यूएन में ‘आतंकीस्तान’ बेनकाब

By: Oct 2nd, 2018 12:05 am

संयुक्त राष्ट्र ऐसा विश्व मंच है, जहां हर छोटे-बड़े देश अपनी बात रखते हैं और किसी निष्कर्ष की अपेक्षा भी रखते हैं। लेकिन आतंकवाद ऐसा मुद्दा है, जिसकी परिभाषा तक तय नहीं हो पाई है। कई सालों से यह मसला लटका है। कमोबेश यूएन के स्तर पर यह एक विडंबना से कम नहीं है। किसी हमलावर गतिविधि को कुछ देश ‘आतंकवाद’ करार देते हैं, तो कुछ देश उसे ‘आजादी की लड़ाई’ मानते हैं। लिहाजा जो शख्स कुछ देशों के मुताबिक ‘आतंकवादी’ है, उसे कमोबेश पाकिस्तान ‘हीरो’ मानता रहा है। ऐसे चेहरों को ‘स्वतंत्रता सेनानी’ कहा जाता रहा है। उन्हें महिमामंडित भी किया जाता रहा है और डाक टिकट तक जारी किए गए हैं। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने एक बार फिर आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को बेनकाब किया। उन्होंने अलकायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन का जिक्र किया, जो पाकिस्तान में ही छिपा था। अमरीका ने एक आपरेशन के तहत उसे मार कर 9 / 11 आतंकी हमले का बदला लिया। अमरीका को आतंकवाद का एहसास ही तब हुआ, जब 9 / 11 में 3000 से ज्यादा लोग मार दिए गए थे। यह इतिहास का अभी तक का सबसे बड़ा आतंकी हमला है, लेकिन भारत के लिहाज से मुंबई का 26 / 11 आतंकी हमला भी उतना ही खौफनाक और जानलेवा था। उसका ‘मास्टरमाइंड’ हाफिज सईद आज भी पाकिस्तान में खुलेआम घूमता है, रैलियां करता है, प्रधानमंत्री मोदी और भारत को धमकियां देता है, लेकिन हुकूमत ने आज तक कोई कार्रवाई नहीं की। भारतीय विदेश मंत्री का जवाब पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने यूएन के मंच से ही गीदड़भभकी के तौर पर दिया कि यदि भारत ने पाकिस्तान पर हमले की कोशिश की, तो उसके नतीजे गंभीर होंगे। उन्होंने हर बार की तरह कश्मीर का रोना इस बार भी रोया और उसे ‘इनसानियत पर दाग’ करार दिया। अमन-चैन के रास्ते का रोड़ा बताया। हैरत तो यह है कि पाकिस्तान ने दोतरफा बातचीत रद्द करने की तोहमत भारत पर चस्पां की। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने साफ कहा था कि इमरान सरकार का बातचीत का प्रस्ताव कबूल किया गया था, लेकिन उसके पहले ही कश्मीर में पुलिसकर्मियों की हत्या की गई। उसे पाकपरस्त आतंकियों ने ही अंजाम दिया। तो फिर बातचीत कैसे की जा सकती थी? साफ है कि पाकिस्तान में निजाम बदला है, लेकिन नीयत वही पुरानी है। बेशक भारत ने यूएन के मंच पर पाकिस्तान को बेनकाब किया कि वह आतंकियों को पनाह देता है, उन्हें संरक्षण और हथियार मुहैया कराता है। पाकिस्तान और पीओके में ही आतंकियों के 32 से ज्यादा अड्डे हैं, जहां आतंकी तैयार किए जाते हैं। आतंकवाद ने खुद पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और सामाजिक ढांचे को जर्जर कर दिया है। अमरीका ने पाकिस्तान की आर्थिक मदद बंद कर दी है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भी उसे और आर्थिक सहायता देने को तैयार नहीं है। पाकिस्तान पर करीब 1800 अरब रुपए का कर्ज है। आतंकवाद ने बीते 11 सालों के दौरान पाकिस्तान का करीब 6.4 लाख करोड़ रुपए का नुकसान किया है। उसका विदेशी मुद्रा कोष मात्र 120 लाख डालर ही बचा है। उससे दो महीने का आयात भी संभव नहीं है। इन स्थितियों के बावजूद पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने जो कहा है, वह उस देश की तिलमिलाहट और बौखलाहट है। आतंकी हमलों और टकरावों में खुद पाकिस्तान के करीब 55,000 नागरिक मारे जा चुके हैं। इन तथ्यों और आंकड़ों के बावजूद पाकिस्तान आतंकवाद से तौबा करने को तैयार नहीं है। बल्कि भारत पर आतंकवाद का आरोप चस्पां करता रहा है। विदेश मंत्री कुरैशी ने तो हद ही लांघ दी, जब उन्होंने यूएन के मंच से ही कहा कि भारत में आरएसएस फासीवाद और आतंकवाद का केंद्र है। यूएन के मंच से आतंकवाद ही नहीं, जलवायु परिवर्तन, टिकाऊ विकास, सौर ऊर्जा, गांधीवाद के सिद्धांत आदि कई विषय उठाए गए, लेकिन आतंकवाद ही छाया रहा। हमारी विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कमोबेश सुरक्षा परिषद में सुधार का आग्रह करते हुए यूएन को चेताया कि ऐसा न हो कि एक दिन यह विश्व मंच ही निष्क्रिय हो जाए! सुषमा ने आतंकवाद के मद्देनजर एक अंतरराष्ट्रीय कानून और परिभाषा तय करने का सुझाव भी दिया, ताकि तमाम आतंकी गतिविधियों और साजिशों को उनके दायरे में लाया जा सके। ऐसा किए बिना आतंकवाद पर नकेल कसना असंभव होगा। फिलहाल पाकिस्तान के साथ भारत की बातचीत संभव नहीं है, लेकिन अब वक्त आ गया है, जब उसका ‘सर्वाधिक पसंदीदा देश’ वाला विशेषण छीन लिया जाए और उसे ‘आतंकीस्तान’ घोषित किया जाए।


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