सिर्फ हिंदी दिवस पर आती है राजभाषा की याद

By: Sep 14th, 2018 12:05 am

खुद गुलाम बनते जा रहे हैं

धर्मेंद्र का कहना है कि अंग्रेजों ने अपनी कूटनीतिक चालों से देश का गुलाम बनाया था, लेकिन उनके द्वारा छोड़ी गई अंग्रेजी की छाप से हम खुद गुलाम बनते जा रहे हैं। आज की युवा पीढ़ी अंग्रेजी की ओर से भागती दिख रही है, जिससे मातृभाषा तो दूर हिंदी का भी वजूद खतरे में हो गया है। अतः सरकार को हिंदी के उत्थान के लिए कड़े कदम उठाने हांेगे।

युवा काफी क्रेजी है

युवा दया ठाकुर का कहना है कि अंग्रेजी विषय को लेकर आज के युवा काफी क्रेजी है। साथ ही दूसरों के साथ अंग्रेजी में फेस आने पर खुद को काफी गर्वित महसूस करता है। जिससे हिंदी भाषा पिछड़ी जा रही है। युवाओं में हिंदी के प्रति रूची पैदा करनी होगी ताकि बदलते परिवेश में युवा इसे भूलता न चला जाए।

इंग्लिश की होड़ लगी है

अमन महाजन का कहना है कि शहरी के साथ ही मेटरों सिटी जैसे क्षेत्रों के हर मौहल्ले में इंग्लिश की होढ़ लगी है। जो हवा धीरे-धीरे गांव मंे भी पहुंच रही है, जिससे हिंदी का स्तर गिरता जा रहा है। उन्होंने सरकारी सहित गैर-सरकारी सभी तरह के कार्य को हिंदी मंे निपटाने की मांग उठाई है।

हिंदी को मिले बढ़ावा

धीरज बडियाल का कहना है कि राजभाष अधिनियम 1976 में केंद्र सरकार की ओर से किसी राज्य एवं किसी भी विशेष व्यक्ति के लिए भेजे जाने वाले पत्र को अंग्रेजी के साथ हिंदी में भेजना अनिवार्य किया गया है। उसी तरह से  प्रदेश में भी होने वाले सरकारी एवं गैर -सरकारी कार्य को हिंदी में अनिवार्य किया जाना चाहिए, ताकि हिंदी में कामकाज को बढ़ावा मिल सके।

समस्या खड़ी कर रहे हैं

अमर जीत का कहना है इंग्लिश स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों को हिंदी काउंटिंग के  साथ ही अन्य कई के विषय एवं वस्तुओं के हिंदी नामकरण का पता नहीं है। जो अनपढ़ के साथ कम साक्षर लोगों के लिए समस्या खड़ी कर रहे हैं। कई दफा दुकानों पर खरीददारी करने गए बच्चे को दुकान में वस्तु उपलब्ध होने पर भी ग्राहक बच्चे की ओर से लिए गए इंग्लिश नाम से वह उसे नहीं दे पाता है। उन्होंने इंग्लिश के पीछे भाग रहे बच्चपन को हिंदी का ज्ञान भी बरकरार रखने की बात कही है।


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