फिश प्रोडक्शन बढ़ाने को होगा शोध

By: Oct 20th, 2018 12:01 am

पहली बार गोविंदसागर झील में रिसर्च के लिए कोलकाता इंस्टीच्यूट की मिली मंजूरी

बिलासपुर – मत्स्य उत्पादन औसत में देश भर में अग्रणी आंके जा चुके हिमाचल के गोविंदसागर में पिछले कुछ सालों से दर्ज की जा रही उत्पादन की कमी को लेकर अब शोध होगा। मत्स्य विभाग की ओर से स्टडी को लेकर भेजे गए आग्रह को सेंटर इनलैंड फिशरीज रिसर्च इंस्टीच्यूट बैरकपुर (कोलकाता) से मंजूरी मिल गई है। इस माह के अंत में विशेषज्ञों की एक टीम बिलासपुर पहुंचेगी और रिसर्च करने के बाद एक रिपोर्ट तैयार करेगी देगी, जिसके आधार पर अगली कार्य योजना बनेगी। मत्स्य निदेशालय बिलासपुर के निदेशक सतपाल मेहता ने बताया कि गोविंदसागर में मत्स्य उत्पादन बढ़ाने को लेकर कोलकाता के विशेषज्ञ स्टडी करेंगे। इस बाबत कोलकाता संस्थान की ओर से मंजूरी मिल गई है। इस ओर से स्वीकृति पत्र जारी करने के साथ ही आश्वस्त भी किया गया है कि इस माह के अंत में सर्वेक्षण के लिए टीम बिलासपुर आ रही है। झील में फिश प्रोडक्शन बढ़ाने के लिए अगली कार्ययोजना को अंतिम रूप दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि पिछले कुछ सालों से झील में मछली का उत्पादन कम हो रहा है। झील में इस बार 70 से 100 एमएम साइज का मछली बीज डाला जा रहा है, जिसके तहत कार्प प्रजाति का 10 लाख मछली बीज डाला गया है, जबकि पौंग डैम में रोहु, मृगल व कतला इत्यादि प्रजाति की मछली का 10 से 12 लाख बीज डाला गया है, जबकि चार से पांच लाख मछली बीज कोलडैम में डाला है। जानकारी के मुताबिक यदि आंकड़ों पर नजर डालें, तो वर्ष 2013-14 में गोविंदसागर में 1492 मीट्रिक टन मत्स्य उत्पादन हुआ था। 2014-15 में यह घटकर 1061 मीट्रिक टन, 2015-16 में 858.8 मीट्रिक टन तथा 2016-17 में महज 753 मीट्रिक टन रह गया है और इस साल भी कमी दर्ज की गई है।

तेज बहाव से तबाह मत्स्य ब्रीडिंग ग्राउंड

गोविंदसागर झील में मत्स्य उत्पादन में हर साल कमी के लिए एक नहीं, बल्कि कई कारण माने जा रहे हैं। कोलडैम से पानी छोड़ने के बाद तेज प्रवाह की वजह से भी मछली के ब्रीडिंग ग्राउंड खत्म हुए हैं। वहीं फोरलेन निर्माण के दौरान की गई डंपिंग को भी कारण माना गया।


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