभाई, वासुकि जी का अति प्राचीन मंदिर जम्मू-कश्मीर में भद्रवाह में स्थित है। शताब्दियों पहले इस मंदिर में वासुकि नाग महाराज के दर्शन करने के लिए देश भर से श्रद्धालु आते थे। धीरे-धीरे मुगल काल में हालात बदलते गए और इस प्रकार की तीर्थ यात्राएं करना हिंदुओं के लिए मुश्किल होता गया, फिर भी साधु-संत तो चले ही रहते थे। जब महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू-कश्मीर को अफगानों की गुलामी से मुक्त करवा लिया, तब फिर इस प्रकार के लुप्त हो चुके तीर्थ स्थानों की ओर ध्यान आकर्षित हुआ। वैसे भी भद्रवाह तो बहुत लंबे अरसे तक चंबा रियासत का हिस्सा रहा था, इसलिए वासुकि नाग मंदिर की महत्ता किसी न किसी रूप में बनी रही।

एक बार महाराजा हरि सिंह ने भद्रवाह-चंबा सड़क बनाने की योजना भी बनाई थी, लेकिन तभी सत्ता शेख अब्दुल्ला के हाथ आ गई और उसके बाद यह प्रकल्प ठप हो गया। हिमाचल प्रदेश सरकार के पर्यटक विभाग को यह प्रयास करना चाहिए कि पठानकोट से भद्रवाह के वासुकि नाग मंदिर तक तीर्थ यात्रा के लिए विशेष सुविधाएं उपलब्ध करवाई जाएं, ताकि वासुकि नाग की यह ऐतिहासिक तीर्थ यात्रा फिर शुरू हो सके। इसमें जम्मू-कश्मीर सरकार से भी सहयोग लिया जा सकता है, क्योंकि कश्मीर के सभी वाशिंदे तो मूलतः नागवंश के ही लोग हैं ।

ई-मेलः kuldeepagnihotri@gmail.com


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