सिर्फ हिंदी दिवस पर आती है राजभाषा की याद

By: Sep 14th, 2018 12:05 am

14 सितंबर को हिंदी दिवस देश भर सहित प्रदेश में भी मनाया जाएगा, लेकिन सिर्फ एक दिन हिंदी दिवस मनाने से राजभाषा अपना खोया हुआ स्थान प्र्राप्त कर सकेगी। इस बात को लेकर ‘दिव्य हिमाचल’ ने जिला मुख्यालय धर्मशाला में लोगों की नब्ज टटोली, तो यूं निकले उनके जज्बात      

हिंदी में कोई बात नहीं करता

धर्मशाला के लेखक सत्येंद्र गौतम का कहना है कि हिंदी की बात तो सभी करते हैं, परंतु हिंदी में बात कोई नहीं करता। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी का उपरोक्त कथन हिंदी की वर्तमान दशा को दर्शाने के लिए एकदम सटीक है। वस्तुतः यह इस कारण नहीं है कि हम किसी अन्य भाषा में निपुण हो गए हैं, परंतु वर्तमान में भी हम मानसिक गुलामी के आवरण से मुक्त नहीं हो पाए हैं।  हिंदी का उत्थान तभी संभव है, जब हमें अपनी भाषा अपनी संस्कृति अर्थात समग्र रूप में अपनी राष्ट्रीयता पर गर्व हो।

प्रधानमंत्री के भाषण से लें सीख

धर्मशाला के संग्राम गुलेरिया का कहना है कि हिंदी को कठिन और उपहास बनाने वाली समझकर पीछे छोड़ दिया गया है। उनका कहना है कि पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी ने यूएनओ में भी हिंदी में भाषण दिया, वह हमेशा हिंदी में बात करते थे। अब पीएम मोदी भी विदेशी धरती पर हिंदी का प्रयोग कर रहे हैं, ऐसे में अब देशवासियों को इससे सीख लेनी होगी। ऐसे में समाज को अब अपनी सोच बदलकर ही हिंदी को फिर से स्थापित किया जा सकता है।

राजनेता खुद हिंदी नहीं बोलते

धर्मशाला के नरेंद्र बड़ाण का कहना है कि हिंदी को निम्न स्तर पर पहुंचाने का कार्य भी समाज के ठेकेदारों ने ही किया है। हमारे देश के राजनेता नियम और कानून बनाने का कार्य करते हैं, वे ही इंग्लिश का प्रचार कर रहे हैं। राजनेता मात्र हिंदी दिवस पर हिंदी को बचाने का राग अलापते हैं, जबकि एक सख्त कानून बनाकर सरकारी-गैर सरकारी नौकरी में हिंदी को पूरी तरह से अनिवार्य कर देना चाहिए।

हिंदी को छोड़, इंग्लिश को दौड़

शहर के युवा अनिल भराण का कहना है कि आज की युवा पीढ़ी इंग्लिश में बात करने पर गौरव महसूस करती है। हमारे समाज ने हिंदी को पीछे छोड़कर इंग्लिश को महत्त्व वाली भाषा बना दिया है। उनका कहना है कि साक्षात्कार और किसी भी बड़े पद पर जाने से पहले युवा को अपनी हिंदी की बजाय अंग्रेजी सुधारने के लिए कार्य करना पड़ता है। ऐसे में इंग्लिश में कार्य करवाने वाले इन नियमों को बदलना चाहिए, जिसके स्थान पर हिंदी को महत्त्व दिया जाए।

एक-दूसरे को छोड़ें अपने घर से ही करें शुरुआत

धर्मशाला के साथ लगते क्षेत्र के पंचायत प्रतिनिधि किशन चंद का कहना है कि एक-दूसरे पर आरोप लगाने और थोपने की बजाय पहले हमें अपने घर से ही शुरुआत करनी होगी। देश के हर वर्ग और नागरिक को अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अपने बच्चों और खुद को हिंदी में बात करने पर गौरवमयी समझना होगा। उन्होंने कहा कि हिंदी के उत्थान के लिए राजनीतिक शक्तियों को पुरजोर कार्यालयों के कामकाज को हिंदी में चलाना अनिवार्य करना चाहिए। इससे आम लोग और खुद को समझदार समझने वाले लोगों को भी अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में हिंदी अपनानी पड़े।


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