भाजपा की छिछोरी प्रदर्शनबाजी

By: Oct 12th, 2018 12:08 am

प्रो. एनके सिंह

लेखक, एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया के पूर्व चेयरमैन हैं

क्या पूरे देश के लिए यह जरूरी था कि सर्जिकल स्ट्राइक का ढोल पीटा जाता। यह अच्छा होता कि सेना दिवस पर भारतीय सेना के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती तथा इसका उल्लेख किया जाता, बजाय इसके कि इसे एक बड़ा समारोह बनाया जाता। समारोह मनाने के मामले में भी हमें विनम्र और संतुलित होना चाहिए। इस स्ट्राइक के बाद आतंकवादी घटनाओं में नागरिक हत्याएं बढ़ गई हैं। यह वृद्धि इस स्तर तक हुई है कि पहले की तुलना में हत्याएं 166 प्रतिशत  बढ़ गई हैं…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हालांकि राजनीतिक व आर्थिक अव्यवस्था में उनके चुनाव से पहले जो दलदल उत्पन्न हो गया था, उसे बदलने के लिए ईमानदाराना प्रयास किए हैं, इसके बावजूद बड़ी संख्या में ऐसी गतिविधियां हो रही हैं तथा सरकारी फिजूलखर्ची भी बढ़ गई है जिनकी वास्तविक बदलाव लाने के लिए जरूरत ही नहीं है। इनका उपयोग केवल छवि चमकाने के लिए हो रहा है। सर्जिकल स्ट्राइक पर जो दिखावा किया जा रहा है, वह भी इन गतिविधियों में से एक है। इस अभियान के खत्म होने के एक साल बाद भी इसका जश्न मनाया जा रहा है। यह दिखावा अनावश्यक है तथा विश्व के सामने भारत की छवि गलत तरीके से पेश की जा रही है। यह सत्य है कि इस तरह का विस्तृत और प्राणघातक अभियान पहली बार पाक अधिकृत कश्मीर के क्षेत्र में चलाया गया, यह सफल भी रहा तथा इसमें हमारा कोई जानी नुकसान भी नहीं हुआ। आरंभ में कांग्रेस ने इस तरह के किसी आपरेशन होने से इनकार किया तथा बाद में वह अपने समय में हुई सर्जिकल स्ट्राइक का श्रेय लेने लग पड़ी। कांग्रेस की आलोचना को भाजपा ने गंभीरता से लेते हुए इस संबंध में हो रहे दुष्प्रचार का खरा जवाब दिया तथा धीरे-धीरे करके अपनी सेना की कार्रवाई को प्रमाणित करने के लिए जानकारी शेयर करने के साथ-साथ कुछ दृश्य सबूत भी जारी किए। अब इस संबंध में बड़े स्तर पर उत्सव मनाए जा रहे हैं तथा यहां तक कि शैक्षणिक संस्थानों को भी इसे मनाने के निर्देश जारी किए गए हैं।

क्या पूरे देश के लिए यह जरूरी था कि सर्जिकल स्ट्राइक का ढोल पीटा जाता। यह अच्छा होता कि सेना दिवस पर भारतीय सेना के शहीदों को श्रद्धांजलि दी जाती तथा इसका उल्लेख किया जाता, बजाय इसके कि इसे एक बड़ा समारोह बनाया जाता। समारोह मनाने के मामले में भी हमें विनम्र और संतुलित होना चाहिए, किंतु इस मामले में संदर्भ की भी यह मांग थी। इस स्ट्राइक के बाद आतंकवादी घटनाओं में नागरिक हत्याएं बढ़ गई हैं। यह वृद्धि इस स्तर तक हुई है कि पहले की तुलना में हत्याएं 166 प्रतिशत बढ़ गई हैं। पिछले साल की तुलना में संघर्ष-विराम उल्लंघन की घटनाएं दोगुणा हो गई हैं। अब सरकार एक अन्य विवाद का सामना कर रही है। फ्रांस से राफेल विमानों की खरीद के मामले में वह भ्रष्टाचार के आरोपों का सामना कर रही है। कांग्रेस इसमें भ्रष्टाचार होने के आरोप लगा रही है, जबकि यह एक सरकार का दूसरी सरकार से हुआ सौदा है जिसमें कोई एजेंट संलिप्त नहीं है। सरकार ने अपने संचार ढांचे का सही ढंग से उपयोग नहीं किया है। होना यह चाहिए था कि वह इस मामले के रक्षा से जुड़े होने के कारण एक बार तथ्य बताकर चुप हो जाती, किंतु वह एक-एक करके कई तथ्यों का खुलासा कर रही है। पहले सरकार ने कहा कि चूंकि यह सुरक्षा से जुड़ा मामला है, इसलिए वह विमानों की कीमत नहीं बता सकती। फिर सरकार ने एक-एक करके तथ्यों का खुलासा करना शुरू कर दिया।

