गोपाष्टमी पर्व

By: Nov 10th, 2018 12:07 am

कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इंद्र अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आए…

गोपाष्टमी ब्रज में संस्कृति का एक प्रमुख पर्व है। इस बार यह पर्व 16 नवंबर को मनाया जा रहा है। गउओं की रक्षा करने के कारण भगवान श्री कृष्ण जी का अतिप्रिय नाम गोविंद पड़ा। कार्तिक शुक्ल पक्ष, प्रतिपदा से सप्तमी तक गो-गोप-गोपियों की रक्षा के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को धारण किया था। 8वें दिन इंद्र अहंकार रहित होकर भगवान की शरण में आए। कामधेनु ने श्रीकृष्ण का अभिषेक किया,उसी दिन से इनका नाम गोविंद पड़ा।

इसी समय से अष्टमी को गोपाष्टमी का पर्व मनाया जाने लगा, जो कि अब तक चला आ रहा है। इस दिन प्रातः काल गउओं को स्नान कराएं तथा गंध, धूप, पुष्प आदि से पूजा करें और अनेक प्रकार के वस्त्रालंकारों से अलंकृत करके ग्वालों का पूजन करें,गउओं को गो-ग्रास देकर उनकी प्रदक्षिणा करें।

गोपाष्टमी को सायंकाल गउएं चरकर जब वापस आएं, तो उस समय भी उनका अभिवादन और पंचोपचार पूजन करके कुछ भोजन कराएं और उनकी चरण रज को माथे पर धारण करें। उससे सौभाग्य की वृद्धि होती है। भारतवर्ष के प्रायः सभी भागों में गोपाष्टमी का उत्सव बड़े ही उल्लास से मनाया जाता है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने सबसे पहली बार गऊ चराई थी। वैसे तो भगवान ने ग्वाले की जाति में ही जन्म लिया था, लेकिन यशोदा मईया ने उन्हें प्रेमवश कभी गऊ चराने के लिए नहीं जाने दिया था। एक दिन कन्हैया ने जिद्द कर गऊ चराने के लिए जाने को कहा। तब यशोदा जी ने ऋषि शांडिल्य से कह कर मुहूर्त निकलवाया और पूजन के लिए श्रीकृष्ण को गऊ चराने के लिए भेजा। भगवान की गऊ चारण लीला के ही दर्शन, स्मरण और लीला ही गोपाष्टमी मनाने का मुख्य कारण है।


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