जनादेश से पहले के अनुमान

By: Dec 10th, 2018 12:04 am

पांच राज्यों की नई विधानसभा के लिए मतदान संपन्न हो चुका है। अब 11 दिसंबर को अधिकृत जनादेश की प्रतीक्षा है, लेकिन कुछ एग्जिट पोल के जो अनुमान सामने आए हैं, वे 2019 से पहले के ठोस संकेत साबित हो सकते हैं। सिर्फ राजस्थान पर सभी पोल लगभग सहमत हैं कि वहां सत्ता परिवर्तन के लिए जनमत दिया गया है। अलबत्ता मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ को लेकर अलग-अलग, विरोधाभासी अनुमान दिए गए हैं। कुछ एग्जिट पोल इन दोनों राज्यों में भाजपा की सत्ता को बरकरार मान रहे हैं, तो कुछ का आकलन है कि कांग्रेस की वापसी हो रही है। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान खुद को सबसे बड़ा ‘सर्वेक्षक’ मानते हुए भाजपा के बहुमत का दावा ठोंक रहे हैं। अधिकृत जनादेश जो भी हों, लेकिन यह राजनीतिक निष्कर्ष तय लग रहा है कि कांग्रेस मजबूत हो रही है, जनता विश्वास करने लगी है और वह ‘चुनौतीदार’ साबित हो सकती है। मप्र और छत्तीसगढ़ में भाजपा बीते 15 लंबे सालों से सत्तारूढ़ रही है। यदि अब भी कांग्रेस के साथ उसका कांटेदार चुनावी मुकाबला है, तो साफ है कि जनता ने भाजपा को भी खारिज नहीं किया है, वह बराबर की प्रासंगिक बनी हुई है। दोनों राज्यों में उसका वोट औसत 40-45 फीसदी के बीच अनुमानित रहा है। यह वोट औसत किसी भी पक्ष को सत्ता तक पहुंचाने को पर्याप्त है। राजस्थान में परंपरा रही है कि एक बार भाजपा की सत्ता, तो अगले पांच साल कांग्रेस की सरकार आएगी। इस बार शुरुआती सर्वेक्षणों में कांग्रेस की एकतरफा जीत के निष्कर्ष दिए गए थे, लेकिन एग्जिट पोल में अनुमान जताए गए हैं कि कुछ बढ़त के साथ कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो रही है। अलबत्ता भाजपा के पक्ष में भी 80-90 सीटों के अनुमान हैं। राजस्थान में 199 सीटों पर मतदान हुआ है, लिहाजा बहुमत का आंकड़ा 100 है। राजस्थान में भी दोनों दलों के बीच मुकाबला कांटेदार रहा है। दरअसल एग्जिट पोल का अपना एक निश्चित विज्ञान है, तरीका है, लेकिन यह एक अर्द्धसत्य भी है। 2014 के बाद हुए 22 चुनावों में करीब 60 फीसदी एग्जिट पोल ही सही साबित हुए हैं। जीत-हार के आकलन और अनुमान जनादेश के बिलकुल विपरीत रहे हैं। इस संदर्भ में बिहार, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और पुडुचेरी के उदाहरण दिए जा सकते हैं। बिहार में भाजपा की 111 सीटों के औसत अनुमान लगाए गए थे, लेकिन जनादेश 58 सीटों तक ही अटक कर रह गया। उप्र के 2017 वाले विधानसभा चुनाव नोटबंदी के बाद हुए थे, लिहाजा भाजपा की हार के अनुमान लगाए गए थे और अखिलेश यादव-राहुल गांधी की युवा जोड़ी के पक्ष में जनादेश के आकलन किए गए थे, लेकिन भाजपा और उसके गठबंधन को 325 सीटें हासिल हुईं। ऐसा जनादेश भाजपा के लिए भी अप्रत्याशित और अभूतपूर्व था। यदि संसदीय जनादेश की बात की जाए, तो 2004 में अटलबिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में एनडीए की फिर से सरकार बनने के अनुमान घोषित किए गए थे। एग्जिट पोल और सर्वेक्षणों ने भाजपा-एनडीए को 255 सीटें दी थीं और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के पक्ष में 183 सीटें बताई थीं, लेकिन जनादेश के बाद एनडीए को 187 और यूपीए को 219 सीटें हासिल हुईं। अंततः यूपीए की सरकार बनी और लगातार 10 सालों तक चली। हम इस बार एग्जिट पोल के अनुमानों को सिरे से खारिज नहीं कर रहे हैं। यह जरूर मान रहे हैं कि यदि जनादेश भी ऐसे ही रहते हैं, तो साफ है कि हवाओं की दिशा बदल रही है, लिहाजा उनके मुताबिक मौसम भी करवट ले सकता है। यदि मौसम बदलता है, तो राजनीति की दिशा और दशा भी बदलती है। यदि अनुमानों के मुताबिक ही जनादेश रहते हैं, तो यह कांग्रेस का बहुत बड़ा हासिल होगा। नतीजतन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की राष्ट्रीय स्वीकार्यता भी बढ़ेगी, लेकिन ऐसे ही जनादेशों के मद्देनजर यह विश्लेषण नहीं किया जा सकता कि प्रधानमंत्री मोदी की लहर खत्म हो गई है। इन पांच राज्यों से 83 सांसद चुनकर लोकसभा में आते हैं। उनमें से 60 सांसद भाजपा के हैं और मात्र 9 सांसद कांग्रेस के हैं। फासला गहरा है, लेकिन इन चुनावों से ऐसा नहीं लगता कि आम आदमी का भाजपा से मोहभंग हो चुका है। संसदीय रुझानों की व्याख्या इन चुनावों से नहीं की जा सकती, लेकिन जनादेश भी ऐसे ही रहे, तो वे विपक्ष के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण रहेंगे। महागठबंधन के मद्देनजर ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, शरद पवार आदि नेता इन चुनावों के संकेतों को किस रूप में ग्रहण करेंगे? क्या कांग्रेस के नेतृत्व में ही विपक्षी महागठबंधन बनेगा, यही भविष्य का यक्ष प्रश्न रहने वाला है।

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