कुछ सवाल कांग्रेस के

By: Nov 1st, 2018 12:05 am

सत्ता के बाहर विपक्ष को जिन सवालों से मोहब्बत हो जाती है, दरअसल वे कभी आस्तीन के सांप बनकर उसे भी डस चुके होते हैं। हिमाचल की जनता के समक्ष न जाने सियासी चार्जशीटों के कितने पन्ने फटे सबूतों की तरह बिखरे, फिर भी भ्रष्टाचार के गले में आज तक कहीं कोई फांसी नहीं लगी। अब कांगे्रस की काली स्याही उबल रही है और पुनः हिमाचली जनता आरोपों के पिंजरे देखेगी। सियासी घमासान के आंगन में चार्जशीट बनाम चार्जशीट का मसाला फिर बिकेगा या यह मजमून अब अदालती नहीं रहा। सियासी पैमाने अब केवल यह बताते हैं कि फलां ने फलां के खिलाफ कितना कीचड़ उछाला और अंत में सत्ता की दरगाह में सारा पाप किस तरह धुल जाता है। हिमाचल सरकार के खिलाफ कांगे्रस को कुछ आरोप दागने की छूट है, मगर इससे पहले भाजपा सरकार को अतीत के गढ़े मुर्दों की राख झाड़ते हुए अपनी चार्जशीटों की फांस बतानी पड़ेगी। कमोबेश कुछ सवालिया निशान जनता भी लगाती रही है और इसका एक प्रमाण दिग्गज नेताओं की हार का पैगाम भी होता रहा है। हम यह नहीं कहते कि चुनाव में जो डूबा वह भ्रष्ट था, लेकिन भ्रष्टाचार हमेशा से प्रचार सामग्री पर अपने निशान छोड़ता रहा। जाहिर है कि राजनीति में ईमानदारी ढूंढना अब जनता के अपने आचरण पर भी प्रश्न चस्पां करता है और जिस तरह सरकारी धन का आबंटन सहमति से हो रहा है, उसमें दाग तलाशना अपने आप में एक वहम सरीखा है। हिमाचली जनता खुद अपने पाले जिस तरह बदल कर सियासत जैसी हो गई है, तो इसके सामने किसकी कालिख टिकेगी। सामाजिक मान्यताएं अपने भ्रम में भ्रष्टाचार से मुक्त होने की दुहाई दे सकती हैं या चौक-चौराहों की चर्चा में बदनाम परिंदों पर छींटाकशी हो भी जाए, मगर जिगर पर हाथ रखकर कोई यह मानने को तैयार नहीं कि इसका भ्रष्टाचार, उसके भ्रष्टाचार से कम या अधिक मैला है। ऐसे में हिमाचल कांगे्रस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू ने विपक्षी ब्लैक बोर्ड पर पुनः चार्जशीट का नोटिस चस्पां किया है। बेशक कुछ मुद्दे आगामी लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत लोकप्रिय हो सकते हैं या तात्कालिक निराशा में विरोध को पांव लग जाएं, लेकिन कोई यह बता दे कि आरोपों की मैली गंगा वास्तव में साफ हो जाएगी। आज तक की तमाम चार्जशीटों का निष्कर्ष अगर शून्य रहा, तो इस दस्तूर से खेलता लोकतंत्र आखिर जा किधर रहा है। इसमें लोगों की पसंद या नापसंद की हालत भी अब चार्जशीट जैसी ही है। विकास के बजाय जनता अपने निजी स्वार्थ की पूंजी में राजनीतिक रोटियां सेंकती है। जनप्रतिनिधियों की योग्यता-दक्षता में आम मतदाता की पसंद ऐसे नेताओं पर ही क्यों टिकती है, जो या तो जातीय समीकरणों में सही पाए जाते हैं या उनकी काबिलीयत में जीत की रिश्वत पहले से तय होती है। यानी जो जनप्रतिनिधि कानून या तर्कसम्मत व्यवहार को अहमियत दे, उसे कबूल करने का सामर्थ्य हिमाचली जनता खो चुकी है। ऐसे में जनप्रतिनिधि प्रदर्शन का मूल्यांकन या तो जनता के निजी कार्य करते हैं या अपने स्थायित्व प्रसार में नेता भटक जाते हैं। ताजा उदाहरण देहरागोपीपुर के विधायक होशियार सिंह के हालिया बयान रहे हैं, जो अपने आप में राजनीतिक मूल्यों की कसौटी है। विधायक ने हिमाचल में सीमेंट के दाम अन्य राज्यों के मुकाबले सौ रुपए से भी अधिक महंगे होने के सबूत पेश कर जो हलचल पैदा की है, उसको हम मात्र राजनीतिक बहस नहीं मान सकते। विधायक के प्रश्नों को जनता समझ रही है और यह तर्क भी वाजिब है कि हिमाचल में बना सीमेंट पंजाब में सौ रुपए तक सस्ता कैसे हो सकता है, जबकि जीएसटी के मापदंड अब ऐसी स्थिति के खिलाफ केंद्र सरकार का सबसे बड़ा टैक्स सुधार माना जा रहा है। विधायक होशियार सिंह का मुद्दा उस समय शिकायत कर रहा है, जब कांगे्रस भी सरकार की नीयत पर प्रश्न उठा रही है। सरकार द्वारा पूर्व सरकार द्वारा बनाए गए मामले जिस तरह ढह रहे हैं या इन्हें वापस लिया जा रहा है, उससे नई फेहरिस्त में विपक्ष का आक्रामक रुख कितनी हकीकत छू पाएगा यह आने वाला समय ही बताएगा। फिलहाल सीमेंट के मोर्चे पर देहरा के विधायक ने उद्योग मंत्री को प्रश्नांकित करके सरकार से बहुत कुछ पूछ लिया है।

 


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