भक्ति का मार्ग

By: Nov 10th, 2018 12:05 am

बाबा हरदेव

भक्ति हमारे भीतर का एक भाव है, जिसे परमात्मा की ओर प्रवाहित करना ही ‘भक्ति’ है और ऐसा कर पाना केवल सद्गुरु की कृपा से ही संभव है। अतः तत्त्वज्ञानियों का कथन है कि जो भक्त, भक्ति की राह पर अपने को खोने की, अपने को डुबोने की और अपने को पूरा मिटाने की यानी मृत होने की कला पूर्ण सद्गुरु की कृपा द्वारा सीख लेता है, वही भक्ति के मार्ग का सही ‘राही’ कहलाता है…

आज भक्ति के नाम पर जो पूजा-पाठ हो रहे हैं, हवन-यज्ञ तथा व्रत आदि हो रहे हैं, ये सभी भक्ति के मार्ग बताए जाते हैं, मगर संपूर्ण अवतार बाणी में फरमाया गया है किः भगती लोकीं अजे न समझे रब नूं पाणा भगती ए छड के सारे वहम भुलेखे गुरु रिझाणा भगती ए इक नूं मनणा इक नूं तकणा इक नूं पाणा भगती ए बाकी सारे कर्म छोड़ इक कर्म कमाणा भगती ए अर्थात भक्ति एक ईश्वर प्रभु को पाने का नाम है और इसके लिए यदि कोई मार्ग है, कोई प्रभु है, तो वह है गुरु को रिझाना, खुश करना। भक्ति हमारे भीतर का एक भाव है, जिसे परमात्मा की ओर प्रवाहित करना ही ‘भक्ति’ है और ऐसा कर पाना केवल सद्गुरु की कृपा से ही संभव है। अतः तत्त्वज्ञानियों का कथन है कि जो भक्त, भक्ति की राह पर अपने को खोने की, अपने को डुबोने की और अपने को पूरा मिटाने की यानी मृत होने की कला पूर्ण सद्गुरु की कृपा द्वारा सीख लेता है, वही भक्ति के मार्ग का सही ‘राही’ कहलाता है। अब भक्ति के मार्ग की कोई रूपरेखा नहीं होती है। जैसे प्रेम का कही कोई रूप होता है? प्रेम तो बस एक है, इसका स्वाद एक है। भेद तो बुद्धि से होते हैं, अतः तथाकथित भक्ति के मार्ग पर चलने वालों की अलग-अलग बौद्धिक धारणाएं होती हैं। ये अकसर बुद्धि की बातें करते हुए पाए जाते हैं, जबकि वास्तविक भक्ति के मार्ग में भक्त का संबंध इसके अंतस्तल से होता है। बाहर की बातों से नहीं इसलिए जब कोई व्यक्ति वास्तविक भकित से भरता है, तब इसके मार्ग में कोई भेद नहीं रह जाता, क्योंकि हृदय में भेद नहीं होते, भक्ति का मार्ग है, अहोभाव, ये हृदय की बात है।

दिल को बना हरमनशीं तवाफे हरम कहीं न हो

मानी-ए-बंदगी समझ, सूरत-ए-बंदगी न देख।

अब साधारणतया कामना की डगर पर दौड़, लगाने वाला मनुष्य वो देखता है, जो इसके पास नहीं है, कामना से ग्रस्त मनुष्य की दृष्टि सदा अभाव पर रहती है। अतः जब जो मनुष्य के पास नहीं है, ये इसे देखने का आदि हो जाता है, तब ये पीडि़त रहता है, क्योंकि इतना कम है, इतना कम है, इतना कम है, इसे यही चिंता खाए जाती है और मजे की बात ये है कि ये तो कम रहेगा ही। उदाहरण के तौर पर एक मनुष्य के पास लाख रुपए हैं, ये मनुष्य ये नहीं देखता, बल्कि अरबों-खरबों जो इसके पास नहीं हैं ये उनको देखता चला जाता है। मानो ‘नहीं’ है इसे खलता है, कांटे की तरह चुभता है अभाव मालूम पड़ता है, दीनता-दरिद्रता मालूम पड़ती है, मगर भक्ति के मार्ग पर चलने वाले भक्त की इससे विपरीत परिस्थिति होती है। ये जो इसके ‘पास’ है, उसे देखता है, क्योंकि पूर्ण सद्गुरु की कृपा द्वारा ये भलीभांति जान जाता है कि ‘जो’ है अगर इसे देखेंगे, तो परमात्मा का धन्यवाद करने की भावना पैदा होगी, अहोभाव पैदा होगा, फिर भिखारी दृष्टि नहीं रहेगी, बल्कि सम्राट दृष्टि का जन्म होगा, इस सूरत में फिर दर्द भी सौभाग्य मालूम होने लगता है।

 


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