ईश्वर सर्वशक्तिमान

By: Nov 10th, 2018 12:05 am

स्वामी विवेकानंद

गतांक से आगे…     

यदि जॉन वास्तव में जेन से प्रेम कर सकता है, तो वह उस क्षण पूर्ण हो जाएगा। उसकी सच्ची प्रकृति प्रेम है, वह अपने में पूर्ण है। जॉन को केवल जेन से प्रेम करने से ही योग की सब शक्तियां प्राप्त हो जाएंगी, चाहे उसे धर्म, मनोविज्ञान अथवा पुराण का एक शब्द भी न आता हो।

मुझे विश्वास है कि यदि कोई स्त्री और पुरुष वास्तव में प्रेम कर सकते हैं, तो वे उन सब शक्तियों को प्राप्त कर सकते हैं, जिनका दावा योगी करते हैं, क्योंकि प्रेम स्वयं ईश्वर है। ईश्वर सर्वशक्तिमान है और (इसलिए) तुमको वह प्रेम प्राप्त हो जाता है, चाहे तुमको उसका पता चले या न चले। अभी उस संध्या मैंने एक लड़के को एक लड़की की प्रतीक्षा करते देखा। मैंने सोचा, इस लड़के का अध्ययन एक अच्छा प्रयोग होगा।

उसमें उसके प्रेम की गहनता के कारण अदृश्य दर्शन, अश्रव्य-श्रवण की शक्ति का विकास हो गया। साठ अथवा सत्तर बार उसने कभी गलती नहीं की और वह लड़की दो सौ मील की दूरी पर थी। (वह कहता), ‘उसने यह पहन रखा है (अथवा), ‘वह जा रही है।’ मैंने यह बात अपनी आखों से देखी है। प्रश्न यह है, क्या तुम्हारा पति ईश्वर नहीं है, तुम्हारा बच्चा ईश्वर नहीं है? यदि तुम पत्नी से प्रेम कर सकते हो, तो संसार का संपूर्ण धर्म तुम्हारे पास है। धर्म और योग का सारा रहस्य तुम्हारे भीतर है, पर क्या तुम प्रेम कर सकते हो? प्रश्न यह है कि तुम कहते हो, ‘मैं प्रेम करता हूं…ओ, मेरी, मैं तुम्हारे लिए मरता हूं।’

पर यदि (तुम) मेरी को किसी दूसरे पुरुष का चुंबन लेते देखते हो, तो तुम उस व्यक्ति का गला काटना चाहते हो। यदि मेरी जॉन को किसी दूसरी लड़की से बात करते देख लेती है, तो वह रात भर सो नहीं पाती और वह जॉन के जीवन को नरक बना देती है। यह प्रेम नहीं है। यह तो लेन-देन और बिक्री है।

इसको प्रेम का नाम देना अन्याय है। संसार दिन-रात ईश्वर और धर्म की इसलिए प्रेम की बात करता है। प्रत्येक वस्तु का मजाक, यही है, जो तुम कर रहे हो! प्रत्येक मनुष्य की बात करता है फिर भी समाचार पत्रों  के स्तंभों में, हम प्रतिदिन तलाकों की बात पढ़ते हैं। जब तुम जॉन से प्रेम करती हो, तो तुम जॉन से उसके लिए प्रेम करती हो या अपने लिए। यदि तुम तुम जॉन से अपने लिए प्रेम करती हो, तो तुम जॉन से कुछ आशा रखती हो, यदि तुम जॉन से उसके लिए प्रेम करती हो, तो तुम जॉन से कुछ नहीं चाहतीं। वह जो चाहे कर सकता है और तुम उससे वैसा ही प्रेम करती रहोगी। ये हैं तीन बिंदु, तीन कोण, जो (प्रेम का) त्रिकोण बनाते हैं। जब तक प्रेम नहीं होता, ज्ञान सूखी हड्डियों जैसा रहता है, योग एक प्रकार का। (सिद्धांत) बन जाता है और कर्म केवल श्रम मात्र रह जाता है। (यदि प्रेम होता है) तो ज्ञान काव्य हो जाता है, योग (रहस्यवाद) बन जाता है और कर्म सृष्टि में सबसे आनंददायक वस्तु हो जाता है। पुस्तकों को (केवल) पढ़ने से मनुष्य बांझ हो जाता है। विद्वान कौन बनता है? वह जो प्रेम की एक बूंद भी अनुभव कर पाता है। ईश्वर प्रेम है और ईश्वर है और ईश्वर सर्वव्यापी है। यह जानने के बाद कि ईश्वर प्रेम है और ईश्वर सर्वव्यापी है।


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