खेत उगलेगा सोना

By: Dec 9th, 2018 12:05 am

भले ही सरकारें नेक नीयत से योजनाएं चलाती हों,लेकिन ज्यादातर लोगों को पता नहीं होता। ऐसे में वे योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। प्रदेश का अग्रणी मीडिया ग्रुप दिव्य हिमाचल अपनी नई मैगजीन ‘अपनी माटी’ के पहले अंक में कुछ ऐसी महत्वपूर्ण योजनाओं का जिक्र कर रहा है। इनमें सोलर वाटर पंप,पावर टिल्लर,पोलीहाउस आदि हैं।  सबसे पहले सोलर वाटर पंप को लेते हैं। यह किफायती होने के साथ साथ लंबे समय तक बेहतर परिणाम देने वाला है। के लिए बेहद फायदेमंद हैं। सोलर पंपिंग मशीन पर छोटे और सीमांत किसानों को जहां 90 फीसदी तक सबसिडी दी जा रही है,वहीं बड़े फार्मर्ज को 80 प्रतिशत अनुदान दिया जा रहा है। खास बात यह कि मशीन के स्थान और साइज पर इसका खर्च तय होगा। इसी तरह किसान-बागबानों को छोटे ट्रैक्टर और पावर टिल्लर और वीडर पर भी 50 फीसदी तक अनुदान दिया जा रहा है। इसके लिए कुछ शर्तें पूरी करनी होती हैं। मसलन कितनी जमीन पर हल चलाना है। किसान के पास जमीन चाहिए। पहले उस जमीन को आधार बनाकर ट्रैक्टर न लिया हो आदि आदि। इसके लिए राज्य सरकार ने किसानों को उपदान दर पर कृषि यंत्र उपलब्ध करवाने के लिए कृषि यंत्रीकरण कार्यक्रम आरंभ किया है।

….आरपी नेगी,शिमला

मिलकर लगाएंगे, तो पूरा पंप-फ्री

सामुदायिक स्तर पर पंपिंग मशीनरी लगाने के पर शत प्रतिशत भार सरकार द्वारा वहन करने का प्रावधान किया गया है। योजना के अंतर्गत एक से 10 हॉर्स पावर के सौर पंप लगाए जा रहे हैं। योजना के तहत पांच वर्षों के लिए 200 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान किया गया है। एक अन्य योजना जल से कृषि को बल भी आरंभ की गई है। योजना के अंतर्गत चैकडेम व तालाबों का निर्माण किया जा रहा है। इस योजना के तहत इस वित्त वर्ष के लिए 40 करोड़ रुपये का तथा आगामी पांच वर्षों के लिए 250 करोड़ रुपये व्यय किए जाएंगे।

इस गांव में ढाई करोड़ के फूल

सोलन जिला के चायल क्षेत्र के महोग गांव में फूलों का कारोबार सालाना ढाई करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। गांव के करीब एक दर्जन परिवारों ने इसे अपना प्रमुख व्यवसाय बना लिया है और दादा से लेकर पोते तक सभी फूलों की खेती से जुड़े हैं।  लगभग 80 बीघा भूमि पर फूलों की खेती कर यह परिवार प्रतिवर्ष औसतन 15 से 20 लाख रुपए तक के फूल बेचकर आत्मनिर्भर बन रहे हैं। यह फूल न केवल देश के विभिन्न हिस्सों बल्कि विदेशों में भी निर्यात किए जा रहे हैं। इसमें गांव के नंबरदार परिवार का सबसे अधिक योगदान रहा है। इस परिवार से प्रेरणा लेकर गांव ही नहीं बल्कि पूरा क्षेत्र, जिला सहित प्रदेश के किसान लाभान्वित हुए हैं। आलम यह है कि आज केवल इसी गांव से ही देश सहित विदेशों में करीब ढाई करोड़ रुपए का फूलों का व्यवसाय प्रति वर्ष हो रहा है। यह परिवार मु यतः ग्लैडियोलयस, कारनेशन, गैडेशिया सहित करीब आधा दर्जन किस्मों की खेती कर रहे हैं। महोग गांव के नंबरदार परिवार के ओम प्रकाश का वर्ष 1989 में नाकामी के अंधेरों से आरंभ हुआ फूलों की खेती का सफर आज इस स्तर पर पहुंच चुका है कि वे न केवल प्रति वर्ष लाखों की आमदनी कमा रहे हैं, बल्कि सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत भी बने हैं।  सन् 1989 में ओम प्रकाश ने फूलों की खेती करने का  निर्णय लिया था। इस दौरान उन्होंने ग्लैडियोलस फूलों  की खेती की, लेकिन उनके फूल बिक नहीं पाए और  उन्होंने निराशा में अपने सारे उत्पाद को उखाड़ फैंका  था। 66 वर्षीय ओमप्रकाश बताते हैं कि दोची निवासी  स्व. नारायाण दत्त शर्मा ने उन्हें हौसला दिया और  फूलों की खेती करने के लिए प्रेरित किया। यह गांव मिसाल बन गया है।

