ताकि गुड़ गोबर न बने

By: Nov 23rd, 2018 12:05 am

इसे हम पूर्व सरकार के फैसले पर चलती कैंची की तरह न लें, तो तेरह नर्सिंग कालेजों को निरस्त करने से सियासत दिखाई नहीं देगी, लेकिन दूसरी ओर घोषणाओं की फेहरिस्त में स्थापित होते सरकारी संस्थान भी तो इसी तर्क से बंधने चाहिएं। सरकार की एक साल की उपलब्धियों में नए कार्यालय व संस्थानों की सूची में हम अनावश्यक या सियासी विस्तार देख सकते हैं। जाहिर है प्रदेश में पहले से चल रहे 42 नर्सिंग संस्थानों के अलावा अगर कुछ और जुड़ जाएं, तो सारा गुड़ गोबर हो जाएगा। कमोबेश हर विभाग का अनावश्यक विस्तार इसी तरह गुड़ गोबर कर रहा है। पालमपुर कृषि विश्वविद्यालय अगर कांगड़ा जिला में स्थापित किया गया तो कांगड़ा में कृषि विज्ञान केंद्र की स्थापना इसलिए कर दी गई, क्योंकि इस क्षेत्र से तत्कालीन कृषि मंत्री चौधरी विद्यासागर संबंध रखते थे। नगरोटा बगवां से पूर्व में परिवहन मंत्री का होना परिवहन निगम का एक डिपो बढ़ा गया। कमोबेश ऐसी तरक्की का खामियाजा तय है, जहां तर्क को गुंजाइश जरूरी न रह जाए। वर्तमान सरकार के दौर में बागबानी परियोजना पर संकट के बादलों के हिसाब कुछ इसी प्रकार की प्राथमिकताओं में उलझ गया, तो बड़े एयरपोर्ट की तैयारी में सरकार की वरीयता का सबब बनकर खुद मुख्यमंत्री कह चुके हैं कि जनता अगर अडि़यल रहेगी, तो परियोजना छटक जाएगी। मंत्रियों की गणना में विकास के पहिए वैयक्तिक होकर नए औद्योगिक केंद्र, स्कूल-कालेज या राष्ट्रीय स्तर के संस्थानों की पैमाइश में खुद का इजहार करते हैं, तो पार्टी विशेष के समर्थक, राजनीतिक निवेशक और व्यक्ति प्रशंसक सत्ता की खुशहाली में निजी निवेश कर लेते हैं। इसलिए नामंजूर हो रहे तेरह नर्सिंग कालेजों के दस्तावेज अगर सामने आएं, तो मालूम हो जाएगा कि सत्ता के चक्कर में किस तरह एक खास वर्ग लाभान्वित हो सकता है। हिमाचल का मात्रात्मक विकास अब अनावश्यक विस्तार की तस्वीर में निरूपित हो रहा है, लिहाजा किसी भी क्षेत्र में गुणवत्ता हासिल नहीं। बेशक सरकार ने तेरह नर्सिंग कालेजों को खोलने की मंजूरी नहीं दी, लेकिन इसका यह अर्थ नहीं कि अब तक चल रहे 42 कालेज पूरी तरह गुणवत्ता के आधार पर नर्सिंग ट्रेनिंग देने में निपुण होंगे। इसी तर्क पर प्रदेश में खुले सरकारी-गैर सरकारी शिक्षण व चिकित्सा संस्थानों का विश्लेषण किया जाए, तो कुछ वजन हल्का करना पड़ेगा। प्रदेश भर में अनावश्यक रूप से खोले गए विभिन्न कार्यालयों के औचित्य पर खड़े सवालों का संज्ञान न लेना भी तो सियासी कमजोरी है। करीब सत्तर लाख की आबादी को देखते हुए कितने स्कूल, कालेज या मेडिकल कालेज चाहिए, इस पर भी तो कभी विधानसभा में बहस हो। हिमाचल में राजनीतिक टकराव यह तय नहीं करता कि प्रदेश के हित में क्या है, बल्कि राजनीतिक मतभेद में आवश्यकता को सत्ता की प्राथमिकता के कारण नजरअंदाज कर दिया जाता है। कमोबेश जनता की मांग भी इसी अंदाज में सत्ता का सियासी रुआब देखने लगी है। वीरभद्र सिंह के विकास की गाड़ी अंत में घोषणाओं की ऐसी प्रतिस्पर्धा तक पहुंच गई कि मीडिया भी हर दिन की घोषणा में अव्यावहारिक निर्णय देखने लगा। अगर एक ही विधानसभा क्षेत्र में तीन-तीन कालेज खुल जाएं, तो तर्कों की समाधियां गिननी मुश्किल हो जाएंगी। यहां एक भिन्नता जरूर है और यह समझना भी होगा कि हिमाचल में जिन लोगों ने शिक्षा, चिकित्सा व व्यावसायिक शिक्षा के क्षेत्र में हालिया निवेश किया, उनकी पृष्ठभूमि तथा मंशा क्या रही। सरकार इन्वेस्टर मीट को व्यापक पैमाने पर आयोजित करना चाहती है, तो घरेलू निवेशक के लिए भी एक अलग रोडमैप तो चाहिए। अगर तेरह नर्सिंग कालेजों की स्थापना से पहले कुछ अधोसंरचना का निर्माण हो चुका होगा, तो इस संबंध में अब निवेशक के पास विकल्प क्या है। कहीं नियम व औपचारिकताएं पूरी करने की परिपाटी भी तो पारदर्शी ढंग से बनानी होगी, ताकि हिमाचल में कोई भी क्षेत्र अपनी क्षमता को व्यर्थ न कर दे। निजी विश्वविद्यालयों की सुंदर माला पहनकर भी हिमाचल शिक्षा का हब नहीं बना, तो कहीं हमारी नीतियां गुनहगार हैं या संस्थानों को अनुमति देने से पूर्व पृष्ठभूमि नहीं खंगाली गई। आश्चर्य यह कि कभी एमिटी जैसे निजी विश्वविद्यालय ने हिमाचल में रुचि दिखाई, लेकिन सत्ता बदलाव के अहंकार ने इसे अप्रासंगिक मान लिया। आज भी हिमाचल में बेहतर शिक्षण व चिकित्सा संस्थानों की जरूरत है, भले ही जरूरत से ज्यादा स्कूल-कालेज व मेडिकल कालेज खुल चुके हैं। हिमाचल सरकार के शहरी स्कूलों की बेशकीमती अधोसंरचना या मेडिकल कालेजों के संचालन में बर्बाद हो रहे जिला चिकित्सालयों की इमारतों को बेकार होने से रोकना होगा। जिस तत्परता व उद्देश्य से 13 नए नर्सिंग कालेज रुक गए, उसी सामर्थ्य से बेकार हो चुके सरकारी संस्थानों को बंद करना होगा या अनेक विभागों का युक्तिकरण कर देना चाहिए। आखिर सरकारी उपक्रम अगर महज घाटे का उत्पादन हैं, तो हिमाचल को अपने वजूद में भी झांकना चाहिए।

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