दूसरे शीतकालीन सत्र में होगी अहम मुद्दों पर चर्चा

By: Dec 10th, 2018 12:08 am

अजय पाराशर

लेखक, सूचना एवं जन संपर्क विभाग के क्षेत्रीय कार्यालय, धर्मशाला में उप निदेशक हैं

इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस भवन के निर्माण तथा शीतकालीन सत्रों के आयोजन से निचले हिमाचल को नई पहचान मिली है। क्षेत्र का विकास तो हुआ ही है, लोगों की आर्थिकी में भी वृद्धि हुई है। सत्र के दौरान इन इलाकों के लोगों को सरकार के समक्ष अपनी बात रखने का पूर्ण अवसर मिलता है….

हिमाचल प्रदेश की 13वीं विधानसभा का दूसरा शीतकालीन सत्र प्रदेश हित से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर होने वाली चर्चा का गवाह बनेगा। विधानसभा अध्यक्ष डा. राजीव बिंदल के अनुसार 10 दिसंबर से 15 दिसंबर तक आयोजित होने वाले इस सत्र के दौरान चर्चा के लिए शामिल विभिन्न मुद्दों में सड़कों की स्थिति, पर्यावरण, स्वीकृत भवनों की डीपीआर, शिक्षण तथा स्वास्थ्य संस्थान, पर्यटन, उद्योग, पेयजल आपूर्ति, युवाओं में नशे की बढ़ती प्रवृत्ति तथा इसकी रोकथाम के लिए उठाए जाने वाले कदम, नया वेतन आयोग तथा पेंशन, सौर ऊर्जा, परिवहन व्यवस्था आदि प्रमुख हैं। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की वर्तमान सरकार के दूसरे शीतकालीन अधिवेशन में छह दिन तक चलने वाले इस सत्र में कुल 437 प्रश्न पूछे जाएंगे, जिनमें 344 तारांकित और 93 अतारांकित शामिल हैं।

गौरतलब है कि इस मर्तबा तपोवन स्थित विधानसभा भवन का मुख्य प्रवेश द्वार मुख्यमंत्री, विधानसभा अध्यक्ष तथा उपाध्यक्ष, मंत्रियों तथा विधायकों, मुख्य सचिव, डीजीपी, अतिरिक्त मुख्य सचिव और विधानसभा सचिव के वाहनों के लिए खुला रहेगा, जबकि गेट नंबर दो से अन्य अधिकारी और लोग प्रवेश कर सकेंगे। सुरक्षा की दृष्टि से धर्मशाला से विधानसभा परिसर को छह सेक्टर में विभाजित किया गया है। तीन बटालियनों के 750 जवानों को तपोवन की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया है। इस शीतकालीन सत्र में कुल छह बैठकें आयोजित होंगी। 13 दिसंबर का दिन गैर सरकारी सदस्य कार्य दिवस के लिए निर्धारित किया गया है।

कुल प्राप्त 344 तारांकित प्रश्नों में से 189 प्रश्न ऑनलाइन और 155 प्रश्न ऑफलाइन हैं। अतारांकित 93 प्रश्नों में से 43 ऑनलाइन और 50 ऑफलाइन प्राप्त हुए हैं। नियमानुसार ये तमाम प्रश्न आगामी कार्रवाई के लिए सरकार को भेज दिए गए हैं। दो सूचनाएं नियम 62 के तहत प्राप्त हुई हैं, जबकि एक सूचना नियम 63, पांच नियम 101 के अंतर्गत और इतनी ही नियम 130 के तहत मिली हैं। काबिलेगौर है कि हिमाचल प्रदेश विधानसभा का कोई सत्र राजधानी शिमला से पहली बार धर्मशाला में आयोजित किया गया था। शीतकालीन सत्र के रूप में पहला अधिवेशन सन् 2005 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, धर्मशाला के प्रयास भवन में तत्कालीन अध्यक्ष गंगू राम मुसाफिर की अध्यक्षता में 26 दिसंबर से 29 दिसंबर तक आयोजित किया गया था। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह की अध्यक्षता में धर्मशाला से करीब 11 किलोमीटर दूर तपोवन में चिन्मय आश्रम के साथ लगती जमीन को विधानसभा भवन के लिए चयनित किया गया। इस भवन की आधारशिला 14 फरवरी, 2006 को रखी गई थी।  कुल 35,000 वर्ग फुट क्षेत्र में फैले भवन के निर्माण के लिए सात करोड़ रुपए की राशि आबंटित की गई थी। सात महीने के रिकार्ड समय में इस भवन का लोकार्पण कर दिया गया था। धर्मशाला में विधानसभा भवन के निर्माण और सत्र के आयोजन से कांगड़ा तथा इसके साथ लगते क्षेत्रों को प्रत्यक्ष लाभ हुआ है। इन इलाकों के लोग सत्र के दौरान अपनी समस्याआें को बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकते हैं। इतिहास में झांकने पर पता चलता है कि कांगड़ा जिला सन् 1846 में पहली मर्तबा ब्रिटिश साम्राज्य का हिस्सा बना और मनोहारी धौलाधार पर्वत शृंखला के आंचल में बसे धर्मशाला को अंग्रेजों ने वर्ष 1849 में यूरोपियन कैंटोनमेंट के रूप में चयनित किया। सन् 1855 में धर्मशाला को जिला मुख्यालय के रूप में चयनित किया गया। इसके बाद ब्रितानवी अधिकारियों ने धर्मशाला को दो हिस्सों में बांटकर विकसित किया। ऊपरी हिस्से को मैक्लोडगंज का नाम दिया गया, जबकि निचले धर्मशाला को कोतवाली और कचहरी के रूप में विकसित किया गया।

हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा किए गए जिलों के पुनर्गठन के चलते 01 सितंबर, 1972 को कांगड़ा जिला का वर्तमान स्वरूप सामने निखरकर आया। सन् 1966 में पंजाब के पहाड़ी क्षेत्रों के पुनर्गठन के वक्त हिमाचल को स्थानातंरित किए जाने से पूर्व यह महापंजाब का सबसे बड़ा जिला था। तपोवन स्थित नवनिर्मित विधानसभा भवन और इसमें आयोजित होने वाले शीतकालीन सत्रों के महत्त्व और उपयोगिता को लेकर समय-समय पर विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े लोग और बुद्धिजीवी अपने-अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। इसमें कोई दोराय नहीं है कि इस भवन के निर्माण तथा शीतकालीन सत्रों के आयोजन से निचले हिमाचल को नई पहचान मिली है। क्षेत्र का विकास तो हुआ ही है, लोगों की आर्थिकी में भी वृद्धि हुई है।

सत्र के दौरान इन इलाकों के लोगों को सरकार के समक्ष अपनी बात रखने का पूर्ण अवसर मिलता है। तमाम दावों और आपत्तियों के बावजूद इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि शीतकालीन सत्रावधि के बाद वर्षभर इस भवन का समुचित उपयोग नहीं हो पाता। इसी तथ्य के मद्देनजर वर्तमान अध्यक्ष डा. राजीव बिंदल प्रयास कर रहे हैं कि यहां राष्ट्रीय ई-विधान संस्थान का शुभारंभ किया जा सके। इससे यहां देशभर की विधानसभाओं तथा लोकसभा एवं राज्यसभा के सदस्य ई-विधान का प्रशिक्षण हासिल कर सकेंगे।

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