-सुरेंद्र ममटा,सोलन

मुझे 100 गाय पालनी है

बंगाणा उपमंडल की हटली पंचायत के गांव भरमोत के केशव राम शर्मा ने कुटलैहड़ में उच्च गुणवत्ता का दूध देने के लिए गाय पालन का कार्य शुरू किया है। उन्होंने बताया कि एक गाय से इसकी शुरुआत की थी और अब उनके पास 15 गाय हैं। जिन्हें वह बढ़ाकर 100 करना चाहते हैं और अब वह देशी गाय भी पालना चाहते हैं। अगर सरकार उनकी मदद करती है तो एक गोबर गैस का प्लांट भी स्थापित किया जाएगा। इससे पहले भी उन्होंने उपमंडल बंगाणा में लोगों के लिए कार्बनिक आर्गेनिक खेती कर विभिन्न सब्जियों का उत्पादन किया था। केशव राम ने उच्च गुणवत्ता का दूध लोगों को उपलब्ध करवाने का संकल्प लिया है। उन्हें सरकार व प्रशासन से आशा है कि वे उनकी सहायता करेंगे। उधर,बंगाणा उपमंडल चिकित्सा अधिकारी डा. सतिंद्र ने बताया कि उन्होंने केशव राम के पशुशाला का निरीक्षण किया है और उन्हें  प्रशासन से  पूर्ण  सहयोग का आश्वाशन दिया है।

– मनोज कुमार,बंगाणा

आलू की बिजाई का सही समय

मध्यवर्ती क्षेत्रों में आलू की बुआई के लिए सुधरी किस्मों जैसे कुफरी ज्योति, कुफरी गिरीराज, कुफरी  इत्यादि का चयन करें। बुआई के लिए स्वस्थ, रोगरहित, साबुत या कटे हुए कंद (वजन लगभग 30 ग्राम) जिनमें कम से कम 2-3 आंखें हों, का प्रयोग करें। बुआई से पहले कंदों को आईथेन एम-45 (25ग्राम प्रति 10 लीटर पानी)  के घोल में 20 मिनट तक भिगोने के उपरांत छाया में सुखाकर बुआई करें। आलू की बिजाई 15-20 सेंटीमीटर आलू से आलू तथा 45-60 सेंटीमीटर पंक्तियों की दूरी पर मेढ़े बनाकर करें। बुआई के समय 250 क्विंटल गोबर की खाद के अतिरिक्त 250 किलोग्राम इफ्को (12ः32ः16) मिश्रण खाद तथा 65 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर खेतों में डालें। आलू में खरपतवार नियंत्रण के लिए एट्राजीन 60 ग्राम या आइसोप्रोटूरान 70 ग्राम या आक्सीफलोरफेन 40 मिलीलीटर प्रति 30 लीटर पानी प्रति कनाल की दर से घोल बनाकर बुआई के बाद छिड़काव करें। इसके अतिरिक्त खेतों में लगी हुई सभी प्रकार की सब्जियों जैसे फूलगोभी, गांठगोभी, ब्रॉकसी, चाईनीज बंदगोभी, मेथी, मटर व लहसुन इत्यादि में निराई-गुड़ाई करें तथा नवजन (40-50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर) खेतों में डालें।

फसल संरक्षण :