उसने स्पष्ट रूप से यह बात नहीं बताई कि अनिल अंबानी का चयन सरकार ने नहीं किया, बल्कि सप्लायरों ने किया है तथा 70 सप्लायरों में से एक वह भी हैं। इस संबंध में एक-एक करके खुलासे हो रहे हैं। यह एक जानी हुई बात है कि विपक्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साफ-सुथरी छवि के रिकार्ड को ध्वस्त करने के लिए भ्रष्टाचार के मामले में हताशापूर्ण ढंग से सबूतों की तलाश में है। इस मामले का निपटारा स्पष्टता के साथ तथा बिना किसी प्रचार के होना चाहिए। जिस तरह से अब तक इस मामले में सरकार निपट रही है तथा संचार का जो तरीका उसने अपनाया है, उससे भ्रांतियां ही पैदा हुई हैं। कई मामलों में बहुत ज्यादा प्रचार हो रहा है तथा राफेल विमानों के मामले में एक बार के बजाय कई बार के स्पष्टीकरणों से स्पष्टता आई है तथा इसे असूलों से किसी समझौते के बिना किया गया। दूसरी ओर विमुद्रीकरण के मामले में ज्यादा स्पष्टता तथा प्रचार होना चाहिए था। परंतु उस मामले में चीजें टुकड़ों में उभरी तथा इससे अफवाहें फैलती गईं। पहले वाली सरकार की तुलना में इसे प्रचार पर ज्यादा ध्यान देना चाहिए था, किंतु कई मामलों में इसकी संचार की प्रक्रिया सुस्पष्ट नहीं रही। भाजपा इस अवधि में यूपीए की तुलना में विज्ञापनों व प्रचार पर दोगुणा से ज्यादा खर्च कर चुकी है। मोदी सरकार ने चार वर्षों में 4343.26 करोड़ रुपए खर्च किए। प्रचार पर यह सरकार प्रतिदिन औसतन 3.2 करोड़ रुपए खर्च कर रही है, जबकि यूपीए की प्रतिदिन औसत 1.45 करोड़ रुपए थी। इसमें कोई संदेह नहीं कि कई नई परियोजनाएं संचार तथा प्रचार की मांग करती हैं, लेकिन सामाजिक परियोजनाओं व सरकार की उपलब्धियों के नाम पर तूफानी तरीके से प्रचार अपनी सभी सीमाएं लांघ चुका है। हिंदू दर्शन के सहगामी होने के कारण अपेक्षा यह थी कि वे विनम्र और सादगी वाले होंगे, किंतु वे शालीनतम सरकार नहीं हैं।

शुरुआत से ही इस सरकार की आलोचना सूट-बूट वाली खर्चीली सरकार के रूप में होती रही है तथा राहुल गांधी इस बारे में कई बार सवाल उठा चुके हैं। प्रधानमंत्री द्वारा अपनी छाती का नाप गर्व से बताने के मामले में भी सरकार के बड़बोलेपने की आलोचना होती रही है। मोदी से आशा थी कि वह सादगी से पूर्ण खादी आच्छादित सरकार का संचालन करेंगे। कोई भी खर्चीली पोशाक को भूल सकता है, किंतु कुल मिलाकर जो हो रहा है, उससे सरकार की वांछित आडंबरहीन ख्याति धूमिल हो रही है।

 ई-मेल : singhnk7@gmail.com


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