आत्म पुराण

By: Dec 29th, 2018 12:05 am

नचिकेता- आपने स्वर्ग की स्त्रियों का जो विशेष रूप से वर्णन किया, वह कामी अथवा विषयीजनों को ही आकर्षित कर सकता है। अन्यथा मनुष्य लोक की स्त्री भी उनके समान हो होती है। अगर विचार पूर्वक देखा जाए, तो देवता, मनुष्य और पशु आदि इन सब की स्त्रियां उनके पुरुष की दृष्टि में सबसे अधिक सुंदर और सुख देने वाली होती है। इनमें से किसी एक को बहुत श्रेष्ठ बताना केवल अपनी भावना पर निर्भर है। हे यमराज! बहुत कहने से क्या लाभ इस संसार में स्त्री, पुत्र, संपत्ति आदि जितने पदार्थ प्रिय जान पड़ते हैं, वे सब अनित्य हैं। अनित्य पदार्थ का यही स्वभाव है कि वे जितना सुख देते हैं, उससे सौ गुना दुःख भी देते हैं। क्योंकि किसी भी समय उनका वियोग होना संभव है और तब मनुष्य स्वभावतः बहुत अधिक कष्ट का अनुभव करता है और अपने को भाग्यहीन मानने लगता है। इसलिए मुझे तो यही जान पड़ता है कि आपने पुत्र, पौत्र, दीर्घ आयु, हाथी, घोड़ा, सुवर्ण राजय आदि जितने प्रिय पदार्थ बतलाए, वे अभी तो हमको प्राप्त हैं नहीं। पर यदि वे आपके वर के  प्रभाव से प्राप्त हो भी जाएंगे, तो भी अनित्य होने के कारण नाश होंगे ही और तब वे हमारे विशेष दुःख का कारण सिद्ध होंगे। हे यमराज! लोग धन को सब प्रकार के सुखों का साधन मानकर बड़े प्रसन्न होते हैं। पर वास्तविकता यह है कि यदि मनुष्य को तीन लोक का धन मिल जाए तो भी उसकी तृष्णा शांत नहीं हो सकती, क्योंकि फिर वह ब्रह्मलोक की अभिलाषा करने लगता है। कदाचित उसे ब्रह्मलोक भी प्राप्त हो जाए, तो फिर वह चाहता है कि यहां से कभी मेरा पतन न न हो। हे यमराज! जैसे लकडि़यों की प्रज्वलित अग्नि घी से तृप्त नहीं हो सकती, जैसे समुद्र जल से तृप्त नहीं होता, वैसे ही अधिक धन मिलने से मनुष्य की तृष्णा बढ़ती ही है। फिर उसे उस धन की रक्षा और उसके नाश होने के भय की चिंता भी सदा लगी रहती है। इसलिए ऐसे दुःख रूप धन के लिए मेरी इच्छा नहीं है। जब यमराज  ने देखा कि यह नचिकेता बड़े से बड़े प्रलोभनों को ठुकराकर अपनी वैराग्य-भावना पर दृढ़ है, तो वह उस पर बहुत प्रसन्न हुआ तब उसने कहा, हे नचिकेता! इस संसार में और परलोक में प्राणियों को प्राप्त योग्य दो प्रकार के फल होते हैं। एक तो श्रेय रूप और दूसरा प्रेय रूप। इनमें से बुद्धिमान पुरुष ध्येय को ही चाहते हैं, क्योंकि मोक्ष रूपी सुख उसी से प्राप्त होता है और मूढ़ पुरुष सांसारिक अनित्य सुखों की ओर जाते हैं, जिसे शास्त्रों में प्रेय कहा गया है। हे नचिकेता! श्रेय और प्रेय इन दोनों प्रकार के फलों में से जो अधिकारी पुरुष श्रेय का संपादन करता है, वह कभी अपने लक्ष्य से भ्रष्ट नहीं होता, वरन कृतकृत्यता को प्राप्त करता है और जो मूढ़ पुरुष प्रेय फल का संपादन करते हैं वे तरह-तरह के जन्म-मरण के दुखों को पाया करते हैं। हे नचिकेता! जैसे जल में रहने वाली मछली लोहे के कांटे में लगे मांस को खाने आती है, तो राई भर सुख के लिए मरण रूप दुख को प्राप्त होती है, उसी प्रकार संसार के सकाम पुरुष भी स्वर्ग के भोगों की इच्छा करके जो यज्ञ आदि पुण्य कर्म करते हैं वे थोड़ा सा सुख पाकर बहुत समय तक जन्म-मरण के दुखदायी चक्र में फंसे रहते हैं, पर तुम्हारे जैसे निष्काम पुरुष पोक्ष रूप  श्रेय के साथ ही संबंध रखते हैं। हे नचिकेता! प्रेय की इच्छा करने वाले सकाम पुरुष स्त्री, पुत्र, धन आदि की इच्छा करते हैं, पर इनका प्राप्त होना तो दैव के अधीन है। इस बात को वे मंदबुद्धि जानते नहीं और इससे अकारण कष्ट भोगते हैं, पर तुम्हारे समान बुद्धिमान और निष्काम भावना वाले मनुष्य इन पदार्थों को दैवाधीन मानकर अपने-धर्म कर्त्तव्य के पालन में ही संलग्न रहते हैं।


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