पैराग्लाइडिंग रोमांच के जोखिम

By: Oct 27th, 2018 12:05 am

विश्व पैराग्लाइडिंग के मानचित्र में लगातार उड़ान भरती बीड़-बिलिंग घाटी आखिर क्यों हादसों की कब्रगाह बन रही है, इस सवाल का मौखिक उत्तर तो स्थानीय पायलट भी बता देंगे, लेकिन तैयारियों और सतर्कता का तानाबाना नदारद है। दो अंतरराष्ट्रीय पायलटों की मौत के बाद प्रशासन जरूर हरकत में आया, लेकिन किसी भी साहसिक खेल के लिए उम्दा प्रबंधन कहीं न कहीं हार रहा है। बेशक बचाव कार्यों ने एक लापता पायलट को बर्फ की कैद से मुक्त करा दिया, लेकिन जो पहाड़ों में जीवन खो बैठे उन्हें हम अपनी मौत मरना नहीं कह सकते। फ्री फ्लायर का मतलब यह तो नहीं कि पंजीकृत पायलट कहीं भी निकल जाएं और हमें खबर तक न हो। कम से कम अंतरराष्ट्रीय पैराग्लाइडिंग स्थल की यह हालत दोषमुक्त कतई नहीं है। अगर ग्रीन टैक्स बटोर कर पैराग्लाइडिंग का इतिहास लिखना इतना आसान है, तो आकाश से मौत ही मिलेगी। फ्री फ्लायर की सुरक्षा के मायने केवल यह नहीं कि वे हमारे खजाने का शुल्क अदा करें और फिर निरंकुश भाव से आकाश छानते फिरें। यहां मंसूबे, मकसद के सामने मौसम की पूर्ण जानकारी भी आवश्यक है। क्या बीड़-बिलिंग में आदर्श परिस्थितियों की गवाही में उपयुक्त उपकरण, तकनीक या सुरक्षा के पैमाने तैनात हैं या महज अनुमान के आधार पर आकाश में गोता लगाने की मजबूरी है। रोमांच की हद यह नहीं कि विश्व प्रसिद्ध पैराग्लाइडिंग के जश्न में जोखिम का अंजाम मौत ही बनता रहे। ऐसा भी समझा जा रहा है कि यहां पहुंचे कई पायलट फिलहाल इतनी ऊंचाई तथा भौगोलिक परिस्थितियों के बीच पैराग्लाइडिंग करने में दक्ष नहीं हैं या उनका अनुभव न्यूनतम रहा है। यूरोपीय देशों के मुकाबले हिमालयी पर्वत मालाओं का कद तथा व्यवहार भिन्न और जोखिम भरा है। ऐसे में कौन सी प्रक्रिया अपनाई जा रही है, जो यह पता करती है कि फ्री फ्लायर पायलट की अनुभव व प्रशिक्षण क्षमता बीड़-बिलिंग में उड़ने लायक है। दूसरा कौन यह हिसाब रखता है कि आकाश के व्योम में कितने साहसिक पायलट हरदम उतर रहे हैं। क्या बीड़-बिलिंग के पैराग्लाइडिंग दायरे में आ रही पहाडि़यों की विस्तृत जानकारियां किसी बुकलेट या वीडियो के मार्फत उपलब्ध हैं। क्या फ्री फ्लायर को पंजीकरण से पहले आवश्यक दिशा-निर्देश, सहूलियतें तथा सामग्री प्रदान की जाती है। हम यह कैसे मान लें कि विदेशी पायलट पहले से ही आवश्यक ट्रेनिंग हासिल करके पहुंचे हैं। ऐसे में स्थानीय पायलटों की सेवाएं तथा उनके मार्फत समन्वित प्रयास यह साबित कर सकते हैं कि कौन सा फ्लायर किस परिस्थिति में कितना सुरक्षित है। अगर बिना प्रमाणिकता के उड़ानें बैक माउंटेन या लंबी दूरी के कौशल में इधर-उधर होती रहीं, तो यह स्थल अपना मुकाम खो सकता है। बहरहाल बैजनाथ के उपमंडलाधिकारी ने अपने स्तर पर कुछ नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं, लेकिन यहां देखना यह होगा कि ऐसे साहसिक खेल को क्या औपचारिक प्रशासनिक हिफाजत के दम पर पूर्ण सुरक्षित मान लिया जाए या इसके लिए कोई राज्य स्तरीय विशेषज्ञ एजेंसी होनी चाहिए। मनाली के पर्वतारोहण संस्थान के मार्फत पैराग्लाइडिंग किस तरह परिभाषित है या प्रदेश पर्यटन विभाग ने इस दिशा में क्या प्रयास किए हैं, लाजिमी तौर पर सुरक्षा की दृष्टि से विश्लेषण जरूरी है। समूह उड़ान तथा जीपीएस डिवाइस के बिना अनुमति न देना, अब सुनिश्चित हो रहा है तो भी हम  इसे पूर्णकालिक व्यवस्था नहीं कह सकते। कहीं न कहीं फ्री फ्लायर को आकाश में भटकने से पहले सुरक्षा का दायरा और मजबूत करना होगा। यह बीड़-बिलिंग के नए अध्यायों की अनिवार्यता तथा अंतरराष्ट्रीय पहचान का संदेश होना चाहिए कि यहां पहुंचने से पहले पायलट अपने आधारभूत प्रशिक्षण, अनुभव तथा आवश्यक जानकारियां पुष्ट कर लें। बिलिंग की उड़ान न तो यूरोप सरीखी पैराग्लाइडिंग है और न ही देश के पश्चिम घाटों जैसी हवा यहां है। यहां साहस की पराकाष्ठा का इम्तिहान जमीन से आसमान तक है, तो व्यवस्था के मायने भी उतने कठिन। यह कोई सामान्य खेल नहीं कि प्रशासन या पुलिस पूर्ण नियंत्रण कर ले, बल्कि हवाओं के बीच आकाश को समझने तथा फ्लायर को समझाने का विशेषज्ञ दक्षता का परिमाण होना चाहिए। उम्मीद है हिमाचल सरकार हालिया हादसों से सबक लेते हुए बीड़ में पैराग्लाइडिंग प्रशिक्षण संस्थान को अंतरराष्ट्रीय मानदंडों के अनुरूप सुविधा संपन्न करते हुए सुरक्षित मनोरंजन व रोमांच का आकाशीय आश्वासन प्रदान करेगी।


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