भविष्य का निर्माण 

By: Nov 10th, 2018 12:05 am

ओशो

शिक्षक बहुत से शोषणों का औजार रहा है। प्रत्येक पीढ़ी अपनी ईर्ष्याएं, अपने द्वेष, अपने वैमनस्य, अपनी शत्रुताएं, अपनी मूढ़ताएं सभी शिक्षक के द्वारा नई पीढ़ी को वसीयत में दे जाती है। अपने अनुभवों और ज्ञान के साथ ही साथ वे अपने रोग और जड़ताएं भी सौंप जाती हैं। हिंदू बाप अपने बच्चों को हिंदू होना सिखा जाता है, जैन अपने बच्चों को जैन और मुसलमान अपने बच्चों को मुसलमान। मनुष्य विरोधी जिन संप्रदायों में वह पला था, उसी विष को वह अपने बच्चों को भी सौंप जाना चाहता है।

शिक्षा के कई-कई माध्यमों से यह विष फैलाया जाता है। ऐसी विषाक्त सिखावन के कारण मनुष्यता एक नहीं हो पाती है। उस धर्म के प्रति भी हमारी आंखें नहीं उठ पाती हैं, जो कि एक है और एक हो सकता है। ऐसे ही राष्ट्रीयता सिखाई जाती हैं। राष्ट्रीय अहंकारों को गौरवान्वित किया जाता है। एक देश को दूसरे देशों के विरोध में पाला पोसा और खड़ा किया जाता है। परिणाम में हिंसा फलती-फूलती है और युद्धों की अग्नि जलती है। जहां अहंकार हैं, वहां हिंसा है, वहां युद्ध हैं। ऐसे ही और भी बहुत से रोग हैं, जिनके कीटाणु शिक्षक अबोध बच्चों में संक्रमित करते रहते हैं। मनुष्य के साथ किए

जाने वाले जघन्य से जघन्य अपराधों में से एक यह है।

शिक्षक अत्यंत जागरूक हो तो ही इस लांछना से वह बच सकता है। समाज में जो सत्ताधिकारी हैं, वे समाज के ढांचे को कभी भी बदलना नहीं चाहते हैं। क्योंकि उनकी सत्ता स्वार्थ और शोषण के उस ढांचे पर ही निर्भर होती है। इस ढांचे को भी शिक्षक नए बच्चों के मनों में बैठाता रहता है। वह उन्हें गतानुगतिक बनाता रहता है और मृत परंपराओं से बांधता रहता है। वह उन्हें विद्रोह नहीं सिखाता है और जहां विद्रोह नहीं है, वहां विकास नहीं है। शिक्षक का कर्त्तव्य क्या है? उसका कर्त्तव्य है विद्रोह सिखाना। जिस दिन भी शिक्षा विद्रोही होगी, उसी दिन एक बिलकुल ही नई मनुष्यता का जन्म हो सकता है। विद्रोह से अर्थ है मूल्यों में क्रांति! निश्चय ही जीवन मूल्य गलत हैं अन्यथा मनुष्य के जीवन में यह अशांति,यह अर्थहीनता, यह विभ्रांति क्यों होती? यह कुरूपता, यह हिंसा, यह ईर्ष्या, यह अधर्म यह सब क्या अकारण हैं? नहीं, जीवन मूल्य गलत हैं और उसका ही यह सहज परिणाम है। जीवन मूल्य बदलने होंगे। मनुष्य के लिए नए मूल्य चाहिए और उसके लिए एक बड़े विद्रोह की तैयारी आवश्यक है। शिक्षक को निद्रा से जागना ही होगा। उसके अतिरिक्त और कोई भागीरथ नहीं है जो कि विद्रोह की गंगा को पृथ्वी पर ला सके, लेकिन शिक्षक बड़े भ्रमों में है। शिक्षक को सदा से ही आदर और सम्मान दिया गया है। वह गुरु है, सम्माननीय है, ऐसे उसके अहंकार को पोषित किया जाता है और उसे भ्रम में डाला जाता है और फिर उसके द्वारा नई पीढि़यों को पुराने ढांचों में ढालने का कार्य लिया जाता है। ऐसे बड़े आदरपूर्वक शिक्षक का शोषण होता है। समाज शिक्षक को व्यर्थ ही आदर नहीं देता है। इस आदर के बदले बड़े सस्ते में वह बहुत महंगा काम उससे लेता है।

 


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