सिरमौर प्रजामंडल ने उठाई थी कुनबापरस्ती के विरुद्ध आवाज

By: Sep 16th, 2018 12:05 am

चंबा रियासत के प्रजामंडल ने मांग की कि रियासत में लोकप्रिय सरकार बना दी जाए। प्रजामंडल कार्यकर्ताओं ने कुनबापरस्ती के विरुद्ध भी आवाज उठाई और उनका यह भी कहना था कि रियासत के दीवान ने सारे अधिकार अपने हाथ में कर रखे हैं। इसके परिणामस्वरूप आंदोलन ने जोर पकड़ा और इसके कारण कई व्यक्तियों को हिरासत में ले लिया गया। गांधी जी ने अंहिसा से आंदोलन चलाने के लिए कहा..

सिरमौर प्रजामंडल :

 इसी अवधि में सिरमौर में भी प्रजामंडल ने जोर पकड़ा। इसके प्रमुख कार्यकर्ता थे चौधरी शेर जंग, डा. देवेंद्र सिंह और शिवा नंद रमौल। प्रजा मंडल के लोगों को आतंकित करने के लिए रियासती सरकार ने डा. देवेंद्र सिंह, हरिचंद पाधा, इंद्र नारायण और उनके साथियों पर मुकदमे चलाए। उन पर महाराजा को जान से मारने तथा उनकी कार पर पत्थर फेंकने के झूठे आरोप लगाए गए। उन दिनों यशवंत सिंह परमार सिरमौर के डिस्ट्रिक्ट और सेशन जज थे। उन्होंने इस केस से संबंधित अपने फैसले में प्रजामंडल वालों का पक्ष लिया और उन पर लगे महाराजा की हत्या के आरोप को झूठा साबित किया। इससे यशवंत सिंह परमार के राजा राजेंद्र प्रकाश के साथ राजनीतिक मतभेद हो गए और इसी कारण डा. परमार ने सन् 1941 में अपनी नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। इस राजा ने उन्हें  रियासत से निकाल दिया। वह भी उस वर्ष घर छोड़कर चले गए और 1943 से 1946 के दिल्ली में सिरमौरियों को संगठित किया और अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए तैयार किया। इसके साथ-साथ दूसरी रियासतों के लोगों के साथ भी संपर्क बनाए रखा।

उधर, चंबा रियासत के प्रजामंडल ने मांग की, कि रियासत में लोकप्रिय सरकार बना दी जाए। प्रजामंडल कार्यकर्ताओं ने कुनबापरस्ती के विरुद्ध भी आवाज उठाई और उनका यह भी कहना था कि रियासत के दीवान ने सारे अधिकार अपने हाथ में कर रखे हैं। इसके परिणामस्वरूप आंदोलन ने जोर पकड़ा और इसके कारण कई व्यक्तियों को हिरासत में ले लिया गया। गांधी जी ने अंहिसा से आंदोलन चलाने के लिए कहा। अंग्रेजी के समाचार पत्र ‘दि ट्रिब्यून ने संपादकीय में लिखा’ सोए हुए चंबा में भी जागृति आ गई है। लोकतांत्रिक विचार पहाड़ी अवरोध को पार करके रियासत के लोगों के पास पहुंचे हैं और वे उत्तरदायी सरकार के लिए मांग कर रहे हैं।

बुशहर प्रजा मंडल :

बुशहर प्रजा मंडल को 1945 ई. मैं पुनः सक्रिय कर दिया गया। इस  अवधि में बुशहर की और संस्थाओं  जैसे ‘बुशहर सुधार सम्मेलन’ ‘बुशहर प्रेम सभा और’ सेवकमंडल दिल्ली में भी बुशहर के लोगों को संगठित किया। पंडित पद्मदेव ने शिमला में इसके लिए कार्य किया और रियासत के भीतर पंडित घनश्याम और सत्यादेव बुशहरी और  अन्य कईयों ने इनको सहयोग दिया। बाद के वर्षों में ठाकुर सेन नेगी ने भी प्रजा मंडल में सक्रिया रूप से भाग लेना आरंभ किया। इसके साथ-साथ ही बिलासपुर, जुब्बल और अन्य क्षेत्रों के प्रजा मंडलों ने भी अपनी-अपनी गतिविधियां तेज कर दीं। इसमें जुब्बल में भगमल सौहटा और बिलासपुर के दौलत राम सांख्यान ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इसके ही कारण भागमल सौहटा को पकड़ कर जेल भेज दिया गया।


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