चंबा ही है, जो मुस्लिम-गोरखा आक्रमणों व हिंसा से वंचित रहा

By: Nov 4th, 2018 12:05 am

संपूर्ण हिमाचल का इकलौता रियासती राज्य चंबा ही है, जो मुस्लिम और गोरखा आक्रमणों व हिंसा से वंचित रहा। इसी कारण चंबा रियासत के इतिहास के संबंध में विस्तृत जानकारी शोधार्थियों के पास उपलब्ध है। चंबा के राजाओं के बारे में विवरण कलहण द्वारा रचित ‘राजतरंगिनी’ में भी मिलता है…

 गतांक से आगे …

चंबा के इतिहास का प्रमुख स्रोत वंशावली या राजाओं के पारिवारिक पुरोहित से प्राप्त रिकार्ड हैं, जो लंबे समय से सुरक्षित रखे गए हैं। इसी संदर्भ में ताम्रपत्र लेखक पत्थर लेख का अपना अलग महत्त्व है। संपूर्ण पंजाब हिमालय व हिमाचल हिमालय का इकलौता रियासती राज्य चंबा ही है, जो मुस्लिम व गोरखा आक्रमणों व हिंसा से वंचित रहा, इसी कारण चंबा रियासत के इतिहास संबंधों विस्तृत जानकारी शोधार्थियों के पास उपलब्ध है। चंबा के राजाओं के बारे में वितरण कलहन द्वारा रचित ‘राजतरंगर्णी’ में भी मिलता है। उपलब्ध रिकार्ड में शामिल हैं-पत्थर लेख, प्रतिभा लेख, शिलालेख तथा ताम्र पत्र लेख प्रमुख हैं। इनमें सभी में पत्थर लेख सबसे प्राचीन हैं। इनमें सबसे प्राचीन गुप्तकाल के 7वीं शताब्दी के लेख हैं।

चंबा राज्य के इतिहास को जानने के लिए हमारे पास सबसे सशक्त स्त्रेत ‘वंशावली’ है, जिसमें राजाओं के क्रमवार विवरण के अतिरिक्त ढेरों शाही आदेश तथा शिलालेख हैं, जो संबंधित राजा तथा शाही परिवार के इतिहास पर प्रकाश डालते हैं। यह चंबा राज्य का सौभाग्य था कि इस राज्य पर अरब तथा मुगलों के आक्रमण का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप इस राज्य की ऐतिहासिक विरासत तहस-नहस होने से बच गई, जबकि पंजाब हिमालय के अन्य राज्यों के साथ ऐसा नहीं हुआ और वे अपनी बहुमूल्य ऐतिहासिक धरोहरों से हाथ धो चुके। चंबा राज्य के प्रारंभिक शासकों द्वारा दान की गई ताम्र प्लेट आज भी चंबा के शाही परिवार के पास सुरक्षित हैं। इन ताम्र पत्रों का उल्लेख ‘राजतरंगनी’ में मिलता है। प्रमाण सामग्री को उनकी उपलब्धता के आधार पर अलग-अलग श्रेणियों मंे विभक्त किया गया है। यह सामग्री पाषाण लेख, छाया लेख, शिला लेख तथा ताम्र पत्र लेख के रूप में मिली है। इनमें सबसे प्राचीन पाषाण लेख है तथा प्राचीनतम लेख गुप्त काल की सातवीं शताब्दी से संबंधित है।

बीसवी शताब्दी के चतुर्थ दशक तक उत्तर भारत में गणतंत्रीय  लोकतंत्र के बारे में जानकारी बहुत कम थी, लेकिन ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि कांगड़ा, शिमला तथा जम्मू क्षेत्र की पहाड़ी रियासतों में गणतंत्रीय पद्धति प्राचीन काल में ईशा पूर्व से विद्यामन थी। इन क्षेत्रों में मादर-शल्व कंलिंद, त्रिगर्त, कुलुत, यौद्योय, औंदुम्बर, बेका किरा तथा अन्य कई प्राचीन गणतंत्रीय कबीलों का निवास था, लेकिन तात्कालीन समय के शक्तिशाली समुहों इंडो यूनानी तथा शक कुषाण प्रजातियों ने इन गणतंत्रीय कबीलों को अपने नियंत्रण में कर उनकी शक्ति को  क्षीण कर दिया इनमें से कुछ कबीलों ने संघ बना कर विदेशी आक्रांताओं का मुकाबला किया तथा अपनी शक्ति के बल पर अपनी गणतंत्र प्रणाली को पुर्नजीवित किया। विदेशी आक्रमताओं के साथ संघर्ष में कुछ कबीले जैसे कि औदुम्बरा, इतिहास के पन्ने में खो गए।


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