विष्णु पुराण

By: Nov 24th, 2018 12:04 am

हिमालयं स्थावराणां मुनीनां कपिल मुनिम।

नखिनां दष्ट्रिणं चैव मृगाणां व्याघ्रमीश्वरम्।

वनस्पतीनां राजानं प्लेक्षमेवाभ्यषेचयत।

एवमेवांयजाययौनां प्राधान्येनाकरोत्प्रभून।

एवं विभज्य राज्यनि दिशां पालाननंतरम।

प्रजापतिपतिर्ब्रह्मा स्थापयामासर्वत।

पूर्वस्या दिशि राजानां वैराज्य प्रजापतेः।

पश्चिमस्यां दिशि तथारजसः पुत्रमुच्यतम।

केतुमंतं महात्मानां राजानं सोऽभ्यशेषयत।

उदीच्यां दिशि दुद्धषं राजानमध्यषेपयत।

तैरियं पृथिवी सर्बा सप्त द्वीपा संपत्तना।

यथाप्रदेयमद्यपि धर्मतः परिपाल्यते।

स्थावरों का स्वामित्व हिमाचल को मिला, मुनियों का कपिल को तथा नख-दाढ़ वाले मृगों का अधिकार व्याघ्र को दिलाया गया। वनस्पति का स्वामी प्लक्ष हुआ। इसी प्रकार अन्य जीव, जातियों के स्वामित्य की भी ब्रह्माजी ने कल्पना की। इस प्रकार राज्य विभाग करके उन्होंने सब विशों में दिक्पालों को नियुक्त किया। पूर्व में वैराज प्रजापति के पुत्र राजा सुंधवा को दिक्पाल बनाया। दक्षिण कर्दम प्रजापति के पुत्र राजा शंखपद दिक्पाल नियुक्त हुए।

परिश्चम में रजसपुत्र  महात्मा, केतुमान को निश्चय किया। तथा उत्तर में पर्जन्य प्रजापति पुत्र राजा हिरण्यपोमा को दिक्पाल पद पर अभिषिक्त किया। यह दिक्पाल सातों द्वीप और अनेक नगरों वाली इस संपूर्ण पृथ्वी का अपने-अपने अधिकार के अनुसार आज तक धर्म पूर्वक पालन करते चले आ रहे हैं।

एते सर्वे प्रवृत्तस्य स्थितौ विष्णोर्ममहात्मन।

विभूतिभूता राजानो ये चान्ये मुनिसत्तमः।

ये भविष्यन्ति ये भूताः सर्वे भूतेश्वरा द्विजः।

ते सर्वे सर्वभूतस्य विष्णौरशा द्विजोत्तमः।

ये तु देबाधिपतयो ये च दैत्याधिपास्तथा।

दानवानां च ये नाथः पिशिताशिनाम।

पशूनां से पतया पतयो ये च पक्षिणाम।

मनुष्यणां च सर्पाणां नागानामधिपाश्च ये।

ृवृक्षाणां पर्वतानां च ग्रहाणंा चापि येऽधिपाः।

अतीता वर्तमानश्च य भविष्यंति चापरे।

ते सर्वेभूतस्य विष्णोरशसमुदाद्भवाः।

ने हि पालनसामर्थ्थमृते सर्वेश्वर हरिम।

स्थित स्थितौ महाप्राज्ञ स्थितौ पार्ति सनातनः।

हन्ति चैवान्तकत्वेन रजः सत्वादिसंश्रयः।

हे मुनिश्रेष्ठ! वह तथा और सभी राजगण पालक संसार भगवान विष्णु की ही विभूति हैं। जो-जो राजा पूर्वकाल में हो चुके हैं। अथवा जो-जो भविष्य में होंेगे, वे सब उन भगवान के ही अंश रूप हैं।

देवता दैव्य दानव तथा अन्य सब आमिष मोजियों के स्वामी पश-ु पक्षी, मनुष्य, सर्प और नागादि के अधिनायक, वृक्ष, पर्वत और ग्रहों के अधिपति तथा अन्य सब भूत, भविष्यत और वर्तमान के भूताधिपति हैं, वे सभी सर्वभूतात्मक भगवान के अंश से ही उत्पन्न हुए  हैं।

सृष्टि के पालन कार्य मंे प्रवृत्त भगवान श्रीहरि ही पालन कार्य में समर्थ हैं और किसी में ऐसी शक्ति नहीं हे। रजादि गुणों के आश्रय से वे ही सनातन पुरुष विश्व के सर्ग काल में सृष्टि रचते हैं, स्थिति काल में पालन करते तथा अंत में स्वयं ही काल स्वरूप होकर उसे नष्ट कर डालते हैं।

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