हिमाचली पुरुषार्थ :शिक्षा का नया उजाला दिखाते सुनील

By: Sep 2nd, 2018 12:07 am

अपने लिए तो सब जीते हैं कभी दूसरों के लिए जी करो देखो कितनी खुशी मिलती है। ऐसे है सुनील कुमार। देश सहित पहाड़ी राज्य हिमाचल प्रदेश में पटरी से नीचे उतर चुकी सरकारी शिक्षा पद्धति को अंधेरे में डूबते हुए देख सुनील कुमार धीमान ने नए उजाले की तरफ मोड़ दिया है। साथ ही उन्होंने देश सहित प्रदेश के सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को भी आज के समय का आईना दिखा दिया है। जो मात्र अपनी ट्रांसफर, वेतन वृद्धि, पदोन्नति, स्कूलों में कम होती छात्र संख्या सहित गिरते शैक्षणिक स्तर को सरकार और विभाग के साथ टकरार करते हुए भ्रम की स्थिति बनाए रखने में कामयाब हैं। सुनील कुमार धीमान ने स्कूल के सभी स्टाफ, प्रबंधन समिति और अभिभावकों को एक कड़ी में पिरौकर डूबते हुए शिक्षा के सूरज को आकाश की बुंलद ऊंचाईयों में पहुंचाने का बेमिसाल कार्य कर दिखाया है। राज्य के राजकीय प्राथमिक पाठशाला बंडोल को सरकारी स्कूलों का ऐसा मॉडल बनाकर पेश किया है, जो कि बड़े-बड़े स्कूलों सहित संस्थानों को भी पछाड़ कर रख दे। सुनील कुमार ने झोंपड़ी में रहकर मजदूरी करने के लिए बढ़ने वाले हाथों में किताबें थमा दी। तो वहीं अत्याधुनिक शिक्षा पद्धति को शुरू करते हुए बैगलेस, नोट बुक लैस, हर्बल गार्डन युक्त और प्रैक्टिकल ज्ञान देने वाला स्कूल बना दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में अदभूत योगदान को देखते हुए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार के लिए चयन किया है। अब पांच सितंबर को शिक्षक दिवस पर उप-राष्ट्रपति से राष्ट्रीय पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के ज्वालामुखी से संबंध रखने वाले सुनील कुमार धीमान ने आरंभिक पढ़ाई स्थानीय स्कूल में शुरू करने के बाद बीएससी, डिप्लोमा ईन सिविल इंजिनियरिगं और डिप्लोमा ईन स्पेशल एजुकेशन का अध्ययन किया। वर्ष 2000 से शिक्षा विभाग में बतौर शिक्षक अपनी सेवाएं शुरू कीं। इस दौरान ही उन्होंने नेशनल स्कूल सेफ्टी प्रोजेक्ट में बतौर जिला समन्वयक भी डाईट धर्मशाला से वर्ष 2012-14 तक कार्य किया है। इस दौरान भूकंप जोन-पांच में आने वाले कांगड़ा के स्कूलों को सुरक्षित बनाए जाने के लिए स्कूल डिजास्टटर मैनेजमेंट सहित अन्य महत्त्वपूर्ण कार्य पूरे किए। मौजूदा समय में सुनील जीपीएस बंडोल में बतौर शिक्षक सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। वर्ष 2014 में उनके स्कूल में पहुंचने के बाद बंडोल ने प्रदेश की शिक्षा प्रणाली में स्वर्णिम अध्याय लिख दिया है। बंडोल स्कूल को मॉडल बनाकर पूरे प्रदेश में शुरू करने से फिर से सरकारी स्कूलों मंे गुणवत्ता पूर्वक प्राईवेट स्कूलों को पछाड़ने वाली शिक्षा की शुरुआत करने का बेहतरीन उदाहरण दिया है। सुनील के प्रयासों से ही देवभूमि का बंडोल ऐसा सरकारी स्कूल बन गया है, जहां पर बच्चे बिना बैग और यहां तक की अब बिना नोट बुक के भी पढ़ाई कर रहे हैं। डिजिटल इंडिया के तहत प्राईमरी स्कूल में डिजिटल तरीके से ही बच्चों को बिना नोट बुक के अध्ययन करवाया जा रहा है। 120 से अधिक पहुंच चुकी छात्रों की संख्या वाले स्कूल में स्मार्ट क्लास रूम और प्रैक्टिकल शिक्षा प्रदान की जा रही है। स्कूल में हर्बल गार्डन भी तैयार किया गया है, जिसमें छात्रों द्वारा औषधिय पौधों के साथ-साथ जैविक खेती करते हुए सब्जियां तक तैयार करके मिड-डे-मिल में प्रयोग में लाई जा रही हैं। प्रदेश में शिक्षा के क्षेत्र में नया मील का पत्थर साबित करने पर सुनील कुमार धीमान को जिला और राज्य स्तरीय सहित कई पुरस्कारों से भी नवाजा गया है।

