दस साल बाद भी पोलीहाउस योजना फेल

By: Nov 24th, 2018 12:05 am

धर्मशाला—प्रदेश के किसानों की आर्थिकी में सुधार करने के लिए वर्ष 2008 की तत्कालीन सरकार द्वारा शुरू की गई पोलीहाउस योजना एक दशक बाद भी सिरे नहीं चढ़ पा रही है। राज्य के शिमला और सोलन जिले को छोड़कर बाकी दस जिलों में योजना के नाम पर सीधे तौर पर गोरखधंधा हुआ है और किसानों ने भी सबसिडी के चक्कर में अपने शौक ही पूरे किए हैं। इस योजना को प्रदेश में दो चरणों में लागू किया गया। पहले चरण में करीब 300 करोड़ और दूसरे चरण में योजना का नाम बदल वाईएस परमार कर करीब दो सौ करोड़ की योजना बनाई गई। योजना के तहत प्रदेश के सभी क्षेत्रों के किसानों अपनी जमीनों में पोलीहाउस स्थापित किए। सरकार ने भी इस योजना पर जोर दिया, ताकि दूसरे पड़ोसी राज्यों से आने वाली सब्जियों की जगह अपने प्रदेश में ही किसान सब्जियां की पैदावार बढ़ाए, और इससे  किसानों की आर्थिकी भी मजबूत हो सकेगी। प्रथम चरण में इस योजना के तहत 80  प्रतिशत अनुदान किसानों को प्रदान किया गया। अधिकतर किसानों को पोलीहाउस में खेती करने का ज्ञान न होने की वजह से कामयाबी नहीं मिल सकी। किसानों ने एक दो बार प्रयास किया, जिसमें सफल न होने पर  या तो पोलीहाउस में पौध लगाना ही बंद कर दी या तो फिर पोलीहाउस ही बेच दिए। इसी बीच कुछेक किसानों ने तूफान या अन्य प्राकृतिक आपदा के कारण नुकसान होने पर भी अपने पोलीहाउस को रिपेयर ही नहीं करवाया और बंद कर दिए। इसके बाद वर्ष 2014 में इस योजना का नाम बदल डा. वाईएस परमार पोलीहाउस योजना को दूसरे चरण में लागू किया गया। इसमें सरकार ने कुछेक नियमों में बदलाव किया, जिसमें सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू था कि जो किसान टे्रनिंग करेगा उसी किसान को योजना के तहत अनुदान का लाभ प्रदान किया जाएगा। जिसमें अब इस योजना में किसानों का रुझान कम देखने को मिल रहा है।  उक्त योजना पर दो चरणों में सरकार ने करीब 500 करोड़ रुपए से अधिक का खर्चा किया,  लेकिन जमीनी स्तर पर यह योजना पूरी तरह से विफल हो चुकी है।

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