आत्मा के अस्तित्व का प्रमाण भूत

By: Nov 10th, 2018 12:05 am

फ्रीवर्ग इंस्टीच्यूट आफ पेरासाइकोलोजी के अध्यक्ष परा मनोवैज्ञानिक प्रो. हांस बेंडर ने मामले की पड़ताल की और पाया कि मामला साइकोकाइनेसिस यानी मनोगति क्रम का है। मनोगति क्रम का अर्थ है, ऐसी सूक्ष्म मानसिक शक्तियां, जो भौतिक पदार्थों को नियंत्रित-निर्देशित कर सकें…

 -गतांक से आगे…

उनके घर में सफाई के बावजूद दुर्गंध आने, अल्मारी में ताले में बंद पूरियां रात को गायब हो जाने और ताला ज्यों का त्यों बंद रहने, धुले बर्तन सुबह जूठे मिलने, आंगन में रखे लड्डुओं की जगह गीली मिट्टी बची रहना, मिठाइयों के रात भर में सड़ जाने, रसोईघर में अजनबी पंजों के निशान अंकित होने और दीवारों आदि पर उंगलियों के चिन्ह दिखने तथा दूध का भरा गिलास पल भर में गायब होने की घटनाएं घटती थीं। नवनीत (हिंदी डाइजेस्ट) में भी एक घटना छपी थी। अमरीका के श्री रोजेनहीम एडवोकेट के घर में सहसा टेलीफोन की घंटियां टनटना उठतीं, ट्यूब लाइट बिना स्विच दबाए जल उठतीं, बल्ब जलकर फट जाते, टेलीफोन पर उठाने पर गोलियों की बौछार सुनाई पड़ती। लगातार छानबीन व चौकसी के बावजूद शरारती व्यक्ति का पता न चला। फ्रीवर्ग इंस्टीच्यूट आफ पेरासाइकोलोजी के अध्यक्ष परा मनोवैज्ञानिक प्रो. हांस बेंडर ने मामले की पड़ताल की और पाया कि मामला साइकोकाइनेसिस यानी मनोगति क्रम का है। मनोगति क्रम का अर्थ है, ऐसी सूक्ष्म मानसिक शक्तियां, जो भौतिक पदार्थों को नियंत्रित-निर्देशित कर सकें। प्रो. बेंडर के अनुसार भूत-प्रेत के रूप में भी ऐसी मानसिक अवस्था संभव है। एक बार एक फोटोग्राफर ने डा. थयोव वरहाजमान का एक फोटो खींचा। जब फोटो खींच लिया गया तो डा. वरहाजमान ने कहा-मुझे ऐसा लगा कि जैसे फोटो खींचते समय कोई मेरे साथ हो, जबकि उनके साथ कोई भी दृश्य प्राणी खड़ा हुआ न था। लेकिन दूसरे दिन जब फिल्म धुलकर आई तो लोग यह देखकर दंग रह गए कि इस फोटो के साथ ही स्वर्गीय ग्लेडस्टोन का भी फोटो आ गया था। किरायेदार ने सोचा मकान बहुत बढि़या है, यहां बहुत अच्छा रहेगा और नहीं तो यह मकान मोल ही ले लूंगा। इन्हीं कल्पनाओं में खोया हुआ किरायेदार विलियम फ्रांक गहरी निद्रा में सो गया। किंतु अभी उसे सोए हुए एक घंटा भी नहीं हुआ था कि किसी ने हाथ के इशारे से उसे जगा दिया। फ्रांक ने चद्दर हटाया, देखा एक बहुत ही भयंकर हरी आंखों वाली आकृति उसके सामने खड़ी है। उसने पूछा-कौन है? किंतु जैसे यह प्रश्न हवा में खो गया, उसी प्रकार पता नहीं चला वह छायाकृति एकाएक कहां अंतर्ध्यान हो गई। फ्रांक उठे, बत्तियां जलाकर सभी दरवाजे-खिड़कियों की जांच की, सब बिलकुल बंद थे। बाहर से चिडि़यां तो आ सकती थी, किंतु बिल्ली नहीं धंस सकती थी, फिर यह पूरी दानवाकृति कहां से आई, कौन थी वह, कहां चली गई? उन्होंने निश्चय किया यह मेरे अवचेतन मन की कल्पना थी, जिसने स्वप्न में विधिवत एक मनुष्य की आकृति खड़ी कर दी। मन को आश्वस्त कर फ्रांक फिर सो गए। किंतु जैसे ही आधी रात नियराई, एक बार फिर वही पहले जैसी स्थिति। ठीक वह शक्ल फिर सिरहाने खड़ी थी और फ्रांक को झकझोर कर जगा रही थी। फ्रांक के मुंह से कौन तो निकला-उस कौन के साथ एक कराह-सी मालूम पड़ी, उन्होंने स्पष्ट खड़े हुए एक आदमी को देखा, किंतु जैसे ही उन्होंने फिर बत्ती जलाई, वहां न राम न रहीम। फ्रांक बुरी तरह घबरा गए। रात जागते बिताई, जहां उस मकान को वे खरीदने की सोच रहे थे। दूसरे दिन ही छोड़कर भाग गए।

 (यह अंश आचार्य श्री राम शर्मा द्वारा रचित किताब ‘भूत कैसे होते हैं, क्या करते हैं’ से लिए गए हैं)


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