तपोवन में सत्ता का मूल्यांकन

By: Nov 17th, 2018 12:05 am

हिमाचली सत्ता के मूल्यांकन में विधानसभा का शीतकालीन सत्र जब तपोवन में सजता है, तो राजनीतिक संतुलन से संदेश तक की परख भी होती है। ऐसे में तपोवन में इस बार जो इतिहास लिखा जाएगा, उसमें मुख्यमंत्री  के रूप में जयराम ठाकुर के व्यक्तित्व का तुलनात्मक अध्ययन व समीक्षा रेखांकित होगी। इरादों, परिपक्वता तथा दस्तूर की फेहरिस्त में प्रश्न जब सरकार की टोह लेंगे, तो अपनी पारी के संदर्भों में वर्तमान सरकार का नजरिया सामने आएगा। सत्र के बहाने जयराम सरकार के हर मुहाने की पड़ताल करता विपक्ष, लेकिन असली तात्पर्य अपनी ही वार्षिक रिपोर्ट से  जोड़कर सत्ता को मिलेगा। गिनती में नई नीतियों का हिसाब, कार्यक्रमों का उल्लेख और राज्य के प्रति वफादारी का संकल्प पुनः तराजू पर होगा, तो उन आकांक्षाओं और संभावनाओं का कद भी देखा जाएगा, जो जयराम ठाकुर को बतौर मुख्यमंत्री कबूल करती हैं। विपक्ष के प्रश्न तो विरोध के काम आएंगे, लेकिन सत्ता की जवाबदेही में सभी मंत्रियों का प्रदर्शन सामने आएगा। जाहिर है पिछले एक साल में वर्तमान सरकार ने पूर्व भाजपा सरकारों से भिन्न खड़े होने की कोशिश की है, तो युवा नेतृत्व के हिसाब से हिमाचल की सियासत ने सत्ता को अपने हक में खड़ा किया है। सरकार ने अपनी प्राथमिकताओं में पर्यटन की महफिल के सुर ऊंचे किए, तो क्षेत्रीय संवेदनाओं के अनुरूप योजनाओं की ताजपोशी की। कमोबेश हिमाचल की हर सरकार ने विजन की अपनी भूमि चुनी, तो इस दृष्टि से हेलि टैक्सी सेवाओं के माध्यम से सरकार अनछुए हिमाचल को पर्यटन के करीब लाना चाह रही है। खास तौर पर नीयत व नीति पर जयराम ठाकुर सरकार का भाजपा की ही पूर्ववर्ती सरकारों से तुलनात्मक मुकाबला शुरू हुआ है, तो सादगी व सरलता  का आचरण  देखा गया। भाजपा के पिछले दौर में राजनीति का भूगोल जिस तेजी से बदला जा रहा था, उससे हटकर अब पुनः राजनीतिक संतुलन की भूमिका में शिमला, मंडी व कांगड़ा के समीकरण देखे व परखे जा रहे हैं। जिलों को तोड़ने की बिसात पर भाजपा ने जो क्षत्रप खड़े किए थे, वे सभी अब नेपथ्य में चले गए हैं। यह दीगर है कि वर्तमान सत्ता के घोड़े नई रकाब को आजमाने में पूरी तरह प्रशिक्षित नहीं हैं, लिहाजा वरिष्ठता और कनिष्ठता के बीच दौड़ते मंसूबों में रगड़ रही है। मंत्रियों के विभागों का आबंटन भी राजनीतिक वरीयता में सुराख कर गया है, तो सत्ता के लाभकारी पदों पर विराजित प्राथमिकताएं सरकार के नैन नक्श का हवाला देती हैं। पदों पर लटकी रिक्तियां अभी भी चेहरों का इंतजार कर रही हैं, तो ताज्जुब यह कि राजनीतिक फैसलों में वर्तमान भाजपा सरकार ने कुछ ज्यादा ही समय ले लिया। यहां भाजपा की आलोचना से शहीद हुई कांग्रेसी सत्ता, अब विपक्ष की भूमिका में सवाल खड़े करेगी तो चुनाव की याद आएगी। नेशनल हाई-वे तथा फोरलेन परियोजनाओं में हो रही देरी का सवाल तो उठेगा। कल तक पूर्व सरकार  से यह पूछा जाता था कि डीपीआर बनाने में देरी क्यों, तो अब जयराम सरकार को बताना होगा कि इस दिशा में एक साल की प्रगति क्या है और नेरचौक फोरलेन विस्थापितों  को उनका हक कैसे मिलेगा। कोटखाई कांड ने चुनावी वातावरण  को अंजाम तक पहुंचाया, तो अब प्रदेश की कानून-व्यवस्था में सुधार की समीक्षा होगी। बहरहाल शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष तो होगा, व्यक्तिगत रंजिश नहीं, इसलिए पिछले दौर की कहानियों से अलहदा विरोध व आलोचना से पक्ष-प्रतिपक्ष के बीच सार्थक बहस की उम्मीद की जा सकती है। तपोवन अपने संदर्भों की प्रासंगिकता में पुनः विधानसभा को अंगीकार कर रहा है, तो यह क्षेत्रीय आशाओं और सरकार को मंच भी प्रदान कर रहा है।

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