स्कूल में स्मार्ट क्लास रूम

स्कूल में स्मार्ट क्लास रूम का प्रावधान भी किया गया है। विभिन्न कक्षाओं की विषय-वस्तु से संबंधित पहलुओं को वीडियो इंटरनेट से जोड़कर बहुत ही सरल ढंग से समझाया जाता है। बच्चों में परंपरागत रटना या याद करना प्रणाली से हटकर विषय वस्तु को समझने व सीखने की कला विकसित की गई है। स्मार्ट क्लास रूम में नर्सरी से पांचवीं कक्षा तक के सभी विषयों से संबंधित शिक्षण सामग्री उपलब्ध है। स्मार्ट क्लास रूम को इंटरनेट से भी जोड़ा गया है। अभिभावक या अन्य अधिकारी बच्चों से दुनिया के किसी भी कोने से ऑनलाईन संवाद कर सकते हैं।

शिक्षक दिवस विशेष गतिविधि आधारित शिक्षा

स्कूल में शिक्षण कार्य को रोचक बनाने एवं विषय-वस्तु की समझ बढ़ाने के लिए गतिविधि आधारित शिक्षा दी जाती है। बच्चों को पर्यावरण की जानकारी आस पड़ोस में मौजूद चीजों के साथ समायोजन करके गतिविधियों द्वारा करवाई जाती है। स्कूल को बैग रहित बनाया गया है। स्कूल में सभी बच्चे बिना स्कूली बैग के आते हैं, बच्चों को किताबें स्कूल में ही उपलब्ध होती हैं। यंहा तक कि अब स्कूल को बिना नोटबुक के कागज का कम प्रयोग कर पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया जा रहा है।

जब रू-ब-रू हुए…  सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता बढ़ाने का समय…

आपके लिए आदर्श स्कूल के क्या मायने हैं। कोई खास परिभाषा?

आप में सही तरीके से काम करने की लग्न होनी चाहिए, फिर हर स्कूल को आदर्श स्कूल बनाया जा सकता है। मेरी नजर में बच्चों के हित के बारे में सोचकर सही तरीके से काम करना ही मॉडल स्कूल बनाने की परिभाषा होगी।

एक शिक्षक खुद को कैसे प्रमाणित कर सकता है?

सरकार द्वारा कोई भी योजना शुरू करने से पहले ट्रेनिगं करवाई जाती है, हर शिक्षक को अपने प्रशिक्षण को ईमानदारी से पूरा करके उसे ही जमीनी स्तर पर सकारात्मक व्यवहार रखकर पूरा करने से बेहतर परिणाम सामने आते हैं। नई योजनाओं का विरोध करने की बजाय उन्हें स्वीकार करना चाहिए।

शिक्षा की वर्तमान पद्धति में ज्ञान का स्वरूप क्या हो? और इसे  किस प्रकार पूर्ण रूप में स्वीकार करें?

 शिक्षा के पुराने ढर्रे को पूरी तरह से बदलने की जरूरत है। आज के बच्चे अत्याधुनिक टैक्नालौजी का प्रयोग करते हैं। ऐसे में पुराने चौक चलाने वाले तरीके के स्थान पर टैक्नलौजी का अधिक इस्तेमाल करना चाहिए। इन नई चीजों को स्वीकार करने में अध्यापक भी समय लगा रहे हैं, जिसे अब एक्सपेक्ट करना होगा।

राष्ट्रीय अवार्ड तक आपका सफर। क्या यही एक पैमाना है, जो संतुष्ट करेगा?

सच कहूं तो काम करते हुए कभी भी अवार्ड के बारे में सोचा भी नहीं और समझा भी नहीं। हालांकि एक-दो वर्ष पूर्व कुछ लोगों ने अवार्ड के बारे में बताया, तो उन्होंने प्रेरित किया। मेरा काम अवार्ड प्राप्त करना नहीं था, अब मैं अधिक जिम्मेदारी के साथ अपने काम को पूरा करने में जुट जांऊगा।

क्या हिमाचली शिक्षा के अक्स में ग्रामीण और शहरी इलाके विभाजित हैं। कमी कहां है और वजह क्या है?

