पीएम की मां का अपमान क्यों

By: Nov 26th, 2018 12:05 am

प्रधानमंत्री मोदी की अत्यंत बूढ़ी मां के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किसी और ने नहीं, बल्कि उप्र कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर ने किया है। वह एक जिम्मेदार राजनीतिक पद पर हैं। कमोबेश संबंधों और बुजुर्गियत का तो ख्याल रखें। हम दुनिया के श्रेष्ठ लोकतंत्र होने का दावा करते हुए नहीं थकते। यह लोकतंत्र कैसे महान हो सकता है कि प्रधानमंत्री की मां, जो न तो राजनीति में हैं और न ही किसी पार्टी की विचारधारा से बंधी हैं, को सरेआम अपमानित किया जाए? क्या इस मवालीपन के व्यवहार को भी वोट मिलेंगे? तो यह श्रेष्ठ लोकतंत्र कैसे हुआ? ऐसे ही छोटे-छोटे उदाहरणों से लोकतंत्र या किसी व्यवस्था का क्षरण और पतन होता है। प्रधानमंत्री की मां वाकई राजनीति का ‘र’ तक नहीं जानतीं। उनसे कैसी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता…! प्रधानमंत्री की मां देश की ‘प्रतीकात्मक मां’ मानी जाती हैं। क्या लोकतंत्र में प्रधानमंत्री की मां को गाली देकर भी सियासत की जा सकती है? माता जी की तुलना रुपए की कीमत से की गई है। कांग्रेस के चिल्ला-चोट वाले प्रवक्ता इस मुद्दे पर जवाब देने के बजाय वे अपशब्द गिनाने लगते हैं, जो खुद मोदी के मुंह से निकले हैं या उनके सहयोगी मंत्रियों ने इस्तेमाल किए हैं। हमारा सरोकार उनसे भी है, लेकिन मां का संदर्भ अभूतपूर्व और अस्वीकार्य है। क्या प्रधानमंत्री की मां डालर-रुपए की कीमत तय करती हैं? क्या पेट्रोल-डीजल की कीमतें भी वही तय करती रही हैं? क्या नोटबंदी का निर्णय माता जी ने लिया और प्रधानमंत्री मोदी ने उसे लागू किया? बूढ़ी मां को प्रधानमंत्री आवास में उनके पीएम पुत्र ने व्हील चेयर पर खुद ही घुमाया था। क्या वह भी अनैतिक था? अपशब्दों का इस्तेमाल तब भी किया गया। यह कैसा लोकतंत्र और कौन-सी सियासत है? यह कांग्रेस की बौखलाहट और हताशा है। अलबत्ता चुनावों के मुद्दे तो तय हो चुके हैं। ऐसा व्यवहार असभ्य, अभद्र, अश्लील, अनैतिक तो है, लेकिन बेहद अलोकतांत्रिक और शर्मनाक भी है। प्रधानमंत्री मोदी को गालियां देने की कांग्रेस की एक परंपरा है और वह सिलसिला जारी है, क्योंकि मां को अपमानित करने के साथ-साथ प्रधानमंत्री को भी ‘महामनहूस’ कहा गया है। बहरहाल इसका विश्लेषण बाद में करेंगे। वैसे भी हम इस मुद्दे पर कई बार टिप्पणी कर चुके हैं। दरअसल लोकतंत्र और राजनीति में भाषा की मर्यादा और संबंधों का सम्मान अनिवार्य है। कांग्रेस के ही महासचिव सीपी जोशी ने परोक्ष शब्दों में प्रधानमंत्री को ‘पिछड़ा’ करार देकर इस मानवीय व्यवहार का उल्लंघन किया है। जोशी ने सवाल किया है कि उमा भारती लोध हैं, साध्वी ऋतंभरा न जाने किस जाति की हैं और प्रधानमंत्री का भी धर्म क्या है, लेकिन वे हिंदू धर्म की बात करते रहते हैं। जोशी ने व्याख्या दी कि हिंदू धर्म की जानकारी सिर्फ ‘पंडितों’ (ब्राह्मणों) को ही होती है। वाह कैसा ब्राह्मणवाद है…! क्या लोध, यादव, गुर्जर, कुशवाहा और मोदी सरीखी छोटी जातिवाले ‘ब्राह्मण’, यानी शिक्षित और ज्ञानवान, नहीं हो सकते? बेशक राहुल गांधी की आपत्ति के बाद सीपी जोशी ने अपने कथन पर खेद जताया, लेकिन तीर तो कमान से निकल चुका था। यह कैसा लोकतंत्र और कांग्रेस की सियासत है कि जाति और धर्म को भुनाकर वोटों का जुगाड़ किया जा रहा है? क्या 21वीं सदी में भी देश के सामाजिक और जहरीले विभाजन की कोशिश की जाती रहेगी? यह दोगलापन क्यों है कि बंद कमरे में मध्यप्रदेश में कमलनाथ 90 फीसदी मुस्लिम वोट के आग्रह करते हैं और राजस्थान में जोशी ‘ब्राह्मणवाद’ के जरिए हिंदू वोट को आकर्षित करने की कोशिश करते हैं। ‘दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम’, कांग्रेस की ऐसी स्थिति न हो जाए! बहरहाल मप्र में प्रचार करने के दौरान प्रधानमंत्री मोदी अपनी मां को अपमानित करने के मद्देनजर आहत दिखाई दिए। उन्होंने सवाल भी किया कि क्या ऐसा करने से कांग्रेसियों की जमानत बच जाएगी? बहरहाल यह तो चुनाव तय करेंगे कि 11 दिसंबर को जनादेश कैसे आते हैं, लेकिन हमारी चिंता लोकतंत्र को लेकर है। लोकतंत्र है, तो चुनाव भी हैं, लेकिन जरूरत सियासी मानसिकता बदलने की है। राहुल कांग्रेस को इस पहलू पर गंभीर चिंतन करना चाहिए।

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