फोरलेन के नाम पर विकास या विनाश

By: Oct 6th, 2018 12:05 am

कंचन शर्मा

लेखिका, शिमला से हैं

फोरलेन के नाम पर हिमाचल में विकास की जो नींव रखी जा रही है, वह केवल फोरलेन बन जाने से ही निर्धारित नहीं होगी, बल्कि फोरलेन जो पर्वतीय विनाश कर रहा है उस विनाश के दुष्परिणाम दिखना शुरू हो गए हैं। एक ओर पुराने, जर्जर, झुके हुए पेड़ों को काटने की इजाजत नहीं और दूसरी तरफ फोरलेन की बलिवेदी सैकड़ों पेड़ काट दिए गए हैं…

हिमाचल जैसा छोटा सा पहाड़ी हिमालयी राज्य जो अपनी प्राकृतिक छटा, मनोरम दृश्य, सर्पीले रास्तों व बर्फीले सौंदर्य के लिए विश्व विख्यात है, आज विकास के नाम पर अनेक आपदाओं का सामना कर रहा है जो  बेहद दुखद स्थिति है। हिमाचल में यहां की स्थानीय गाडि़यों की लंबाई रेखा यहां के रास्तों की लंबाई रेखा से ज्यादा निकलेगी, वहीं पर पर्यटकों की भारी तादाद में गाडि़यां अंधाधुंध जाम को न्योता देती हैं, फलस्वरूप आधुनिक विकास के नाम पर हिमाचल में भी फोरलेन का कार्य द्रुतगति से चल रहा है। किसी भी प्रदेश के विकास, पर्यटन की बढ़ोतरी और व्यापार के लिए सड़कों का जितना महत्त्व है, उससे अधिक महत्त्व उस प्रदेश के आंतरिक विकास व वहां के जन-जीवन की सुरक्षा का है। हमारा प्रदेश प्राकृतिक आपदाओं से निपटने के लिए अभी तक सक्षम नहीं है, जो कि इस वर्ष के आरंभ में दो दिन की बर्फबारी और हाल ही में तीन दिन की बारिश में प्रदेश की जनता ने देख लिया है।

सड़कों की खराब हालत के चलते हिमाचल में पिछले वर्ष से लेकर आज तक दिल दहलाने वाली सड़क दुर्घटनाएं लगातार जारी हैं। फोरलेन को अगर कुछ देर के लिए भूल भी जाएं, तो पहले से मौजूदा सड़कों की खराब हालत देखकर सफर करने से पहले सौ-बार सोचना पड़ता है। सड़क के ऊपर दरकते पहाड़ और नीचे दहाड़ती नदियां व खड्डें बहुत जगह खौफनाक मंजर खड़ा करती हैं। यह तो हिमाचल के बस चालकों की काबिलियत है कि वे इतने संकरे, भयानक व मुश्किल रास्तों से बसें व गाडि़यां निकाल देते हैं, वरना दूसरे प्रदेश के लोगों की इन सड़कों पर ड्राइविंग करते हुए घिघ््घी बंधती हैं। यह सोचकर धक्का लगता है कि हिमाचल की सड़कों पर नदियों के किनारे सुरक्षित पैरापिट नहीं, फलोरोसंट रोड सिग्नल सब जगह नहीं हैं और सड़क की मध्य रेखा सैकड़ों किमी गायब रहती है, ऐसे में बारिश व धुंध में या ड्राइवर की जरा सी लापरवाही लोगों को मृत्यु का ग्रास बना रही है। एक ओर हिमाचल में हम पर्यटन को बढ़ावा देने की बात करते हैं, तो दूसरी ओर पर्यटक आए दिन दुर्घटनाओं व प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति देखकर हिमाचल आने से कतरा रहे हैं। फोरलेन के नाम पर हिमाचल में विकास की जो नींव रखी जा रही है, वह केवल फोरलेन बन जाने से ही निर्धारित नहीं होगी, बल्कि फोरलेन जो पर्वतीय विनाश कर रहा है उस विनाश के दुष्परिणाम दिखना शुरू हो गए हैं। वस्तुतः हम विकास की परिभाषा जानते ही नहीं हैं। विकास वह होता है, जो मानवीय संवेदनाओं, प्राकृतिक संपदा, जीवन मूल्यों, पशु-पक्षियों, नदियों-पहाड़ों की सामान्य प्रकृति को मद्देनजर रखते हुए किया जाए। फोरलेन के नाम पर सैकड़ों घर, रोजगार उखड़े हैं, भले ही उन्हें इसके एवज में भरपाई मिल रही है। एक ओर पुराने, जर्जर, झुके हुए पेड़ों को काटने की इजाजत नहीं और दूसरी तरफ फोरलेन की बलिवेदी सैकड़ों पेड़ काट दिए गए हैं। क्या इन पेड़ों के एवज अतिरिक्त पौधारोपण किया गया या नहीं? नदियों में रेत खनन माफिया ने पहले ही उनकी प्राकृतिक रूपरेखा से छेड़छाड़ कर उन्हें विनाशकारी बना दिया है।

