जीवन का सही अर्थ

By: Dec 29th, 2018 12:05 am

बाबा हरदेव

अतः जो वक्त के पूर्ण सद्गुरु के आदेश (हुक्म) को सिर माथे पर रखकर जीवन व्यतीत करने की कला सीख लेता है, वही ‘तथाता’ के असल अर्थ को समझ पाता है।

देश काल ते समें मुताबक सतगुर जिवे चलांदा ए।

हुकम एहदा सिर मत्थे धर के गुरसिख चलदा जांदा ए।

मानो जिसका कहीं भी प्राणों के किसी कोने में किसी प्रकार का विरोध नहीं है, जिसकी हर श्वास राजी-पन की श्वास है। वाकई! ऐसा भक्त पूरी स्वीकृति की मूर्ति होता है। जो भी  है, ये जगत जैसा भी है, सब ठीक है, सब कुछ ही ठीक है। अब सुख को तो हम स्वीकार कर लेते हैं, मगर दुःख को कौन स्वीकार कर पाता है। महात्मा फरमाते हैं कि दुःख तब तक हमारा पीछा नहीं छोड़ेगा जब तक इसकी स्वीकृति न हो जाए, अतः इस जीवन के आध्यात्मिक विकास में दुःख का यही मूल्य है। जीवन की इस योजना में दुःख की यही सार्थकता है कि जिस दिन दुःख भी स्वीकृत होता है, उसी दिन जीवन में परम आनंद की वर्षा हो जाती है। उदाहरण के तौर पर फूल तो कोई भी स्वीकार कर लेता है, सवाल तो कांटे को स्वीकार करने का है, इसी प्रकार जीवन को तो कोई भी स्वीकार कर लेता है, आलिंगन कर लेता है, सवाल तो मृत्यु को आलिंगन करने का है। अतः ‘तथाता’ का अर्थ है, ‘सब’ इसमें ईंच भर भी कुछ निकाल नहीं देना चाहिए, सब पूरे की स्वीकृति और ऐसी स्वीकृति साक्षी भाव के बाद पूरी सजगता में हो सकती है। अतः ऐसी स्वीकृति जब कहीं किसी के प्राणों में बस जाती है, तो इसके प्राणों में अनंत आनंद का नृत्य शुरू हो जाता है। इसके जीवन में वो वीणा बजने लगती है, जिस पर कोई तार नहीं है। इसके जीवन में ऐसी सुगंध छूटने लगती है, जिसमें कोई फूल नहीं है पीछे। अब ‘तथाता’ का मतलब है जो भी आ जाए, सब पूर्णतौर पर स्वीकार है। ऐसी मनोस्थिति के बारे संपूर्ण अवतार बाणी भी फरमा रही है।

जो कुझ भी रब कर देंदा ए इसनूं मिट्ठा लगदा ए

जिसदे दिल विच चौव्ही घंटे नाम का दीवा जगदा ए।

इसी प्रकार ऐसा समझें कि हम नदी में एक नाव चला रहे हैं और अगर एक और खाली नाव दूसरी तरफ से आकर हमारी नाव से टकरा जाए तो हम कुछ भी नहीं कहेंगे, हम चुपचाप इस घटना को स्वीकार कर लेंगे और आगे बढ़ जाएंगे, लेकिन भूलवश अगर उस नाव में एक आदमी बैठा हो, तो बहुत कलह हो जाएगी। खाली नाव को तो हमने माफ कर दिया, परंतु दूसरी हालत में नाव में बैठे आदमी को हम माफ नहीं कर सकेंगे, खाली नाव को हमने इसलिए माफ कर दिया, स्वीकार कर सके, क्योंकि इसे अस्वीकार करने का कोई उपाय नहीं था, मगर नाव में बैठे आदमी को माफ करना मुश्किल था अब ‘तथाता’ का अर्थ है कि नाव चाहे खाली टकराए या नाव में कोई आदमी बैठा हो अगर ये टकरा जाए तो हमारे मन में दोनों बातें एक सी हों, तो ‘तथाता’ है। ‘मैं दरिया हूं मेरे लिए दोनों किनारे एक हैं और अगर जरा सा भी फर्क रह जाए, तो ‘तथाता’ चूक गई। अतःतथाता का अर्थ है कि इस जगत में जो भी हो रहा है, हमारे मन में इसके लिए अन्यथा ऐसी कोई बात नहीं। अंत में कहना पड़ेगा कि अध्यात्म  में तथाता एक परम उपलब्धि है। ये जीवन की अंतिम गहराई में उतर जाना है। राजी है हम उसी में जिसमें तेरी रजा है। एक सूफी कवि ने ठीक ही कहा हैः लोग जिस हाल में मरने की दुआ करते हैं मैंने उस हाल में जीने की कसम खाई है।


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