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कहानी
गणेश जी के जन्म की कहानी बहुत रोमांचक है। बहुत साल पहले जब पृथ्वी पर राक्षसों का आतंक बढ़ गया था, तब महादेव शिव देवों की सहायता करने शिवलोक से दूर गए हुए थे। माता पार्वती, शिव भगवान की धर्मपत्नी, शिवलोक में अकेली थीं।
जब पार्वती जी को स्नान करने की इच्छा हुई, तो उन्हें घर की सुरक्षा की चिंता हुई। वैसे तो शिवलोक में शिव जी की आज्ञा के बिना कोई परिंदा भी पर भी नहीं मार सकता था, पर उन्हें डर था कि शिव जी की अनुपस्थिति में कोई अनधृकित प्रवेश न कर जाए। माता पार्वती को माता शक्ति भी कहा जाता है। अतः उन्होंने सुरक्षा के तौर पर अपनी शक्ति से एक बालक का निर्माण किया, और उनका नाम रखा गणेश। उन्होंने गणेश जी को प्रचंड शक्तियों से युक्त कर दिया और घर में किसी के भी प्रवेश करने से रोकने के कड़े निर्देश दिए। इसी के साथ माता पार्वती अपनी स्नान प्रक्रिया में व्यस्त हो गईं और गणेश जी अपनी पहरेदारी में लग गए।
इधर राक्षसों पर देवों का पलड़ा भारी पड़ रहा था। शिव जी युद्ध में विजयी हुए और खुशी-खुशी शिवलोक की तरफ चल पड़े। घर पहुंचकर सर्वप्रथम उन्हें पार्वती माता को अपनी विजय का समाचार सुनाने की इच्छा की। परंतु शिव जी के प्रभुत्व से अनजान गणेश जी ने उन्हें घर में प्रवेश करने से रोक दिया। अपने ही घर में प्रवेश करने के लिए रोके जाने पर शिव जी के क्रोध का ठिकाना न रहा। उन्होंने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर प्रवेश कर गए।
जब पार्वती जी को यह कहानी सुनाई उन्हें गणेश जी के मृत होने का समाचार सुनकर बड़ा रोष आया। उन्होंने शिव जी को अपने ही पुत्र का वध करने की दुहाई दी और उनसे गणेश जी को तुरंत पुनर्जीवित करने का अनुरोध किया। रूठी पार्वती माता को मनाने के अलावा शिव जी के पास कोई दूसरा रास्ता भी न था।
शिव जी ने कहा कि गणेश जी का सिर पुनः धड़ से तो नहीं जोड़ा जा सकता, परंतु एक जीवित प्राणी का सिर स्थापित जरूर किया जा सकता है। शिव जी के सेवक जंगल में ऐसे प्राणी को ढूंढने निकले जो उत्तर दिशा की तरफ सिर रख कर सो रहा हो। ऐसा ही एक हाथी जंगल में उत्तर दिशा की तरफ मुख किए सो रहा था। शिव जी के सेवक उसे उठा कर ले आए।शिव जी ने हाथी का सिर सूंड समेत गणेश जी के शरीर से जोड़ दिया और इस प्रकार गणेश जी के शरीर में पुनः प्राणों का संचार हुआ। इतना ही नहीं, शिव जी ने यह भी उद्घोषणा की कि पृथ्वीवासी किसी भी नए कार्य को शुरू करने से पहले गणेश भगवान की आराधना करेंगे और शुभारंभ के आशीर्वाद की लालसा करेंगे।
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