ऊपर से उनके तटीयकरण पर कोई खास योजना नहीं बनाई जा रही है। दो दशक पहले ब्यास ने रौद्र रूप दिखाया था, लेकिन हम संभल नहीं रहे हैं। आधुनिक मशीनरी से सीधे खड़े पहाड़ों को काटना आसान हो सकता है, लेकिन बिना वैज्ञानिक तरीके से कटा पहाड़ स्वयं कब तक संभल कर खड़ा रहेगा। ब्यास के किनारे हजारों पेड़ों को विकास के नाम पर काटा गया। उस पर गैरकानूनी रेत खनन, ब्यास किनारे अनाधिकृत कब्जों ने प्राकृतिक प्रवाह के साथ जो छेड़छाड़ की है, उसका खामियाजा प्रदेशवासियों को ही भुगतना पड़ता है। पहले विभाग व सरकार अनाधिकृत कब्जों पर आंखें बंद करके रखते हैं, जैसे सेबों के अनाधिकृत बागीचों को काटने का खामियाजा प्रदेश और प्रदेश की जनता ने भुगता है। हमारे देश की सरकारें बार-बार यही गलती करती हैं कि वे विकास के सपने दिखाती हैं, लेकिन विकास के साथ विनाश से बचने के लिए कोई योजना नहीं बनाती, जिससे जनमानस को नुकसान न हो। दो दिन की बारिश अगर करोड़ों रुपयों का नुकसान कर सकती है, तो एक सप्ताह लगातार बारिश का क्या मंजर होगा, सोचने वाली बात है। हिमाचल में सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सड़कों में सकारात्मक सुधार अति आवश्यक है। सड़कों की खराब हालत देखकर बसों में किराया बढ़ोतरी बिलकुल मान्य नहीं है, पहले सड़क सुधार तो हो। ऐसे में बस के बढ़े हुए किराए पर जनमानस को आपत्ति होगी ही। अभी हाल ही में केरल में आई बाढ़ में जहां पूरा राष्ट्र केरल के साथ खड़ा था, वहीं हिमाचल में आई आपदाओं को अंगूठा ही देखना पड़ता है। हिमाचल की कठिन जीवन शैली की पहले ही आंतरिक समस्याएं है। बंदरों की मार से खेती-बाड़ी नष्ट होने की कगार पर है, युवा-वर्ग रोजगार के लिए सरकार पर ही निर्भर है, प्राकृतिक सौंदर्य के बावजूद पर्यटन की कोई ठोस नीति नहीं, आपदा की स्थिति में जगह-जगह हैलीपेड नहीं, फोरलेन को वैज्ञानिक तरीके से रिटेन नहीं किया जा रहा, नदियों के तटीयकरण के पुख्ता प्रयास नहीं, हिमाचल अपने पड़ोसी राज्यों व दिल्ली तक को शीत लहरों से पाल रहा है, मगर पर्यावरण संरक्षण के नाम पर उसे केंद्र से अतिरिक्त आय नहीं, ऐसे में यहां का जन-जीवन कठिन व अस्त-व्यस्त नहीं होगा, तो और क्या होगा। हिमाचल की पर्वतीय पीड़ा की आवाज कब सुनी जाएगी, कौन सुना पाएगा और कब होगा यहां का चहुंमुखी विकास? हमें तय करना होगा कि विनाश के नाम पर स्मार्ट हिमाचल चाहिए या विकास के नाम पर समृद्ध हिमाचल।


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