जस्टिस रंजन गोगोई ने राष्ट्रपति भवन में भारत के 46वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली

By: Oct 3rd, 2018 11:03 am

जस्टिस रंजन गोगोई देश के 46वें चीफ जस्टिस बन गए हैं। राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने जस्टिस गोगोई को बतौर चीफ जस्टिस बुधवार को शपथ दिलाई। जस्टिस रंजन गोगोई का ध्यान जिन प्रमुख मुद्दों पर होगा, उनमें अयोध्या विवाद और असम में एनआरसी (नैशनल रजिस्टर फॉर सिटिजंस) शामिल हैं। गोगोई आज जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के. एम. जोसेफ के साथ मामलों की सुनवाई शुरू करेंगे।जस्टिस गोगोई का कार्यकाल 17 नवंबर 2019 तक है और इस दौरान सीजेआई कुछ काफी संवेदनशील मामलों की सुनवाई करेंगे। उनके सामने पहली चुनौती असम में एनआरसी के संकलन की प्रभावी निगरानी सुनिश्चित करना होगा। अगली सुनवाई में वह फैसला करेंगे कि एनआरसी ड्राफ्ट में जिन लोगों के नाम छूटे हैं, उनकी नागरिकता के सबूत के तौर पर राशन कार्ड को मान्यता दी जाए या नहीं। पड़ोसी देशों से आकर अवैध तौर पर असम में रहने वालों की पहचान और उन्हें बाहर करने के उद्देश्य से बन रहे एनआरसी के ड्राफ्ट में करीब 40 लाख लोगों के नाम नहीं हैं। एनआरसी मामले को जो बेंच सुन रही है, उसमें जस्टिस आर. एफ. नरीमन भी शामिल हैं। बेंच एनआरसी ड्राफ्ट में जगह न बना पाने वाले लोगों के डीटेल को केंद्र के साथ शेयर करने से मना कर चुकी है। इसके अलावा जस्टिस गोगोई को अयोध्या विवाद की सुनवाई पर भी फैसला करना है। अयोध्या केस की इस महीने के आखिर में सुनवाई शुरू होनी है। इस केस की सुनवाई करने वाली बेंच में सीजेआई दीपक मिश्रा के साथ जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस अब्दुल एस. नजीर शामिल थे। परंपरा के मुताबिक नई बेंच में भी जस्टिस भूषण और जस्टिस नजीर शामिल रहेंगे लेकिन सीजेआई गोगोई बेंच में शामिल जजों को बदल भी सकते हैं क्योंकि रोस्टर तय करना उनका अधिकार है। लोकपाल की नियुक्ति में देरी का मुद्दा भी सीजेआई गोगोई का ध्यान खींच सकता है। वह पहले ही इस मुद्दे पर सरकार की धीमी गति पर निराशा जाहिर कर चुके हैं, लेकिन उन्हें सरकार की तरफ से कोई आश्वासन नहीं मिला है। दागी नेताओं के मामलों की सुनवाई के लिए फास्ट-ट्रैक कोर्ट की स्थापना और उनके कामकाज के मुद्दे पर भी जस्टिस गोगोई विचार करेंगे। पिछली सुनवाई के दौरान उन्होंने केंद्र के हलफनामे पर नाखुशी जाहिर की थी। उन्होंने इस तरह के लंबित मामलों से जुड़े आंकड़ें मांगे थे जिसे सरकार नहीं पेश कर पाई थी। जस्टिस गोगोई कह चुके हैं कि वह सिर्फ उन्हीं जनहित याचिकाओं पर विचार करेंगे, जिन्हें किसी गरीब ने दाखिल की है। इससे साफ संकेत मिलता है कि वह हाल के सालों में तेज हुई जुडिशल ऐक्टिविजम पर कुछ हद तक लगाम लगाना चाहते हैं। जस्टिस गोगोई सुप्रीम कोर्ट के उन 4 जजों में शामिल थे, जिन्होंने ऐतिहासिक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर सीजेआई दीपक मिश्रा पर राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों को ‘जूनियर’ जजों की अगुआई वाली बेंच को सौंपने पर सवाल उठाए थे। इस तरह सीजेआई गोगोई के सामने यह भी चुनौती होगी कि रोस्टर को लेकर जजों के बीच असंतोष न हो।


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