अलविदा निशांत …

By: Oct 28th, 2018 12:03 am

सुरेश सेन निशांत की बेशुमार छवियां मेरे ज़हन में अंकित हैं। मैंने उसे हमेशा खादी कुर्ते में, कंधे पर झोला लटकाए और उसमें साहित्यिक पत्रिकाओं के ताजे अंक लिए देखा। हिमाचल में काव्य गोष्ठी किसी भी शहर, कस्बे या गांव में हो, निशांत की कविताएं सुनने के लिए हर कोई लालायित सा रहता। लगता उसकी उपस्थिति के बगैर हर गोष्ठी फीकी सी हो। बहुत साल पहले जब मैंने पिता शीर्षक से उसकी एक लंबी कविता मंडी में एक गोष्ठी में सुनी थी तो प्रेक्षागृह में सब स्तब्ध से रह गए थे। मैं यह देखकर चकित था कि निशांत कैसे अंतर्मन से किसी झरने के समान फूटने वाली अनुभूतियों को संवेदना में ढालकर कुछ यूं प्रस्तुत करता है कि श्रोता को लगे कि यह उसी का निजी दुःख है। किसी भी साहित्यिक विधा का प्राण बिंदु शायद यही है कि वह काव्य से व्यष्टि से समष्टि की यात्रा तय करे। व्यवस्था से लड़ता-भिड़ता और समाज की संवेदनशून्यता से मुठभेड़ करता निशांत का कवि हमेशा उस आमजन के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है जो हाशिए पर सिमटा हुआ है। निशांत प्रगतिशीलता का  छद्म राग अलापने और लेखन में झंडे लहराने वाला कवि नहीं था। उसका समूचा लेखन मानवीयता के पक्ष में उन लोगों को समर्पित है जो दबे-कुचले हैं, शोषित हैं, वंचित हैं और व्यवस्था के सताए हुए हैं।  31 जुलाई 2015 को जब हमीरपुर में इरावती के बैनर में एक साहित्यिक सम्मेलन के लिए मैंने निशांत व  मंडी में कुछ और लेखकों को निमंत्रण भेजा तो वे सहर्ष पहुंचे। रवींद्र कालिया, विभूतिनारायण राय, ममता कालिया जैसे प्रगतिशील विचारधारा के दिग्गजों के उस कुंभ में सुरेश सेन निशांत ने अपने काव्य पाठ के साथ-साथ अपने वक्तव्य से सबको चकित सा कर दिया था। निशांत का विचार था कि आज अधिकांश लेखन सत्यता और ईमानदारी से कोसों दूर है। काफी बीमार होने के बावजूद वे 2017 की गोष्ठी में हमीरपुर आए। इरावती की साल 2017 की गोष्ठी ‘असहिष्णुता व अभिव्यक्ति के खतरे’ विषय पर केंद्रित थी और आरएसएस की विचारधारा के एचपीयू शिमला के पूर्व कुलपति डा. एडीएन वाजपेयी के समक्ष सुरेश सेन निशांत जैसे मार्क्सवादी चिंतन के लेखकों का जमावड़ा भी था। उन दिनों देश भर में असहिष्णुता के माहौल पर बहस और विवाद चरम पर थे। इस परिचर्चा में निशांत का कहना था कि फासीवादी ताकतें यानी भाजपा और आरएसएस की मुस्लिम विरोधी कट्टर विचारधारा के चलते सृजनकर्मियों का अस्तित्व खतरे में है। कहने को देश में लोकतंत्र है और संविधान में अभिव्यक्ति की आज़ादी भी है लेकिन आज देश में अघोषित आपातकाल का दौर है। यह कौन सा निज़ाम है कि अगर आप वैचारिक स्तर पर किसी से असहमत हैं तो उसकी हत्या कर दी जाए। गौरी लंकेश, दाभौलकर, पन्सारे, कॉलबुर्गी आदि अनेक बुद्धिजीवियों की हत्याओं से वे बेहद चिंतित और क्षुब्ध थे। कैंसर के साथ-साथ वे अनेक बीमारियों से लड़ते-भिड़ते रहे। हिमाचल में ही कुछ हताश व तथाकथित लेखकों का सालों से एक वर्ग सक्रिय रहा है जो निशांत, हरनोट जैसे समर्थ व सशक्त लेखकों के विरुद्ध सोशल मीडिया पर अभियान चला रहा है। ऐसी बेहूदा आलोचनाओं से निशांत डिप्रेशन का शिकार हुए। वे हिमाचल के कुछ उन लेखकों में शामिल थे जो जीते जी लीजेंड बन गए थे। लेकिन ऐसे लेखकों की कमी भी नहीं हैं जो निंदापुराण, दुष्प्रचार और उन्हें कवि के रूप में ‘खारिज़’ करने में हर वक्त साजिशें रचते रहते थे। शायद ऐसे मीडियोकर लेखक निशांत जैसे देशव्यापी लोकप्रियता को हासिल करने वाले लेखकों को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं। पहल के संपादक ज्ञानरंजन ने निशांत को हिमाचल का हीरा बताया और उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। कई साल पहले जब पहल में ही निशांत की कविताएं छपी तो उनका नाम देश के कुछ चुनिंदा शीर्ष कवियों में शामिल किया जाने लगा। सुरेश के भीतर हर वक्त जीवित रहने वाले कवि को जानने, परखने व उसके अंदर व्यवस्था के विरुद्ध धधकते लावे की आंच की तपिश मैंने कई दफा महसूस की। हिमाचल के लेखक समाज में हर किसी की जुबान पर निशांत की चर्चा है।

अलविदा कवि सुरेश सेन

सुरेश सेन निशांत का छोटी सी आयु में चले जाना अक्सर सबको हैरान और दुखद लगा। इंजीनियर लाइन का यह कवि साहित्य में अपना स्थान बनाने में सफल रहा। उसे केवल धुन थी लिखने की। इसी धुन ने उसे अपनों से अलग किया। वह दौड़ लगाता था या तो शिमला या मंडी। मंडी की संगत से ही उसकी लेखनी में निखार आता गया, फिर उसने अपना रुख शिमला की ओर कर लिया था। हिंदी की पत्रिकाओं में आए दिन वह छपता रहता था। उन्हें भी उसके जाने का दुख हुआ। मुंबई की चिंतन दिशा ने तो उसका शोक संदेश एक दम से छाप दिया। उसने अपने यहां आस-पास आना छोड़ दिया तो लगा वह अहंकारी होने लगा है, परंतु आज जब वह इस संसार में नहीं है तो पता चला कि वह बीमारी के कारण किसी से मिलना नहीं चाहता था। बस यही उसके जाने का भी कारण बना। अलविदा कवि, तूझे याद करेंगे आने वाले लोग, तुझे याद करेंगे आने वाली पीढि़यां।


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