मैरी कॉम विश्व चैम्पियन

By: Nov 27th, 2018 12:05 am

वाह मैरी कॉम वाह!! क्या मुक्के बरसाए हैं तुमने !! फिसल कर खड़े होना और फिर आक्रमण को बरकरार रखना!! मैरी, तुम विश्व चैम्पियन ही नहीं, मुक्केबाजी की सुपर मॉम हो। तुमने भारत के लिए मुक्केबाजी को नए सिरे से परिभाषित किया है। तुम महिला के रूप में मुहम्मद अली और टायसन की ही संस्करण हो। हालांकि तुम्हारा भार वर्ग हैवीवेट नहीं है, लेकिन तुम्हारे मुक्कों के आक्रमण की शैली, चपलता, फुर्ती, बचाव का ढंग और अंक अर्जित करने का कौशल उन्हीं ऐतिहासिक मुक्केबाजों की याद दिलाता है। आज यही तुलना सटीक लगती है। मैरी, तुम भारतीय तिरंगे का सम्मान हो, भारतीय मुक्केबाजी की शान और सूत्रधार हो, तुम वाकई भारत पुत्री, भारत रत्न हो। समूचे राष्ट्र को तुम्हारे खेल और हुनर पर नाज है। तुमने मुक्केबाजी को भारतीय महिलाओं में प्रासंगिक बनाया है। अलबत्ता कौन युवती मुक्के बरसाने का खेल सीखना चाहेगी! तीन बच्चों की मां और 35 साल की उम्र…! यह उम्र तो खेल के हिसाब से रिटायरमेंट लेकर अकादमी चलाने की है, लेकिन मैरी कॉम ने विश्व की हुनरमंद खिलाडि़नों से मुकाबले जीते और अंततः छठी बार विश्व चैम्पियन बनीं। मैरी कॉम उस मणिपुर पूर्वोत्तर राज्य से आती हैं, जहां उग्रवाद छोटे-छोटे सांचों में ढला है। न जाने वहां के लोग किससे आजाद होने की लड़ाई लड़ते रहे हैं, लेकिन मैरी ने जब विश्व बॉक्सिंग चैम्पियनशिप का स्वर्ण पदक जीता, तो उनका पहला वाक्य यह सुनाई दिया ‘यह मैडल भारत के लिए है’। और उसी के साथ मैरी कॉम छठी बार विश्व चैम्पियन बन गईं। 48-51 किलोग्राम भार वर्ग के मुक्केबाजों में विश्व कीर्तिमान…! मैरी ही छह बार विश्व चैम्पियन बनने वाली अकेली महिला मुक्केबाज हैं। उन्होंने क्यूबा के पुरुष मुक्केबाज सावोन के 6 स्वर्ण पदक जीतने की बराबरी भी की है। सावोन ने 1986 से 99 के बीच विश्व चैम्पियनशिप में सबसे ज्यादा 6 स्वर्ण और एक रजत पदक जीते थे। मैरी ने भी 6 स्वर्ण के साथ एक रजत पदक जीता है।  अतुलनीय, अकल्पनीय, अद्वितीय हुनर है मैरी कॉम का! दरअसल 2010 में मैरी ने पांचवीं बार विश्व खिताब हासिल किया था, तब मैरी कॉम न तो राज्यसभा सांसद थीं और न ही उनके जीवन और शख्सियत पर फिल्म बनी थी और न ही उनकी आत्मकथा छपी थी। आज वह ओलंपिक कांस्य पदक विजेता (2012) भी हैं और 2020 के टोक्यो ओलंपिक में पदक का रंग बदलना चाहेंगी। हालांकि ओलंपिक में उन्हें 51 किलोग्राम भार वर्ग में लड़ना पड़ेगा, लिहाजा चुनौतियां भारी होंगी, लेकिन मैरी कॉम का एक मुक्केबाज के तौर पर यहां तक का सफरनामा क्या कम चुनौतीपूर्ण था? लड़कियों के लिए मुक्केबाजी आज भी स्वीकार्य खेल नहीं है, प्रासंगिक और लोकप्रियता का सवाल तो बाद में आता है। जब 2000 में मैरी कॉम ने बॉक्सिंग का प्रशिक्षण शुरू किया था, तब उनके पिता को भी आभास नहीं था कि उनकी बेटी एक दिन विश्व चैम्पियन मुक्केबाज बनेगी! मैरी एक बार नहीं, छह बार विश्व चैम्पियन बनीं। उन्होंने भारत में मुक्केबाजी की एक पूरी पीढ़ी तैयार कर दी है। उनकी समकालीन एल-सरिता देवी भी विश्व चैम्पियन रही हैं। सोनिया (57 किलो) भी फाइनल में पहुंची थीं, लेकिन वह जर्मनी की गेब्रियल वाहनेर के मुक्कों से परास्त हो गई। लवलीना और सिमरनजीत ने अपने-अपने भार वर्ग में कांस्य पदक जीते। विश्व चैम्पियनशिप में एक स्वर्ण, एक रजत और दो कांस्य पदक…क्या यह कमतर उपलब्धि है? और भी कई नाम हैं, जो मुक्केबाजी के क्षेत्र में उभर रहे हैं। अब भारत सिर्फ क्रिकेट के खेल तक ही सीमित नहीं रहा है, बेशक मार्केटिंग के लिहाज से अब भी क्रिकेट सबसे ऊपर खेल है, लेकिन भूलना नहीं चाहिए कि बैडमिंटन और मुक्केबाजी भी विश्व स्तर पर सशक्त हो रहे हैं और हॉकी में भी हम विश्व की पहली चार टीमों में लौट आए हैं। पुराना हुनर लौटते देर नहीं है। बहरहाल पुरानी सोच छोड़नी पड़ेगी और खेलों में नई संभावनाओं का स्वागत करना पड़ेगा। विश्व कीर्तिमान हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं।

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