कांग्रेसी उत्थान का जनादेश

By: Dec 12th, 2018 12:05 am

पांच राज्यों का जनादेश सार्वजनिक हो चुका है, लेकिन हिंदी पट्टी के तीन प्रमुख राज्यों छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान का जनादेश कांग्रेस पक्षधर रहा है। छत्तीसगढ़ में भाजपा को 15 लंबे सालों की सत्ता के बाद करारी पराजय झेलनी पड़ी है और मप्र, राजस्थान के जनादेश कुछ असमंजस भरे रहे। वैसे राजस्थान में रुझान कांग्रेस के पक्ष में थे, लिहाजा उसकी सरकार बनने के आसार हैं। बुनियादी तौर पर इन जनादेशों को ‘कांग्रेसवादी’ करार देना इसलिए सटीक लगता है, क्योंकि इन चुनावों में अधिकांश वोट कांग्रेस के पक्ष में आए। कांग्रेस जमीन पर बिखरी पार्टी की तरह है, उसका वहां से उत्थान हुआ है, लिहाजा जनादेश कांग्रेस के बिना व्याख्यायित नहीं किया जा सकता। कांग्रेस का एक लंबा राजनैतिक वनवास समाप्त हो रहा है,क्योंकि वह उस भाजपा के साथ मुकाबले में रही,जिसके पास सत्तात्मक,आर्थिक,प्रशासनिक तमाम तरह के संसाधन और शक्तियां थीं। बेशक छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनना तय है,लेकिन मप्र के आंकड़े यह आलेख लिखने तक स्पष्ट और निर्णायक नहीं हुए थे। इसी तरह राजस्थान में भी बहुमत स्थापित नहीं हो पाया था,लिहाजा सरकार बनने का विश्लेषण बाद में करेंगे। खासकर हिन्दी पट्टी के राज्यों के जनादेश से कुछ बिन्दु बिल्कुल निश्चित लग रहे हैं। मसलन-चुनावी हवा भाजपा-विरोधी है। वोट बटोरने का प्रधानमंत्री मोदी का जादू भी क्षीण हो रहा है। प्रधानमंत्री मोदी का कोई विकल्प ही नहीं है,अब यह भ्रम भी टूटने लगा है। हम फिलहाल यह दावा नहीं करते कि इसी जनादेश की तर्ज पर 2019 के लोकसभा चुनाव भी तय होंगे,लेकिन जनता ने प्रधानमंत्री मोदी के आह्वान भी अस्वीकार करने शुरू कर दिए हैं। यही जनादेश का यथार्थ है। बेशक इन जनादेशों के बाद,कमोबेश उत्तर भारत में,कांग्रेस का नये सिरे से पुनरोत्थान होना तय है,जहां इन राज्यों में ही लोकसभा की 65 सीटें हैं। यदि कांग्रेस का पुनरोत्थान होता है,तो ‘कांग्रेस-मुक्त’ भारत का जुमला भी बेमानी हो जाएगा। वैसे मिजोरम में कांग्रेस की हार के बाद पूर्वोत्तर ‘कांग्रेस-मुक्त’ हो गया है। स्वतंत्रता के बाद पहली बार ऐसा हो रहा है कि पूर्वोत्तर के एक भी राज्य में कांग्रेस की सत्ता नहीं है। बहरहाल कांग्रेस के उभार के साथ-साथ पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी का राजनैतिक कद भी बढ़ेगा। ये जनादेश कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए शानदार तोहफा भी हैं,क्योंकि पार्टी प्रमुख के तौर पर उन्होंने आज की तारीख पर ही,एक साल पहले,कार्यभार संभाला था। अब राहुल गांधी की स्वीकार्यता भी स्थापित होती दिखाई देगी। नतीजतन वह 2019 के आम चुनावों से पहले ही ‘वैकल्पिक नेता’ के तौर पर उभर सकते हैं। हालांकि भाजपा मानती रही है कि यदि चुनाव ‘मोदी बनाम राहुल’ के समीकरणों पर होते हैं,तो पार्टी को चुनावी फायदा  होना लगभग तय है। अब इन जनादेशों के बाद भाजपा को नये सिरे से आत्मनिरीक्षण करना पड़ेगा और राहुल गांधी संबंधी रणनीति को भी बदलना पड़ेगा। इन चुनावों में लगभग हर जमात का आदमी क्षुब्ध और परेशान दिखाई दिया। देश के हालात अच्छे नहीं थे। बेरोज़गारी और महंगाई बढ़ रही थी। किसानों में आक्त्रोश और गुस्सा था। व्यापार में निर्यात और जीडीपी की दर कम हो रही थी। पेट्रोल और डीजल की लगातार मार सहनी पड़ी थी। आदिवासियों और दलितों ने अपने प्रभाव के इलाकों में भाजपा को समर्थन ही नहीं दिया। समस्याएं चारों ओर बिखरी थीं,उसके बावजूद भाजपा ने मुकाबलेदार चुनाव लड़ा। यह उसकी उपलब्धि भी रही और सत्ता-विरोधी लहर पार्टी और सरकार के स्तर तक नहीं पहुंच पाई। उसके बावजूद भाजपा हारी और जनादेश कांग्रेस पक्षधर रहे। अब इन जनादेशों के बाद कांग्रेस के सहयोग से महागठबंधन बनाने के प्रयास तेज और सार्थक हो सकते हैं,लेकिन तेलंगाना में कथित महागठबंधन बिल्कुल नाकाम रहा। टीआरएस को फिर भरपूर जनादेश मिला और कांग्रेसी गठबंधन 20 के आसपास सीटों पर ही सिमट कर रह गया। बहरहाल इन जनादेशों को अभी से ही 2019 के जनादेश का संकेत नहीं मान लेना चाहिए,क्योंकि वे चुनाव प्रधानमंत्री मोदी की शख्सियत और उनकी सरकार के कार्यों के आधार पर ही लड़े जाएंगे। अंततः लोकतंत्र ही अंतिम शक्ति साबित हुआ।

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