जप करने के अलग-अलग तरीके

By: Nov 10th, 2018 12:05 am

इस प्रकार सबको छोड़कर कुशा की कूंची बनाकर तथा उसे भी घड़े में छोड़कर स्नान करके एक हजार बार मंत्र का जप करना आवश्यक है। अमावस्या के दिन सोमलता (छेउटा) की डाली से होम करने पर क्षय रोग का निवारण होता है…

 -गतांक से आगे…

सौवर्ण, राजत वापि कुंभ ताम्रमय च वा।

मृनमय वा नवं दिव्य सूत्रवेष्ठिमब्रणम। 13।

मंडले सैकते स्थाप्यं पूरयेन्मंत्रितर्जलैः।

दिग्भ्य आहृत्य तीर्थानि चतसृभ्यो द्विजोत्तमैः। 14।

सोना, चांदी, तांबे या मिट्टी आदि में से किसी एक का छेद रहित बर्तन लेकर उसे सत्त से ढक कर बालू वाले स्थान पर स्थापित करके सिद्ध प्राप्त ब्राह्मणों द्वारा चारों दिशाओं से लाए गए जल से भरें।

एला, चंदन, कपूर, जाती, पाटल, मल्लिका। 15।

विल्वपत्र तथा क्रांता, देवी ब्रीहि यवांस्तिलान।

सर्षपान क्षीर वृक्षाणां प्रवालानि च निक्षपेत। 16।

इलायची, चंदन, कपूर, जाती, पाटल बेला बिल्व-पत्र, विष्णुक्रांता, देवी (सहदेई), जौ, तिल, सरसों और दुग्ध निकालने वाले वृक्षों के पत्ते लेकर उसमें मिलाएं।

सर्वमेवं विनिक्षप्य कुश कूर्च समन्वितम।

स्नातः समाहितो विप्रः सहस्र मंत्रेयद् बुधः

। 17।-इस प्रकार सबको छोड़कर कुशा की कूंची बनाकर तथा उसे भी घड़े में छोड़कर स्नान करके एक हजार बार मंत्र का जप करना आवश्यक है।

दिक्षु सौरानधीयीरन मंत्रान विप्रास्रयीविदः।

प्रोक्षयेप्पाययेदेन नीर तेनाभिर्षिचयेत। 18।

धर्म ज्ञाता ब्राह्मणों द्वारा मंत्रों से पूजीकृत इस जल से भूत आदि की बाधा से पीडि़त पुरुष के ऊपर मार्जन करें तथा पिलावें तथा गायत्री मंत्र के साथ इसी जल से अभिर्षिचन करें। ऐसा करने से पीडि़त व्यक्ति पर मंत्र का असर शीघ्र होता है।

निवेद्य भास्करायान्न पायसं होम पूर्वकम।

राज्यक्ष्ममाभिभूत च पाययेअंत्रछांतिमाप्नुयात। 19।-दूध की खीर बनाकर सूर्य को अर्पण करें तथा हवन से शेष बची हुई खीर को राज्यक्ष्मा के रोगी को सेवन कराएं तो रोग की शांति होती है।

लताः पर्वसु विच्छिद्य सोमस्य जुहुयाद द्विजः।

सोमे सूर्येण संयुक्ते प्रयुक्ताः क्षयशांतये

। 20।-अमावस्या के दिन सोमलता (छेउटा) की डाली से होम करने पर क्षय रोग का निवारण होता है।

कुसुमैः शख्ड़वृक्षस्य हुत्वा कुष्ठं विनाशतेय।

अपस्मार विनाशः स्याद्पामार्गस्य तंडुलः

। 21। – शख्ड़, वृक्ष की समिधाओं से हवन किया जाए तो कुष्ठ रोग का विनाश होता है तथा अपामार्ग के बीजों से हवन करने पर अपस्मार रोग का विनाश होता है।

क्षीर वृक्ष समिद्धोमादुन्मादोअपि विनश्यति।

औटुंबर समिद्धोमादतिमेहः क्षयं ब्रजेत। 22।

क्षीर वृक्ष की समिधाओं से हवन करने पर उन्माद रोग नहीं रहता तथा औटुंबर (गूलर) की समिधाओं से हवन किया जाए तो महा-प्रमेह विनष्ट होता है।   


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