जिन क्षेत्रों में भूमि में पाए जाने वाले कीटों जैसे दीमक, कटुआ कीट, लाल चीटियां आदि का गेहूं, आलू व विभिन्न सब्जियों में अधिक प्रकोप होता है, वहां पर फसल की बिजाई अथवा रोपाई से पहले मिट्टी में वसोरपाईरीफॉस 20 ई.सी. नामक कीटनाशक खेत में (2 लीटर फ्लोरपाइरीफॉस 20 ई. सी.+25 किलोग्राम रेत प्रति हेक्टेयर) भुरकाव करें। सरसों वर्गीय तिलहनी फसलों अथवा गोभीवर्गीय सब्जियों में तेले (एफिड) के नियंत्रण के लिए मैलापियान 50 ई. सी. (30 मिलीलीटर/30 लीटर पानी प्रति कनाल) का छिड़काव करें।

– यशपाल ठाकुर

यह हैं सेब के बादशाह

शिमला जिला के पजौल गांव निवासी प्र्रताप चौहान की गिनती जिला के अग्रणी बागबानों में होती हैं। इनके बागीचों में सेब व नाशपाती के 10 हजार पौधे हैं। कोटखाई तहसील की देवगढ़ पंचायत के रहने वाले प्रताप स्पर सेब की 14 वैरायटियों पर काम रहे हैं। एक सीजन में 3 हजार बाक्स पैदा करते हैं। वह  शिमला और हिमाचल भर के बागबानों के लिए रोल माडल बन गए हैं।

-रोहित सेम्टा, ठियोग

न्यूनतम कीमत को बने कानून

स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव कहते हैं कि मौजूदा समय में संसद में दो कानून लंबित हैं।  ये शीघ्र पास होने चाहिएं। पहला बिल कहता है कि किसान को अपनी अपनी फसल की न्यूनतम कीमत कानूनी गारंटी के रूप में मिले। आज की व्यवस्था में किसान को सरकार की दया पर निर्भर रहना पड़ता है। दूसरा बिल कहता है कि किसान को एक बार कर्ज मुक्त कर दिया जाए, ताकि वह नई शुरुआत कर सके। उनका मानना है कि अगर किसान टेंशन फ्री होकर काम करेगा, तो अपने आप ही उसकी आय दोगुनी हो जाएगी।

नेरी हर्बल गार्डन का कौन जाने मर्ज़

90 किस्म के औषधीय पौधों को उगाने वाला यह है नेरी हर्बल गार्डन। 28 एकड़ जमीन में फैला यह गार्डन भौगोलिक परिक्षेत्र की दृष्टि से रोहड़ू और जोगिंद्रनगर की तुलना में प्रदेश का सबसे बड़ा गार्डन है। आब-ओ-हवा ने इस गार्डन को लगभग हर किस्म के औषधीय पौधे उगाने में सक्षम बनाया है लेकिन  प्रदेश की सरकारें शायद इसे चलाने में अक्षम नजर आ रही हैं। यही वजह है कि इस हर्बल गार्डन को मात्र 12 बेलदारों के जि मे छोड़ दिया गया है। यहां अब न कोई माली है और न ही टेक्निकल स्टाफ। जो गार्डन इंचार्ज थे उन्हें हाल ही में पदोन्नति के बाद जोगिंद्रनगर हर्बल गार्डन में ोज दिया गया है। उनके पास अब यहां का एडिशनल चार्ज है। बेलदारों ने जितना सीखा है उसके सहारे वे नेरी हर्बल गार्डन को चला रहे हैं।बताते चलें कि नेरी हर्बल गार्डन 1999 में प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल द्वारा स्थापित करवाया गया था। बताते हैं कि उस वक्त यहां करीब 35 लोग सेवाएं दे रहे थे, लेकिन 2002 में यहां से लोग कम होने लगे, क्योंकि गार्डन में कार्यरत बहुत से कर्मचारी सीजनल थे। उन्हें ब्रेक दे दिया जाता था। ऐसे में लोगों ने यहां खुद का असुरक्षित भविष्य देखते हुए गार्डन से किनारा कर लिया। वर्ष 2012 में केबिनेट ने प्रदेश के तीनों हर्बल गार्डनों नेरी, जोगिंद्रनगर और रोहड़ू के लिए 37 पदों को मंजूरी दी। तब नेरी गार्डन को 12 पद मिले। जबकि जोगिंद्रनगर को 18 और रोहड़ू को 7 पद दिए गए। उस वक्त नेरी में स्टाफ ठीक हो गया था। लेकिन उसके बाद यहां से पदोन्नत और ट्रांसफर होकर मुलाजिम जाते रहे लेकिन इक्का-दुक्का को छोड़कर आया कोई नहीं। सूत्रों की मानें तो अगर इस गार्डन को सही तरीके से चलाना है तो यहां 30 बेलदार, चार माली, 2 फील्ड असीस्टेंट, एक गार्डन इंचार्ज और एक रिसर्च फेलो होना चाहिए।

