चीड़ की पत्तियों के प्रबंधन की अच्छी खबर

By: Nov 12th, 2018 12:08 am

कुलभूषण उपमन्यु

लेखक, हिमालय नीति अभ्यिन के अध्यक्ष हैं

आईआईटी मंडी (हिप्र) के ‘हिमालय क्षेत्रीय नवाचारी तकनीक विकास केंद्र’ ने तीन वर्ष की मेहनत के बाद चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट और पेलेट बनाने की तकनीक और प्लांट विकसित कर लिया है…

चीड़ की पत्तियां वनों में आग लगने का हमेशा से एक बड़ा कारण रही हैं। वनों को आग से बचाने और स्थानीय आजीविकाओं के प्रति चिंता रखने वाला हर आदमी इस विषय में चिंता रखता है और चाहता है कि चीड़ की पत्तियों के निपटारे का कोई व्यावहारिक समाधान निकल आए, ताकि वनों को आग से बचाने का काम आसान हो और वनों में घास और अन्य वनस्पतियों के पनपने के लिए भी स्थान हो जाए। चीड़ की पत्तियां सड़ती नहीं हैं, इस कारण सालों तक वनों में पड़ी रह सकती हैं और इसी वजह से उनके नीचे कुछ भी उग नहीं सकता है। बार-बार आग लगने के कारण अन्य वनस्पतियां चीड़ के वनों से लुप्त हो जाती हैं, जिसका वानस्पतिक विविधता पर बुरा प्रभाव पड़ता है और वानस्पतिक विविधता के नष्ट होने के कारण जैव विविधता भी नष्ट होती है।

इसके कारण वनों पर निर्भर व्यवसाय विशेषकर पशु पालन और कृषि भी बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। जड़ी-बूटी व्यवसाय भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। चीड़ वनों का प्रचार एक पर्यावरणीय गलती थी, जिसका उपचार करना समय की जरूरत बन गई है। धीरे-धीरे चीड़ वनों को मिश्रित वनों में बदल कर चारे की कमी और कृषि जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ अन्य आजीविका स्रोतों को पुनर्जीवित करने की जरूरत है। यह दीर्घकालीन योजना के अंतर्गत आरंभ किया जाना चाहिए, किंतु चीड़ की पत्तियों से तात्कालिक रूप से निपटने की कोई व्यवस्था बनती है, तो यह बड़ी राहत की बात होगी। इस दृष्टि से आईआईटी मंडी से शुभ समाचार आया है। आईआईटी मंडी (हिप्र) के ‘हिमालय क्षेत्रीय नवाचारी तकनीक विकास केंद्र’ ने पिछले तीन वर्ष की मेहनत के बाद चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट और पेलेट बनाने की तकनीक और प्लांट विकसित कर लिया है।

चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट बनाने की बात और संभावना तो कई वर्षों से जताई जा रही थी, किंतु व्यावहारिक समाधान के साथ समस्या को हल करने की व्यवस्था खड़ी करने के लिए आईआईटी मंडी बधाई का पात्र है। भूस्खलन की पूर्व चेतावनी देने के लिए सेंसर विकसित करके इस बरसात में कोटरोपी में पिछले वर्ष जैसी दुर्घटना की संभावना को रोककर पहले भी यह संस्थान प्रदेश के लिए अपनी उपादेयता सिद्ध कर चुका है। प्रदेश को ऐसी ही तकनीकी शोध दृष्टि की जरूरत है, जो वास्तविक समस्याओं को हल करने के रास्ते बना सके।

संस्थान ने अपने परिसर में एक प्लांट भी ब्रिकेट बनाने के लिए स्थापित कर लिया है। चीड़ की पत्तियों के ये ब्रिकेट (गुटके) कई छोटे-बड़े उद्योगों में ईंधन के रूप  में प्रयोग किए जा सकते हैं। खाना पकाने के लिए ईंधन के लिए भी प्रयोग किए जा सकते हैं। इससे उद्योगों में कोयले या लकड़ी का ईंधन जलाने का विकल्प उपलब्ध होगा और ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन भी कम होगा। हिमाचल सरकार ने चीड़ की पत्तियों से ब्रिकेट बनाने के लिए आगे आने वाले उद्योगों को 50 फीसदी उपदान देने का फैसला करके सराहनीय कार्य किया है। वन विभाग मंडी ने भी इस प्रक्रिया में अपने हिस्से का योगदान देने का वादा करके इस समस्या के समाधान का रास्ता साफ करने का काम किया है। अब जरूरत यह है कि वन विभाग प्रदेश स्तर पर भी इस तरह के सहयोग का निर्णय करे। प्लांट स्थापित करने की जानकारी तो आईआईटी मंडी में उपलब्ध होगी, किंतु अगला महत्त्वपूर्ण कदम ब्रिकेट के लिए खरीददारों से संपर्क करवाने का है। सरकार को चाहिए कि ब्रिकेट बिक्री व्यवस्था खड़ी करने में भी सहयोग करे।

हिमाचल प्रदेश के सिरमौर, सोलन, बिलासपुर, हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना, चंबा और मंडी जिलों में चीड़ की भारी मात्रा में उपलब्धता है। अतः इन जिलों में चीड़ की पत्तियां हटाए जाने से घास, चारे और जैव विविधता के बढ़ने से आजीविका के अवसर पैदा होंगे, इसके अतिरिक्त चीड़ के ब्रिकेट बनाने के उद्योगों में भी काफी बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा करने की क्षमता खड़ी होगी। यह तकनीक हमारे पड़ोसी राज्यों जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड के लिए भी उपयोगी सिद्ध होगी। शुभ काम में देर नहीं होनी चाहिए, अतः जितनी जल्दी हो सके तमाम व्यवस्थाओं को यथास्थान संयोजित करके कार्य धरातल पर उतारा जाना चाहिए। प्रदेश निस्संदेह इस तकनीक और उद्योग से लाभान्वित होगा।


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