स्वायत्तता कैसी और किससे ?

By: Oct 27th, 2018 12:05 am

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने एक बार फिर स्वायत्तता का राग छेड़ा है। उनकी यह भी इच्छा है कि कश्मीर का अपना ‘प्रधानमंत्री’ होना चाहिए। शेख अब्दुल्ला के इतिहास और दौर में कश्मीर को वापस ले जाना चाहता है अब्दुल्ला परिवार! यह संभव नहीं है। कश्मीर भी भारत का अंतरंग हिस्सा है और देश का प्रधानमंत्री एक ही होता है। राज्यों में मुख्यमंत्री हो सकते हैं। शेख को ‘प्रधानमंत्री’ का दर्जा देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ऐतिहासिक गलती की थी। अब उसे दोहराने को कोई भी तैयार नहीं है। सवाल यह है कि कश्मीर को आजादी या स्वायत्तता क्यों चाहिए? और किससे आजाद होना चाहता है कश्मीर? बार-बार इस विभाजक और अलगाववादी मुद्दे को क्यों गरमाया जाता है? वर्ष 2000 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में राज्य की स्वायत्तता का प्रस्ताव पारित किया गया था। तब केंद्र में भाजपा-एनडीए की वाजपेयी सरकार थी। उसने प्रथमद्रष्टया ही इस प्रस्ताव को खारिज कर अध्याय का पटाक्षेप ही कर दिया था। उसके बाद अब स्वायत्तता की आवाजेंभर्रा रही हैं। बीच के 10 सालों में केंद्र में यूपीए सरकार थी और प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह थे। उस सरकार में नेशनल कान्फें्रस भी शामिल थी और उमर के वालिद डा. फारूक अब्दुल्ला कैबिनेट मंत्री थे। उन 10 सालों में कश्मीर की स्वायत्तता याद क्यों नहीं आई? क्योंकि सरकार में रहकर ‘मलाई’ जो चाटनी थी! बहरहाल जिस राज्य का अपना भी अलग संविधान, अलग झंडा, छह साल विधानसभा का कार्यकाल हो, उसे और क्या स्वायत्तता चाहिए? स्वायत्तता की दरकार है तो अब्दुल्ला परिजन (अन्य कश्मीरी नेता भी) संसद और विधानसभा के चुनाव क्यों लड़ते हैं? फारूक आज भी लोकसभा सांसद हैं। उन्हें भारत सरकार के बजट से सांसद का वेतन, भत्ते और सांसद क्षेत्र निधि के 5 करोड़ रुपए मिल रहे हैं। सांसद के तौर पर उन्हें एक बंगलानुमा आवास भी आवंटित किया गया है। सांसद के नाते जो विशेषाधिकार होने चाहिए, वे भी उन्हें हासिल हैं। सांसद नहीं रहेंगे, तो जीवन भर पेंशन, रेलगाड़ी की मुफ्त यात्रा, चिकित्सा निशुल्क आदि सुविधाएं भी भारत सरकार के खजाने से ही प्राप्त होती रहेंगी। अब्दुल्लाओं के लिए यह दोगली व्यवस्था क्यों है? यदि स्वायत्तता चाहने वाले चीखा-चिल्ली कर रहे हैं, तो वे कश्मीर तक ही सीमित रहें, कश्मीर के बजट में से ही वेतन, भत्ते, पेंशन हासिल करें, लेकिन कश्मीर का बजट भी तो भारत सरकार के ही भरोसे है। देश के सबसे बड़े राज्य उप्र को जितना धन उपलब्ध कराया जाता है, उसकी तुलना में विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त कश्मीर में ज्यादा धन मुहैया कराया जाता रहा है। खुद प्रधानमंत्री मोदी अपने साढ़े चार साल के कार्यकाल के दौरान लाखों करोड़ रुपए के अनुदान कश्मीर को दे चुके हैं। यदि कश्मीर को भारत सरकार से ही आजादी चाहिए, तो अपने आर्थिक संसाधन पैदा करे। कटोरा भी भारत के सामने और स्वायत्तता की धौंस भी भारत से…! यह स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। दरअसल कश्मीर को पाकपरस्त आतंकियों और अलगाववादियों से आजादी और स्वायत्तता की दरकार होनी चाहिए। कश्मीर में जो भौतिक, विकासवादी, बुनियादी ढांचे की व्यवस्थाएं हैं, वे सभी भारत सरकार की ही देन हैं। भारत ने कश्मीर को रेलगाड़ी दी, राजमार्ग दिए, टनल दी, युवाओं को रोजगार और उच्च शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराए, वजीफे दिए, क श्मीर से बाहर संपत्तियां खरीदने की छूट दी। जानलेवा बाढ़ हो या लगातार आतंकी गतिविधियां हों, भारत के सैनिक और सुरक्षा बलों ने ही कश्मीर की हिफाजत की। यदि अब्दुल्ला परिवार को स्वायत्तता की इतनी ही दरकार है, तो भारत सरकार द्वारा मुहैया सुरक्षा व्यवस्था को छोड़ दें और फिर सार्वजनिक जीवन में उतरें। कुछ घंटों में ही पता चल जाएगा कि प्राण कितने संकट में घिर गए हैं! फारूक आपत्तिजनक बकवास करते रहे हैं। कश्मीर में पत्थरबाजों को ‘अल्लाह के लिए लड़ने वाले’ करार देते रहे हैं। दरअसल हम इतिहास को खंगालना या दोहराना नहीं चाहते। जिस तरह कश्मीर का भारत में विलय हुआ था, वह अंतिम सत्य था, लिहाजा कश्मीर भारत का अविभाज्य अंग है। इस पर कोई भी विवाद या विमर्श अपेक्षित नहीं है। अब्दुल्ला परिवार उस इतिहास से बड़ा और महत्त्वपूर्ण नहीं है। कश्मीर हमारा है, वह स्वतंत्र और स्वायत्त है, यदि अब्दुल्ला परिवार को ऐसा महसूस नहीं होता, तो वह पाकिस्तान जा सकता है। वैसे भी पाकिस्तान के नए वजीर-ए-आजम इमरान खान से उमर अब्दुल्ला की अच्छी-खासी यारी है। भारत के संविधान ने हरेक नागरिक को जो स्वायत्तता प्रदान की है, वह अब्दुल्ला परिवार और दूसरे कश्मीरियों के लिए भी है, उसके आगे अतिक्रमण बर्दाश्त नहीं होगा।


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