गीता रहस्य
वेदाध्ययन विद्वानों का संग, धर्माचरण, यज्ञ,नाम स्मरण एवं अष्टांग योग की साधना इत्यादि अनेक शुभ कर्मों को करते हुए योगी यदि असंप्रज्ञात समाधि को प्राप्त कर लेता है तब वह मोक्ष का अधिकारी बनता है। चाहे वह उत्तरायण में,शुक्ल पक्ष आदि के समय में प्राण छोड़े चाहे दक्षिणायन कृष्ण पक्ष आदि के समय में प्राण छोड़े…
मंत्र में कहा है कि सूर्यलोक स्वयं प्रकाश रूप है अतः रात्रि के अंधकार का नाश करके अपने प्रकाश से सबको प्रकाश देता है। उसी प्रकार विद्वान लोग वेद की विद्या और उससे कहीं उत्तम शिक्षा देकर अज्ञान का नाश करके सब मनुष्यों को ज्ञानवान करते हैं और सुख देते हैं।
प्रस्तुत श्लोक का वैदिक भाव यह है कि वह योगी जो चाहे उत्तरायण में प्राण छोड़े चाहे दक्षिणायन में, चाहे कृष्ण पक्ष हो चाहे शुक्ल पक्ष, किसी भी समय प्राण छोड़े और यदि शुभ कर्म, साधना आदि करता है परंतु उस समय वह मुक्त अवस्था में नहीं है और सकाम योगी है तब वह कर्मानुष्ठान करने वाला योगी बार-बार भोग रूपी आनंद को प्राप्त करने के लिए पुनः लौटकर जन्म लेने वापस आता है।
अतः यह धारण मिथ्या है कि जो उत्तरायण में शरीर छोड़ेगा वह पुनः जन्म नहीं लेता और जो दक्षिणायन में शरीर छोड़ता है, वह पुनः जन्म लेता है। मोक्ष का संबंध केवल वैदिक शुभ कर्म, यज्ञ एवं योगाभ्यास पर आधारित है।
वेदाध्ययन विद्वानों का संग, धर्माचरण, यज्ञ,नाम स्मरण एवं अष्टांग योग की साधना इत्यादि अनेक शुभ कर्मों को करते हुए योगी यदि असंप्रज्ञात समाधि को प्राप्त कर लेता है तब वह मोक्ष का अधिकारी बनता है। चाहे वह उत्तरायण में,शुक्ल पक्ष आदि के समय में प्राण छोड़े चाहे दक्षिणायन कृष्ण पक्ष आदि के समय में प्राण छोड़े। वह तो हर समय जीवित ही मुक्त पुरुष है। मनुष्य का मख्य उद्देश्य शुभ कर्म करते हुए यजुर्वेद मंत्र के अनुसार ईश्वर को जानना है तभी मुक्ति होती है।
उदाहरणार्थ यजुर्वेद मंत्र 40/ 12 के अनुसार
अंधतमः प्र विषंति
येऽविद्यामुपासते।
ततो भूयऽउ विद्ययां रतः।
अर्थात वह नर नारी जो वेद विद्या न सुनने के कारण अविद्याग्रस्त है, वह अंधकार में प्रवेश कर जाते हैं। तब यहां ऐसा नहीं कहा जाएगा कि जो अज्ञानी है वह सूर्य या बिजली की रोशनी में कभी आता ही नहीं,सदा किसी गहरे अंधकार कुएं अथवा वन में चला जाता है और वहां रहने लग जाता है, ऐसा नहीं है। अंधकार का यहां अर्थ अज्ञान और अविद्या होगा और अविद्याग्रस्त होने के कारण वह पाप कर्म करेगा और असुर योनि में प्रवेश करेगा।
इसी तरह दक्षिणायन एवं कृष्ण पक्ष आदि का भाव कमानुष्ठान करने वाला सकामी योगी है जो पुनःपुनः जन्म लेता है और उत्तरायण एवं शुक्ल पक्ष का अर्थ है मोक्ष प्राप्त योगी जो शरीर त्यागने के पश्चात पुनः जन्म नहीं लेता।
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