कोट्स मेरी पोस्टिंग जोगिंद्रनगर में है और पास नेरी हर्बल गार्डन का एडिशनल चार्ज है। यह सच है कि यहां स्टाफ की कमी है। अगर यहां स्टाफ की नियुक्ति कर दी जाए तो यहां की कायाकल्प हो सकती है।

– नीलकांत भारद्वाज, हमीरपुर

क्या आप जानते हैं

* हिमाचल में प्रवाह प्रवाह सिंचाई योजना के तहत कूहलों को संवारा जा रहा है।

* हिमाचल सरकार बोरवेल तथा कुओं के निर्माण के लिए 50 प्रतिशत की वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है। योजना के लिए इस वर्ष 25 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

* किसानों को सौर ऊर्जा से संचारित बाड़ लगाने के लिए 80 प्रतिशत का अनुदान दिया जा रहा है जबकि तीन या इससे अधिक किसानों को सामूहिक रूप से बाड़ लगाने के लिए 85 प्रतिशत की वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है।

* हिमाचल सरकार ने वर्ष 2018-19 के बजट में कृषि के लिए 688 करोड़ रुपए के बजट का प्रावधान किया गया है।

* राज्य के पांच जि़लों में 300 करोड़ रुपये की लागत से जीका फसल विविधिकरण योजना लागू की गई है। प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले इनपुट बनाने के लिए किसानों को ड्रमों पर 75 प्रतिशत उपदान दिया जा रहा है।

* प्रदेश में पॉलीशीट को बदलने के लिए प्रदान की जा रही अनुदान राशि को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 70 प्रतिशत किया गया है। योजना के तहत इस वर्ष तीन करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।

आपके खेत-बाग में नया क्या, हमें भेजें फोटो

अगर आपने अपने  खेत या बाग में कुछ हटकर उगाया है, तो तत्संबंधी जानकारी हमसे साझा करें। अपनी उन्नत खेती, सब्जी या फलोत्पाद की फोटो शेयर करें। खेती-बागबानी से जुड़े किसी प्रश्न का जवाब नहीं मिल रहा या फिर सरकार तक बात नहीं पहुंच रही, तो हमें बताएं।

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किसान-बागबान के सरकार से सवाल

  1. हिमाचल के मैदानी इलाकों में अब बैलों की जगह पावर टिल्लर या वीडर से खेतों की जुताई हो रही है। दर्जनों कंपनियां पावर टिल्लर बेच रही हैं। हर सीजन में पावर टिल्लर का नया माडल आ जाता है। आखिर किसान कहां से इसके स्पेयर पार्ट्स लें।
  2. पावर टिल्लर कंपनियां धड़ाधड़ मशीनें बेच रही हैं। कायदेनुसार उन्हें पावर टिल्लर खरीदने वाले किसानों को डेमो देना चाहिए, लेकिन कंपनियां ऐसा नहीं करती। हर सीजन में सैकड़ों किसाना जानलेवा हादसों का शिकार हो रहे हैं।
  3. हिमाचल में ज्यादातर इलाकों में जमीन की कनाल इकाई का इस्तेमाल होता है। कृषि-बागबानी एक्सपर्ट स्प्रे आदि की सलाह हेक्टेयर में देते हैं, आखिर वे यह क्यों नहीं बताते कि कितने कनाल जमीन में कितना लीटर कीटनाशक स्प्रे और कितने किलो रासायनिक खाद डालनी है।

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