स्त्री-पुरुष दोनों साथ नाचते हैं लोकनृत्य में

By: Nov 4th, 2018 12:05 am

वास्तव में लोक जीवन की प्रत्येक दिशा नृत्य से व्याप्त है। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रायः विभिन्न लोकनृत्य  प्रचलित हैं। इसी प्रकार लोकनृत्य के साथ गाए जाने वाले लोकगीत और वेशभूषा भी विभिन्न होती हैं। इनमें से कुछ नृत्यों में केवल स्त्रियां और कुछ में केवल पुरुष नाचते हैं, परंतु ऐसे भी लोकनृत्य हैं, जिनमें स्त्री-पुरुष दोनों नाचते हैं। इनमें

अधिकतर सामूहिक नृत्य हैं…

 गतांक से आगे …

मन-मोर नाच उठते हैं और मानव की सहज अभिव्यक्ति मधु और अमृत के गीत गाने लगती हैं। वास्तव में लोक-जीवन की प्रत्येक दिशा नृत्य से व्याप्त है। हिमाचल प्रदेश के विभिन्न भागों में प्रायः विभिन्न लोकनृत्य प्रचलित हैं। इसी प्रकार लोकनृत्य के साथ गाए जाने वाले लोकगीत और वेशभूषा भी विभिन्न होती हैं। इनमें से कुछ नृत्यों में केवल स्त्रियों और कुछ में केवल पुरुष नाचते हैं, परंतु ऐसे भी लोकनृत्य हैं, जिसमें स्त्री-पुरुष दोनों नाचते हैं। इनमें अधिकतर सामूहिक नृत्य हैं, परंतु कुछ व्यक्तिगत नृत्य भी हैं। प्रायः सभी लोकनृत्यों के साथ नृत्य गीत गाए जाते हैं, इन लोकगीतों को बहुधा स्वयं नर्तक दल गाते हैं। प्रत्येक लोकगीत के साथ वाद्य-नरसिंगा, शहनाई, ढोल, बांसुरी, करनाल, खंजरी, करताल डमरू इत्यादि बजाए जाते हैं। यदि अन्य लोक वाद्य न भी हों, ढोलक या खंजरी के बिना गुजारा नहीं है। ये लोकगीत, लोक वाद्य एवं लोकनृत्य की त्रिवेणी इस पर्वतीय प्रदेश में अनंतकाल से प्रवाहित होती रही हैं। यदि आप कभी वर्ष भर में जुड़ने वाले अनेक मेलों, उत्सवों या त्योहारों के समय हिमाचल के किसी ग्राम में से होकर गुजर रहे हों, तो सहसा ढोलक या खंजरी की मधुर ध्वनि सुनकर आप स्थानीय ग्रामवासियों को गांव की किसी खुली जगह पर एकत्रित पाएंगे और लोकनृत्यों का आनंद उठाते हुए देखेंगे। पहाड़ों के इन छोटे-छोटे ग्रामों में पहाड़ी लोक-कथा की इस रस भरी समृद्ध थाती को अपने प्राचीन रूप एवं वैभव में सुरक्षित पाएंगे।

इन लोकनृत्यों के साथ गाए जाने वाले प्रत्येक नृत्य-गीत की भाषा, शैली, छंद, धुन, लय इत्यादि में भी भिन्नता है। शुभ अवसर, त्योहार और अनेक सामाजिक मेल-मिलाप के हर्षोत्सवों को मनाने के लिए लोकनृत्यों की विशेष भूमिका होती है, इसके लिए कोई पूर्व अभ्यास की आवश्यकता नहीं। क्षणिक प्रेरणा पर भी हिमाचली नाचना पसंद करते हैं। इन परंपरागत और मनोहारी लोकनृत्यों को देख प्रत्येक दर्शक पर इनके लय, सौंदर्य-भावना की महानता प्रकट होती है।

जब हिमाचल में कहीं भी चलचित्रों और आधुनिक मनोरंजन के साधनों का नाम निशान भी नहीं था, तब भी यह चित्ताकर्षक लोकनृत्य लोक जीवन को सरस बनाते रहे और साधारण लय, ताल और गीतों के द्वारा लोकनृत्य और लोकगीत पर्वत पुत्रों के दैनिक परिश्रम और रुखे जीवन में उत्साह और रंग भरते रहे हैं। वनों, पहाड़ों, खेती खलिहानों और आंगन में दिन भर के कठिन कार्य के पश्चात स्त्री पुरुष गांव के खुले स्थान पर एकत्र होकर लोकनृत्य द्वारा अपने दैनिक जीवन की कठोरता और करुणा को भुलाते रहे हैं। यह कार्यक्रम उत्सवों को छोड़कर प्रायः सर्दियों में अधिक चलता है


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