स्वच्छता अभियान में नागरिक सहभागिता जरूरी

By: Oct 3rd, 2018 12:07 am

अनुज कुमार आचार्य

लेखक, बैजनाथ से हैं

समस्या केवल उन डस्टबिन में डाले गए कूड़े-कचरे के निपटान की है। जाहिर है इन डस्टबिन को संबंधित संस्थाओं और नागरिकों को खुद ही साफ-सुथरा भी रखना होगा। स्वच्छता मिशन में अभी भी कुछ दुश्वारियां आ रही हैं, क्योंकि इस अभियान में आम नागरिकों की भागीदारी ज्यादा नहीं है…

भारत सरकार के पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने 15 सितंबर से 2 अक्तूबर, 2018 का पखवाड़ा राष्ट्रीय स्तर पर ‘स्वच्छता ही सेवा’ के रूप में मनाया है। इस अभियान के तहत नागरिकों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता का संदेश फैलाने और स्वच्छता संबंधी अभियानों को सिरे चढ़ाने के साथ-साथ स्कूली विद्यार्थियों को स्वच्छता के प्रति उनकी भागीदारी और योगदान को पोस्टकार्ड पर लिखकर प्रधानमंत्री को अवगत करवाना भी शामिल है। स्वच्छता को बढ़ावा और खुले में शौच की प्रवृत्ति को समाप्त करने के लिए सरकार ने विशेष प्रचार-प्रसार अभियान का सहारा भी लिया है। प्रख्यात सिनेमा कलाकार अमिताभ बच्चन और अक्षय कुमार को इस प्रचार अभियान का ब्रांड एंबेसडर बनाया गया है, जिसमें ‘दरवाजा बंद, बीमारी बंद’ वीडियो अभियान, सेल्समैन शौचा सिंह के ‘शौचालय नहीं बनाओगे, तो शौच के बीच में ही रह जाओगे’ कार्टून द्वारा  और ‘सब लोग रखो साफ-सफाई का ख्याल, अच्छे से करो शौचालय की देखभाल’ जैसे संदेश दिए जा रहे हैं। स्कूली बच्चों के लिए हैंडवाश कार्यक्रम की शुरुआत की गई है और स्वच्छता समाचार पत्रिका भी प्रकाशित की जा रही है। यह भी बेहद दुखद सत्य है कि आजादी के 70 वर्षों के बाद भी हमारी सरकारों को स्वच्छता को लेकर विशेष अभियान चलाने पड़ रहे हैं और नागरिकों को जागरूक करने की आवश्यकता पड़ रही है।

जब भारत की 80 फीसदी से ज्यादा आबादी साक्षर हो, तो क्या यह सभी नागरिकों के लिए जरूरी नहीं हो जाता है कि वे स्वयं स्वच्छता के प्रति पहल करें और उसे अधिमान दें। आज भारत की आबादी लगभग 130 करोड़ के आसपास है, इतनी विशाल जनसंख्या और इतने बड़े देश के गांव, कस्बों, मोहल्लों और शहरों की स्वच्छता को चाक-चौबंद बनाना किसी भी सरकार के लिए लगभग नामुमकिन है। जब तक भारतीय नागरिक स्वयं स्वच्छता के महत्त्व को समझकर कूड़ा-कर्कट निपटान को अपनी दैनिक आदत में शुमार नहीं करते हैं, तब तक पूर्ण स्वच्छता के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल होगा। मोदी सरकार के प्रयासों से खुले में शौच से मुक्ति की ओर राष्ट्र ने कदम बढ़ाए हैं। प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त, 2014 को लाल किले की प्राचीर से राष्ट्र के नाम संबोधन में कहा था कि हमें गंदगी और खुले में शौच के खिलाफ लड़ाई लड़नी है, पुरानी आदतों को बदलना है और महात्मा गांधी जी की 150वीं जयंती के वर्ष अर्थात 02 अक्तूबर, 2019 तक स्वच्छ भारत के लक्ष्य को प्राप्त करना है। यह खुशी की बात है कि इस दिशा में प्रगति भी हुई है। बतौर प्रधानमंत्री ‘भारत में पिछले 4 वर्षों में 9 करोड़ शौचालयों का निर्माण हुआ है और 4.5 लाख गांव खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं। स्वच्छ भारत मिशन के आंकड़ों की बानगी देखें, तो भारत के 468 जिलों के 4 लाख 68 हजार 254 गांव खुले में शौच मुक्त हो चुके हैं और 90 प्रतिशत ग्रामीण स्वच्छता के लक्ष्य को हासिल कर लिया गया है। स्वच्छता एवं खुले में शौच के मामले में हिमाचल प्रदेश, देश में अव्वल बना हुआ है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय द्वारा ‘क्वालिटी काउंसिल ऑफ इंडिया’ द्वारा करवाए गए सर्वेक्षण में हिमाचल के मंडी जिले को देश में प्रथम स्थान हासिल हुआ है। सर्वेक्षण में इस बात का ध्यान रखा गया है कि घरों में साफ शौचालय हों और लोग उनका इस्तेमाल करते हों, घरों के आसपास गंदगी न हो, सार्वजनिक जगहों पर गंदगी न हो और घरों के आसपास पानी जमा न हो। महात्मा गांधी जी का स्वच्छता को लेकर यह कथन दृष्टव्य है ‘स्वच्छता राजनीतिक स्वतंत्रता से अधिक महत्त्वपूर्ण है।’ यह कथन समाज में स्वच्छता के महत्त्व को लेकर उनकी सोच को रेखांकित करता है। घर की चारदीवारी के भीतर शौचालय के निर्माण से स्वास्थ्य संबंधी खतरों में कमी आई है और लोग अब ठोस और द्रव्य कचरा प्रबंधन के लिए प्रेरित हुए हैं। केंद्र सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत प्रत्येक विधानसभा को जैविक और अजैविक दो प्रकार के डस्टबिन कूड़े के निस्तारण के लिए दिए हैं और हिमाचल प्रदेश की लगभग सभी विधानसभाओं में यह डस्टबिन लगा भी दिए हैं। समस्या केवल उन डस्टबिन में डाले गए कूड़े-कचरे के निपटान की है। जाहिर है इन डस्टबिन को संबंधित संस्थाओं और नागरिकों को खुद ही साफ-सुथरा भी रखना होगा। स्वच्छता मिशन में अभी भी कुछ दुशवारियां आ रही हैं, क्योंकि इस अभियान में आम नागरिकों की भागीदारी ज्यादा नहीं है।

सार्वजनिक जगहों, बाजारों में कम्युनिटी टॉयलेट की संख्या काफी कम है, सीवरेज की समस्या है। एक बड़ी समस्या केंद्र सरकार द्वारा स्वच्छ भारत मिशन के तहत राज्यों को आवंटित राशि का इस्तेमाल न होना भी है। पिछले वित्तीय वर्ष 2017-18 में यह राशि 4 हजार 197 करोड़ 38 लाख थी, जिसे राज्यों ने खर्च ही नहीं किया है। कहा जाता है कि जहां स्वच्छता होती है, वहां देवी-देवताओं का वास होता है, इस सूत्र का अनुसरण करते हुए सभी देशवासियों को अपने घर से बाहर समाज में भी स्वच्छता संबंधी कार्यों में हाथ बंटाना होगा। आशा है कि अगले वर्ष केंद्र सरकार के खुले में शौच मुक्त भारत के लक्ष्य को हासिल करने के बाद गलियों, कूचों, बाजारों को भी स्वच्छ बनाने का अभियान जारी रहेगा।


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