हिमाचल में ग्रामीण क्षेत्रों के साथ ही शहरी क्षेत्रों में शिक्षा की हालत सही नहीं है। अब समय आ गया है कि सरकारी स्कूलों की विश्वसनीयता को कायम करना होगा, जिससे कि दूसरे स्कूलांे में छात्रों को भागने के लिए मजबूर नहीं होना पड़ेगा।

निजी स्कूलों के प्रबंधन से सरकारी शिक्षण संस्थाओं को क्या सीखना चाहिए?

सरकारी स्कूलों में प्रबंधन सहित अधिक छुपी हुई ताकते हंै। अगर सरकारी प्रबंधन को सही तरीके से लागू किए जाने का प्रयास किया जाए, तो सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदलने में अधिक समय नहीं लगेगा।

छात्रों के व्यक्तित्व विकास में आपकी ओर से किए गए प्रयास। इस दिशा में स्कूलों  में होना क्या चहिए?

छात्र के व्यक्तितव विकास में सबसे पहले उसे अपने आप को सुंदर भी बनाना होगा। फिजिकल अपयरेंस को ध्यान में रखते हुए ही स्कूल में स्मार्ट वर्दी, अच्छा दिखने पर सुंदर विचार, स्मार्ट अध्यापक और स्मार्ट क्लास रूम और स्कूल भी आत्मविश्वास बढ़ाने का कार्य करते हैं। ओवरऑल डवलपमेंट के लिए हर गतिविधि में छात्रों की प्रतिभागिता भी सुनिश्चित करनी चाहिए।

छात्रों में फैलते मानसिक तनाव की वजह को कैसे देखते हैं, और इससे छुटकारा कैसे मिले सकता है?

छात्रों के पास हमें मानसिक तनाव को भटकने ही नहीं देना चाहिए। उनके कैपेस्टी देखते हुए ही उनके साथ अपनी सच्ची लग्न, प्यार और विश्वास से जुड़कर पढ़ाई और हर कार्य करना चाहिए। जिससे वह कोई भी काम बोझ लगने की बजाय आंनद के साथ करें। बच्चों से ज्यादा बदलने की बजाय जैसे वह है, उन्हें वैसे ही स्वीकार करना चाहिए।

हिमाचली क्षमता विकास के लिए स्कूल में अध्यापक की भूमिका क्यों कमजोर पड़ गई?

हिमाचल में शिक्षा के क्षेत्र में लगातार विकास हो रहा है। आज के समय में हिमाचली लोग पढ़-लिखकर देश-विदेश तक में बेहतरीन कार्य कर अपनी छाप छोड़ रहे हैं, लेकिन अब अध्यापक को अपनी कमजोर पड़ी भूमिका में भी सुधार करना होगा।

आपकी प्रेरणा और ऊर्जा के स्रोत?

काम करने वाले हर व्यक्ति, बच्चे और लोगों से मुझे प्रेरणा और ऊर्जा मिलती है। व्यक्ति के लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं है, उसे पूरा करने की लग्न ही प्रेरणा देने का कार्य करती है। अपनी असफलताओं से भी मुझे काफी अधिक प्रेरणा मिलती है, जिससे अब लगातार आगे बढ़ने की ऊर्जा रहती है।

शिक्षकों के प्रति समाज का नकारात्मक नजरिया कैसे बदला जा सकता है?

पहले समय कुछ और था, और अब समय में बदलाव हुआ है। ऐसे में समाज का नजरिया बदलने के लिए अध्यापकों को खुद अच्छे प्रयास करने होंगे। लोगों का शिक्षकों पर विश्वास खत्म हो गया है, जिसे वापिस लाने के लिए कार्य करने होंगे। अब फिर से विश्वास को कायम रखने के प्रयास शुरू हो गए हैं, मुझे उम्मीद है कि जल्द साकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे।

हिमाचली शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाने हों, तो आपके तीन प्रमुख सुझाव?

बच्चों के हितों को ध्यान में रखते हुए नई योजनाओं को सकारात्मक तरीके से स्वीकार करना, योजनाओं को जमीनी स्तर पर सही तरीके से संचालित करने को दृढ़ता से प्रयास करने और हाईटैक टैक्नालौजी का शिक्षा में अधिक से अधिक समावेश करना जरूरी है।

— नरेन कुमार, धर्मशाला


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