अर्बुदा देवी मंदिर

By: Nov 10th, 2018 12:07 am

माना जाता है कि यहां देवी पार्वती के होंठ गिरे थे, इसलिए यहां शक्तिपीठ स्थापित हुआ। यहां मां अर्बुदा देवी की पूजा माता कात्यायनी देवी के रूप में की जाती है, क्योंकि अर्बुदा देवी मां कात्यायनी का ही स्वरूप कहलाती हैं..

भारत में माता के 51 शक्तिपीठ हैं और सभी शक्तिपीठों का अपना अलग महत्त्व है। इन्हीं शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ है अर्बुदा देवी मंदिर। अर्बुदा देवी मंदिर को अधर देवी शक्तिपीठ के नाम से जाना जाता है। मंदिर राजस्थान के माउंट आबू से 3 किमी. दूर एक पहाड़ी पर स्थित है। माना जाता है कि यहां देवी पार्वती के होंठ गिरे थे, इसलिए यहां शक्तिपीठ स्थापित हुआ। यहां मां अर्बुदा देवी की पूजा माता कात्यायनी देवी के रूप में की जाती है, क्योंकि अर्बुदा देवी मां कात्यायनी का ही स्वरूप कहलाती हैं। यूं तो यहां साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन नवरात्र में यहां भक्तों का सैलाब उमड़ता है। कहां जाता है कि यहां देवी के दर्शन मात्र से ही भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मान्यताओं के अनुसार इस स्थान पर मां पार्वती के होंठ गिरे थे। तभी से यह स्थान अधर देवी के नाम से जाना जाता है। मां के दर्शन के लिए भक्त यहां सैकड़ों मीटर की यात्रा करके लगभग 350 सीढि़यां चढ़कर दर्शन के लिए आते हैं। यह मंदिर एक प्राकृतिक गुफा में प्रतिष्ठित है। गुफा के भीतर निरंतर दीपक जलता रहता है और इसी के प्रकाश से भगवती के दर्शन होते हैं। वहीं मंदिर की स्थापना साढ़े पांच हजार साल पहले हुई थी। माना जाता है कि माता के दर्शन मात्र से व्यक्ति को प्रत्येक दुखों से मुक्ति मिल जाती है और भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। मंदिर में अर्बुदा देवी की चरण पादुका भी स्थित है। माता की चरण पादुका के नीचे उन्होंने बासकली राक्षस का संहार किया था। मां कात्यायनी के बासकली वध की कथा पुराणों में मिलती है।

मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा

पौराणिक कथा के अनुसार दैत्य राजा कली जिसको बासकली के नाम से जाना जाता था। उसने हजारों वर्ष तप करके भोलेनाथ को प्रसन्न कर उन से अजेय होने का वर प्राप्त किया। बासकली वरदान प्राप्त कर घमंडी हो गया। उसने देवलोक में इंद्र सहित सभी देवताओं को कब्जे में कर लिया। देवता उसके आतंक से दुखी होकर जंगलों में छिप गए। देवताओं ने कई वर्षों तक तप करके मां अर्बुदा देवी को प्रसन्न किया। माता ने प्रसन्न होकर तीन स्वरूपों में दर्शन दिया। देवताओं ने माता से बासकली से मुक्ति दिलाने का वर मांगा। मां ने उन्हें तथास्तु कहा। माता ने बासकली राक्षस को अपने चरणों से दबाकर उसका वध किया था। उसके बाद से ही यहां मां की चरण पादुका की पूजा होने लगी।

माउंट आबू कैसे पहुंचें

रेल और वायुमार्ग द्वारा अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। वायुमार्ग द्वारा यहां पहुंचने के लिए पर्यटक उदयपुर की उड़ान ले सकते हैं, जो यहां से लगभग 185 किमी. की दूरी पर है। यहां वर्ष भर मौसम खुशनुमा रहता है। हालांकि इस स्थान की सैर के लिए गर्मियों का मौसम सबसे अच्छा है।


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